
वृंदावन: बारहवाँ पड़ाव – श्री जुगल किशोर मंदिर (केशी घाट)
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला में आपका स्वागत है! जहाँ भगवान कृष्ण की बांसुरी की धुन हवा में गूंजती है और हर गली राधा-कृष्ण के प्रेम की कहानियाँ सुनाती है। इस आध्यात्मिक यात्रा के बारहवें पड़ाव में, हम पहुँचते हैं श्री जुगल किशोर मंदिर, जो यमुना तट पर स्थित केशी घाट के समीप है। यह घाट और मंदिर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है, जहाँ उन्होंने असुर केशी का वध कर ब्रजभूमि को आतंक से मुक्त किया था।
मंदिर और घाट का महत्व
ऐतिहासिक महत्व
केशी घाट का नाम भगवान कृष्ण की उस दिव्य लीला से जुड़ा है, जब उन्होंने घोड़े के रूप में आए असुर केशी का वध किया। उसी पावन स्थान पर आज भी भक्तगण स्नान, पूजा और दीपदान करते हैं।
आध्यात्मिक महत्व
यमुना नदी के तट पर स्थित यह घाट विशेष रूप से पवित्र माना जाता है। भक्तजन यहाँ आकर कृष्ण की दिव्य ऊर्जा से जुड़ते हैं। शाम के समय जब सैकड़ों दीपक यमुना जल में प्रवाहित होते हैं, तब यह दृश्य अत्यंत अद्भुत और मनोहारी बन जाता है।
वृंदावन की सुंदरता
केशी घाट के चारों ओर पत्थरों से बने राजमहल जैसे भवन इसकी शोभा को और बढ़ाते हैं। पीछे की ओर मदन मोहन मंदिर का दृश्य इस क्षेत्र की आध्यात्मिकता और सुंदरता को और प्रखर बना देता है।
मंदिर और घाट का मेल
श्री जुगल किशोर मंदिर न केवल एक प्रमुख धार्मिक स्थल है बल्कि यह घाट भी वृंदावन के प्रमुख स्नान स्थलों में से एक है। यहाँ भक्तजन यमुना में स्नान कर श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित हो जाते हैं।
श्री जुगल किशोर मंदिर का इतिहास
श्री जुगल किशोर मंदिर वृंदावन के प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण सन् 1627 में नंकरण जी द्वारा कराया गया था। वैष्णव संप्रदाय से संबंधित यह मंदिर गोविंद देव, मदन मोहन और गोपीनाथ मंदिर के बाद चौथा प्रमुख मंदिर माना जाता है। मंदिर के बगल में ही प्रसिद्ध केशी घाट स्थित है, जो इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को और भी बढ़ा देता है।
मंदिर का महत्व
कहते हैं कि यमुना तट पर ही भगवान कृष्ण ने असुर केशी का वध किया था। उसी स्थान पर श्री जुगल किशोर मंदिर की स्थापना की गई। यहाँ संध्या के समय दीपदान का विशेष महत्व है। सैकड़ों भक्तजन शाम की आरती में सम्मिलित होकर यमुना में दीप प्रवाहित करते हैं, जिससे पूरा वातावरण दिव्य आलोक से प्रकाशित हो उठता है।
मंदिर की वास्तुकला
यह मंदिर लाल पत्थरों से निर्मित है और इतना विशाल है कि यमुना के पार से भी इसकी झलक सहज ही दिखाई देती है। इसकी स्थापत्य शैली वृंदावन के अन्य प्राचीन मंदिरों जैसे मदन मोहन और गोविंद देव मंदिर की याद दिलाती है।
मुख्य द्वार पर भगवान श्रीकृष्ण का एक अद्भुत शिल्पांकन है, जिसमें वे गोवर्धन पर्वत को उठाए हुए अपनी सखियों से घिरे खड़े हैं। प्रवेश द्वार पर पुष्प और पक्षियों की कलाकृतियाँ उकेरी गई हैं, जो मंदिर की शोभा को और आकर्षक बनाती हैं।
मंदिर का सभा-मंडप अन्य मंदिरों की तुलना में बड़ा है, जिसका आकार लगभग 25 वर्ग फीट है और यह पूर्व दिशा में स्थित है। मंदिर में उत्तर और दक्षिण दिशा की ओर भी छोटे द्वार बने हुए हैं। हालांकि, समय के साथ गर्भगृह को क्षति पहुँची, फिर भी इसका शेष स्थापत्य आज भी अद्वितीय और दर्शनीय है।
दर्शनीय समय और गतिविधियाँ
- दर्शन का श्रेष्ठ समय: प्रातःकाल और संध्या को यहाँ का वातावरण सबसे अधिक आध्यात्मिक और शांतिमय प्रतीत होता है।
- विशेष अनुभव: भक्तजन यहाँ यमुना स्नान, दीपदान और संध्या आरती का आनंद लेते हैं। यमुना के जल पर तैरते दीपक भक्तिरस और सौंदर्य का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं।
निष्कर्ष
श्री जुगल किशोर मंदिर और केशी घाट केवल पूजा और स्नान के स्थल नहीं हैं, बल्कि ये उस दिव्य क्षण की याद दिलाते हैं जब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा की थी। यहाँ आकर भक्तजन कृष्ण-राधा के जुगल स्वरूप की आराधना करते हैं और यमुना तट की पवित्रता का अनुभव करते हैं।
IndoUS Tribune की इस आध्यात्मिक यात्रा का बारहवाँ पड़ाव यहीं संपन्न होता है। हमारी अगली कड़ी में हम आपको वृंदावन के रहस्यमयी और अद्भुत स्थल निधिवन मंदिर की यात्रा पर ले चलेंगे, जहाँ अब भी रात को राधा-कृष्ण की रासलीला होने की मान्यता है। तब तक के लिए, श्री जुगल किशोर जी और यमुना मैया की कृपा आप पर बनी रहे।