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राम कहूँ पर गुरु न बिसारूं

प्राचीन काल में एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था, वह शास्त्रों का ज्ञाता था और रोजाना रानी को वेद, पुराण और धार्मिक कथाएँ सुनाता था। एक दिन, कथा के अंत में ब्राह्मण ने एक कथा सुनाई और सबको यह उपदेश दिया कि, “राम कहे तो बंधन टूटे”।

उस समय, पिंजरे में बंद एक तोता ने इसे सुन रहा था, और उत्साहित होकर बोला, “ब्राह्मणदेवता, आप झूठ बोल रहे हैं।” ब्राह्मण ने तोते के इस बयान पर आश्चर्य किया, क्योंकि उन्हें लगा कि इससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को उचित सम्मान नहीं मिलेगा।

उन्होंने अपने गुरु से सलाह ली और तोते को समझाने के लिए उनके पास भेजा। तोते ने अपनी कहानी सुनाई— उसका जीवन भी एक समय ऐसा था, जब वह खुले आसमान में उड़ता था। एक दिन, एक संत समुद्र के किनारे बैठे रहते थे और वे राम नाम जप रहे थे। उस समय, तोते ने भी उनके साथ राम नाम जपना शुरू किया।

संत ने तोते को पकड़ लिया और उसे पिंजरे में बंद कर दिया। बाद में, एक धनवान ने उसे खरीदा और सोने के पिंजरे में रख दिया। ऐसा करने से उसका बंधन और भी बढ़ गया। अंत में, राजा ने उसे खरीदा और अपनी रानी को दिया। रानी, जो धार्मिक और नेक स्वभाव की थी, ने तोते को खुशी-खुशी अपना बनाया।तोते ने कहा, अब आप ही बताइए कि राम कहने से बन्धन छूटे या बन्धन में आ गए?

गुरु जी बोले राम से मिलाने वाले गुरु के कहे अनुसार चलोगे तो ” राम कहे से बन्धन छूट जाएंगे। तोते ने गुरु से पूछा कि वह अब क्या करे। गुरु ने उसे बताया कि वह चुपचाप सो जाएं, बिना हिले। रानी को लगेगा कि तोता मर गया है और उसे छोड़ देगी। यही हुआ। अगले दिन, कथा के अंत में जब तोता चुप रहा, तो संत ने आराम से सांस ली। रानी ने सोचा कि तोता शायद मर गया है, और उसे खोल दिया। तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ गया और बोला, “सतगुरु मिले तो बंधन छूटे”।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि शास्त्रों को पढ़ने और मन्त्रों का जप करने से ही नहीं, बल्कि सच्चे गुरु की कृपा से ही हमारे बंधन मुक्त होते

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