महाराज दशरथ का जन्म एक अद्भुत घटना है। पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार, एक बार राजा अज ध्यान और वंदना में लिप्त थे। उस समय लंकापति रावण उन्हें युद्ध के लिए आमंत्रित करने आया और उनके वंदना करने का दृश्य देखा। राजा अज ने भगवान शिव की पूजा की, परंतु जल का अर्पण पीछे की ओर किया।
रावण को यह देखकर हैरानी हुई और वह उनसे पूछने लगा कि प्रायः जल का अर्पण आगे क्यों किया जाता है, न कि पीछे, इसका कारण क्या है। राजा अज ने बताया कि एक बार उन्हें ध्यान में भगवान शिव के अर्चना करते समय एक योजन दूर जंगल में एक गाय को सिंह के हमले से बचाने की आवश्यकता पड़ी थी। उन्होंने गाय की रक्षा के लिए जल का अर्पण पीछे की ओर किया।
रावण को यह सुनकर हैरानी हुई और उन्होंने इस पर गहरा विचार किया। वह यह समझा कि जिस प्रकार भगवान शिव का अर्चना भक्ति से किया जाता है, उसी प्रकार हर कार्य को निष्काम भाव से किया जाना चाहिए।
एक बार राजा अज जंगल में भ्रमण कर रहे थे, जहां उन्हें एक सुंदर सरोवर दिखाई दिया। सरोवर में एक कमल का फूल था, जो अत्यंत सुंदर था। राजा अज ने उस कमल को प्राप्त करने के लिए प्रयास किया, परंतु वह हर बार उसके पास ही नहीं आता था।
आखिरकार, एक आवाज़ आई कि “हे राजन, तुम नि:संतान हो, इसलिए तुम इस कमल के पात्र नहीं हो।” इस समय, राजा अज को बहुत दुःख हुआ, क्योंकि वे भगवान शिव के परम भक्त थे, लेकिन उन्हें संतान नहीं थी।
भगवान शिव ने उनकी चिंता को ध्यान में लिया और उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति का वचन दिया। उन्हें धर्मराज से कहा गया कि वे एक ब्राह्मण को अयोध्या नगर में ले जाएं, जिससे राजा अज को संतान की प्राप्ति हो सके।
एक गरीब ब्राह्मण और उनकी पत्नी सरयू नदी के किनारे रहते थे। उन्होंने राजा के आदेश का पालन किया और राजा अज के दरबार में गए। वहां उन्होंने अपनी दुर्दशा का वर्णन किया राजा अज ने ब्राह्मण को सुना और उनकी बातों को गंभीरता से सुना। उन्होंने तत्काल ब्राह्मण को अपने पास बुलाया और उनसे उनकी परिस्थिति के बारे में और विस्तार से विचार किया। ब्राह्मण ने कहा, “आपके आदेश के अनुसार, मैं अयोध्या नगरी आया हूँ। कृपया मुझे और दिशा-निर्देश दें।”
राजा अज ने ब्राह्मण को आदेश दिया कि वह नगर में घूमकर एक स्थान को चुने, जहां उन्हें परिस्थिति के अनुसार एक पुरुष अभिषिक्त करना चाहिए। ब्राह्मण ने आदेश का पालन किया और एक निष्कलंक स्थान को चुनकर अपनी पत्नी के साथ वहां जा बैठे।
उन्होंने वहां एक विशेष पूजा की और अनुष्ठान किया। उस अनुष्ठान के दौरान, वहां से एक सुंदर बालक उत्पन्न हुआ, जिसे उन्होंने अपना पुत्र स्वीकार किया।
राजा अज को यह सुनकर अत्यन्त खुशी हुई और वह अपने घर लौटे। वहां सभी लोग उनका स्वागत करते हुए उनसे आशीर्वाद लेने के लिए खड़े थे।
राजा अज ने उनसे अपने नगर की समृद्धि और उनकी भलाई की कामना की और उन्हें साथ में अपने साथ अयोध्या नगर ले आए। वहां पहुंचकर, वे उनको अपने आदेश के लिए सम्मानित किया और उन्हें अधिक वरदान दिया।
इस घटना के बाद, राजा अज की पूजा, वंदना, और तप का आदर लोगों ने और भी बढ़ा दिया। उन्होंने सभी को सिखाया कि सच्चे हृदय से की गई पूजा और निष्काम कर्म ही जीवन का सही मार्ग है।
समय बीतता गया और राजा अज अपने पुत्र के जन्म के बाद अत्यंत प्रसन्न रहने लगे। उन्होंने अपने पुत्र का नाम मनु रखा। मनु बचपन से ही बहुत तेजस्वी और गुणवान थे। वे सभी दिशाओं में रथ लेकर जा सकते थे, इस कारण उनका नाम दशरथ पड़ा।
एक दिन, राजा अज अपने पुत्र मनु (दशरथ) के साथ राज्य भ्रमण पर निकले। जंगल में चलते-चलते वे एक दिन फिर उसी सुंदर सरोवर के पास पहुंचे। राजा अज ने अपने पुत्र को उस कमल के फूल की कहानी सुनाई और कहा, “पुत्र, यही वह सरोवर है जहाँ मैंने एक बार उस कमल के फूल को पाने का प्रयास किया था, लेकिन मुझे ज्ञात हुआ कि मैं उस कमल के योग्य नहीं हूँ।”
मनु ने उत्सुकतापूर्वक पूछा, “पिताजी, क्या अब हम उस कमल को प्राप्त कर सकते हैं?” राजा अज ने हंसते हुए कहा, “पुत्र, अब यह संभव है। तुम्हारे जन्म के साथ ही हमारे जीवन में समृद्धि और सौभाग्य आया है। चलो, आज हम फिर से प्रयास करते हैं।”
मनु और राजा अज ने फिर से उस कमल के फूल को पाने का प्रयास किया। इस बार, जैसे ही मनु ने फूल की ओर हाथ बढ़ाया, वह कमल खुद-ब-खुद उनके हाथ में आ गया। यह देखकर राजा अज और मनु दोनों ही प्रसन्न हो गए।
अचानक आकाशवाणी हुई, “हे राजा अज, तुम्हारा पुत्र मनु, जिसे दशरथ भी कहा जाएगा, महान और वीर राजा बनेगा। उसके राज में अयोध्या नगरी सुख, शांति और समृद्धि से भरी रहेगी।”
राजा अज ने अपने पुत्र को गले लगाते हुए कहा, “पुत्र, तुम्हारा जन्म हमारे लिए आशीर्वाद है। तुम्हारे आने से हमारे जीवन में सभी खुशियाँ और समृद्धि आई है।”
दशरथ का जीवन आगे चलकर महान बनता गया। वह न केवल एक वीर योद्धा बने बल्कि एक न्यायप्रिय और प्रजापालक राजा भी बने। दशरथ के राज्य में सभी सुखी और समृद्ध थे, और उन्होंने अपने पिता के आदर्शों का पालन करते हुए राज्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
इस कथा का यह moral है कि सच्ची भक्ति, निष्काम कर्म और धैर्य के साथ किए गए प्रयास हमेशा फलदायी होते हैं। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए। उनके आशीर्वाद से ही हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
जय सिया राम!