आंध्र प्रदेश: दसवाँ पड़ाव – श्री क्षेत्र द्वारका तिरुमला (चिन्ना तिरुपति), एलुरु

आंध्र प्रदेश: दसवाँ पड़ाव – श्री क्षेत्र द्वारका तिरुमला (चिन्ना तिरुपति), एलुरु

IndoUS Tribune की “आंध्र प्रदेश के मंदिर” श्रृंखला में आपका पुनः हार्दिक स्वागत है। इस विशेष यात्रा में अब हम अपने दसवें पड़ाव पर पहुँच चुके हैं—आंध्र प्रदेश के अत्यंत पूज्य और प्रसिद्ध श्री क्षेत्र द्वारका तिरुमला, जिसे श्रद्धा से “चिन्ना तिरुपति” कहा जाता है। यह पावन धाम भगवान श्री वेंकटेश्वर को समर्पित है और उन भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक विकल्प माना जाता है, जो तिरुमला तिरुपति की यात्रा करने में असमर्थ रहते हैं।

मंदिर का ऐतिहासिक परिचय

पुराणों के अनुसार, द्वारका तिरुमला की पवित्रता सत्ययुग से मानी जाती है। ब्रह्म पुराण सहित अनेक ग्रंथों में इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने भी यहाँ पूजा-अर्चना की थी। कालांतर में चोल शासकों और राजा थोंडईमान द्वारा मंदिर संरचनाओं का विकास हुआ। आधुनिक काल में 18वीं–19वीं शताब्दी के दौरान धर्मा अप्पा राव ने विमाना, मंडप, गोपुरम और प्राकार का निर्माण कराया, जबकि मायलावरम की रानी चिन्नम्मा राव ने स्वर्ण आभूषण और रजत वाहन दान कर मंदिर की भव्यता को और बढ़ाया।

पौराणिक कथा

इस मंदिर की स्थापना से जुड़ी कथा महर्षि द्वारका से संबंधित है। कठोर तपस्या में लीन ऋषि द्वारका के चारों ओर एक विशाल वल्मिकम (चींटी का टीला) बन गया। उसी वल्मिकम से भगवान श्री वेंकटेश्वर स्वयं प्रकट हुए। भगवान की प्रतिमा का निचला भाग वल्मिकम में समाया हुआ है, जिसके कारण चरण पूजा संभव नहीं हो पाती। इस समस्या के समाधान हेतु आचार्य श्रीरामानुजाचार्य तिरुपति से एक दूसरी पूर्ण प्रतिमा लेकर आए और मूल प्रतिमा के पीछे स्थापित की। यही कारण है कि इस मंदिर में भगवान श्री वेंकटेश्वर की दो प्रतिमाएँ एक ही गर्भगृह में विराजमान हैं—एक स्वयंभू और दूसरी पूर्ण मूर्ति।

धार्मिक महत्व

द्वारका तिरुमला को कलियुग वैकुंठ भी कहा जाता है। यहाँ विराजमान भगवान श्री वेंकटेश्वर को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। दो प्रतिमाओं की उपस्थिति इस मंदिर को विशेष रूप से पवित्र बनाती है—जहाँ स्वयंभू प्रतिमा मोक्ष का प्रतीक है, वहीं पूर्ण प्रतिमा धर्म, अर्थ और काम के संतुलन का संदेश देती है। हर वर्ष लगभग 50 लाख श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं, और शुभ अवसरों पर प्रतिदिन 40,000 तक भक्तों की उपस्थिति दर्ज की जाती है।

स्थापत्य और विशेषताएँ

मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ शैली की उत्कृष्ट मिसाल है। पाँच मंज़िला राजगोपुरम, सुंदर नक्काशी, और भव्य प्राकार इसकी शोभा बढ़ाते हैं। गर्भगृह में भगवान श्री वेंकटेश्वर की प्रतिमा सामान्यतः वक्षस्थल तक ही दिखाई देती है। यहाँ भगवान का मुख दक्षिण दिशा की ओर है, जो एक अनोखी विशेषता मानी जाती है। मंदिर परिसर में माता पद्मावती, नंचारी अम्मा, अंजनेय स्वामी, महर्षि द्वारका और संत अन्नमाचार्य की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं।

स्थान

श्री द्वारका तिरुमला मंदिर आंध्र प्रदेश के एलुरु ज़िले में स्थित है। यह एलुरु से लगभग 42 किमी, भीमाडोल जंक्शन से 15 किमी और राजामुंदरी से लगभग 75 किमी की दूरी पर है।

समापन

श्री क्षेत्र द्वारका तिरुमला का दर्शन IndoUS Tribune की आंध्र प्रदेश मंदिर यात्रा के दसवें पड़ाव को आध्यात्मिक पूर्णता प्रदान करता है। यह मंदिर न केवल आस्था और भक्ति का केंद्र है, बल्कि भारतीय संस्कृति, पुराण परंपरा और स्थापत्य कला की जीवंत विरासत भी है। हमें आशा है कि यह यात्रा आपको भी भारत की दिव्य धार्मिक धरोहर से जोड़ रही होगी।

हमारे अगले पड़ाव में हम पहुँचेंगे श्री कूर्मनाथ स्वामी मंदिर (श्रीकाकुलम)—जहाँ भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की दुर्लभ और पावन आराधना होती है।
तब तक के लिए, भगवान श्री वेंकटेश्वर की कृपा आप सभी पर बनी रहे—यही मंगलकामना।

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