
अशोक वाटिका में भगवान हनुमान और माता सीता: कर्तव्य, धर्म और नैतिक दृष्टिकोण
चित्रण का वर्णन:
यह चित्र हनुमान जी को अशोक वाटिका में खड़े हुए दर्शाता है, जहाँ पृष्ठभूमि में माता सीता दिखाई दे रही हैं। रामायण में यह एक महत्वपूर्ण क्षण है, जब हनुमान जी सीता माता से मिलने लंका पहुंचे थे।
प्रश्न:
जब हनुमान जी सीता माता से मिले, तो उन्होंने उन्हें अपने साथ वापस ले जाने का आग्रह क्यों नहीं किया? इस घटना का क्या धार्मिक महत्व है?
उत्तर:
वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड में इस प्रश्न का उत्तर मिलता है। हनुमान जी ने सीता माता को अपने साथ चलने का अनुरोध करते हुए कहा था, “हे माता! आप मेरी पीठ पर बैठ जाइए, मैं समुद्रों के ऊपर से उड़कर आपको भगवान राम से मिला दूंगा, ठीक वैसे ही जैसे अग्निदेव (अग्नि देवता) यज्ञ से हविष्य को देवताओं तक ले जाते हैं।”
हालांकि, सीता माता ने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण कारण बताएं:
सुरक्षा: यदि सीता माता हनुमान जी के साथ चली जाती, तो राक्षसों को उनकी अनुपस्थिति का पता चल जाता और वे तुरंत युद्ध छेड़ देते। युद्ध में अनिश्चितता होती है, और सीता माता को खतरा हो सकता था।
राम का सम्मान: सीता माता एक आदर्श पत्नी थीं और वह चाहती थीं कि उनके पति रावण को हराकर उन्हें वापस लाएं। यदि वे हनुमान जी के साथ चली जाती, तो कुछ लोग राम की क्षमता पर सवाल उठा सकते थे।
पतिव्रता धर्म: सीता माता पतिव्रता धर्म का पालन करती थीं और किसी अन्य पुरुष, यहाँ तक कि हनुमान जी को भी स्पर्श नहीं करना चाहती थीं, जिन्हें वे अपने पिता के समान मानती थीं।
ईश्वरीय योजना: सीता माता का अपहरण और रावण के साथ उनका बंधन दैवीय योजना का हिस्सा था। रावण का वध राम के हाथों ही होना था।
धार्मिक महत्व:
इस घटना का अनेक धार्मिक महत्व है:
पतिव्रता धर्म का आदर्श: सीता माता त्याग और समर्पण की मूर्ति हैं। वे एक आदर्श पत्नी का प्रतीक हैं जो हर परिस्थिति में अपने पति के प्रति समर्पित रहती हैं।
धर्म की रक्षा: रावण का वध अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। भगवान राम ने सीता माता को मुक्त कराकर और रावण का वध करके धर्म की रक्षा की।
सत्य की शक्ति: यह घटना सत्य की शक्ति का प्रमाण है। अंततः सत्य की ही विजय होती है और अधर्म का नाश होता है।
विश्वास और भक्ति: हनुमान जी भगवान राम के प्रति अपनी अटूट भक्ति और विश्वास के लिए प्रसिद्ध हैं। सीता माता से मिलकर उन्होंने राम के प्रति अपना संदेश दिया और उन्हें आशा प्रदान की।
सीता माता का इनकार और उसका गहरा अर्थ:
सीता माता के इनकार के पीछे कई परतें हैं। आइए उन कारणों को गहराई से देखें:
रणनीतिक कारण: सीता माता को पता था कि उनके लापता होने से लंका में अफरा तफरी मच जाएगी। राक्षस तुरंत उनकी खोज शुरू कर देंगे, जिससे हनुमान जी को पकड़े जाने या मारे जाने का खतरा हो सकता था।
सम्मान का रक्षा: सीता माता एक आदर्श पत्नी थीं, जो अपने पति राम के सम्मान को सर्वोपरि मानती थीं। यदि वे हनुमान जी के साथ चली जातीं, तो यह कुछ लोगों की नज़रों में राम की क्षमता पर सवाल खड़ा कर सकता था। वे चाहती थीं कि राम ही रावण को पराजित कर उन्हें वापस लाएं। इससे राम के योद्धा होने का गुण प्रदर्शन होता और सीता माता की वापसी वैध साबित होती।
पतिव्रता धर्म का पालन: सीता माता सख्त पतिव्रता थीं। उनका धर्म किसी अन्य पुरुष को स्पर्श करने से मना करता था, भले ही वह हनुमान जी जैसे भक्त हों, जिन्हें वे अपने पिता तुल्य मानती थीं। सीता माता के लिए पतिव्रता धर्म का पालन सर्वोच्च प्राथमिकता थी।
ईश्वरीय नियति: एक गहरे स्तर पर, सीता माता समझती थीं कि उनका अपहरण और रावण के पास बंधन में रहना दैवीय योजना का हिस्सा था। शायद राम और रावण के बीच अंतिम युद्ध के लिए परिस्थितियां तैयार करना ही था। सीता माता का मानना था कि रावण का वध सिर्फ राम के हाथों ही होना चाहिए।
सीता माता का दृष्टिकोण और हनुमान जी की भूमिका
हालांकि सीता माता ने उनके साथ जाने से इनकार कर दिया, हनुमान जी की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उन्होंने सीता माता को भगवान राम की अंगूठी दी, जो उनके प्रेम और राम के मिशन के प्रति समर्पण का प्रतीक थी। इसके अलावा, हनुमान जी ने लंका में रावण की शक्ति का जायजा लिया और लंकापुरी को जलाकर रावण को एक संदेश दिया। उन्होंने सीता माता से मिलने और राम का संदेश देने से रामायण के युद्ध के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
निष्कर्ष
हनुमान जी और सीता माता की मुलाकात रामायण की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह कथा हमें कर्तव्य, सम्मान, धर्म और दृढ़ विश्वास जैसे मूल्यों का महत्व सिखाती है। सीता माता का इनकार उनके चरित्र की गहराई को दर्शाता है, जबकि हनुमान जी की निष्ठा भक्ति का एक आदर्श उदाहरण है। दोनों के कार्यों से हमें यह संदेश मिलता है कि कठिन परिस्थितियों में भी कर्तव्यनिष्ठा और धर्म का पालन करना महत्वपूर्ण है