भगवद्गीता: ईश्वर का साक्षात स्वरूप, केवल एक ग्रंथ नहीं
पद्मपुराण के उत्तरखंड में वर्णित भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के वार्तालाप में भगवान विष्णु के ध्यान का रहस्य उजागर होता है। इस वार्तालाप में माता लक्ष्मी भगवान महाविष्णु से प्रश्न करती हैं कि वे क्षीरसागर में शयन करते हुए अपने ऐश्वर्य और शक्ति से उदासीन क्यों प्रतीत होते हैं। इस पर भगवान महाविष्णु उत्तर देते हैं कि वे वास्तव में सो नहीं रहे हैं, बल्कि अपने अंतर में स्थित महेश्वर स्वरूप का ध्यान कर रहे हैं।
भगवान विष्णु का उत्तर
भगवान विष्णु बताते हैं कि उनका यह शरीर मायामय है और तात्विक नहीं है। वे कहते हैं:
“सुमुखि! मैं अपने भीतर स्थित उस अद्वितीय ज्योति का साक्षात्कार करता हूँ, जिसे योगी अपने हृदय में देखते हैं। यह स्वरूप शुद्ध ज्ञान, अखंड आनंद और अद्वैतमय है। यह आदि और अंत से रहित, शोक और रोग से मुक्त, और परम सुन्दर है।”
भगवान महाविष्णु स्पष्ट करते हैं कि यह महेश्वर ज्योति ही वेदों का सार है और यही ज्ञानमय स्वरूप संपूर्ण सृष्टि का आधार है।
भगवद्गीता के 18 अध्यायों को भगवान विष्णु के दिव्य शरीर के प्रतीक रूप में वर्णित करते हुए, हर अध्याय को निम्नलिखित रूप से विभाजित किया गया है:
भगवान विष्णु के पाँच मुख
भगवान के पाँच मुख ज्ञान और उपदेश के प्रतीक हैं। गीता के इन अध्यायों में योग, कर्म, और ज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है:
- अर्जुन विषाद योग (अध्याय 1)
- सांख्य योग (अध्याय 2)
- कर्म योग (अध्याय 3)
- ज्ञान-कर्म-संन्यास योग (अध्याय 4)
- कर्म-संन्यास योग (अध्याय 5)
भगवान की दस भुजाएँ
दस अध्याय भगवान की शक्ति और संरक्षण क्षमता का प्रतीक हैं। गीता के ये अध्याय जीवन के विविध आयामों और मार्गदर्शन को दर्शाते हैं:
- ध्यान योग (अध्याय 6)
- ज्ञान-विज्ञान योग (अध्याय 7)
- अक्षर-ब्रह्म योग (अध्याय 8)
- राज-विद्या-राज-गुह्य योग (अध्याय 9)
- विभूति योग (अध्याय 10)
- विश्वरूप दर्शन योग (अध्याय 11)
- भक्ति योग (अध्याय 12)
- क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग (अध्याय 13)
- गुणत्रय विभाग योग (अध्याय 14)
- पुरुषोत्तम योग (अध्याय 15)
भगवान का उदर
भगवान का उदर समस्त सृष्टि और पालन का केंद्र है। गीता का यह अध्याय सब कुछ समेटे हुए है:
- दैवासुर सम्पद विभाग योग (अध्याय 16)
भगवान के दो चरणकमल
भगवान के चरणकमल शरणागति और मोक्ष का प्रतीक हैं। अंतिम दो अध्याय इस शाश्वत सत्य का प्रतिनिधित्व करते हैं:
- श्रद्धा त्रय विभाग योग (अध्याय 17)
- मोक्ष संन्यास योग (अध्याय 18)
भगवद्गीता के अध्यायन केवल भगवान विष्णु के दिव्य शरीर का प्रतीक हैं, बल्कि मानव जीवन के हर पहलू को दिशा और प्रेरणा प्रदान करते हैं। गीता का पाठ हमारे भीतर भगवान की अनुभूति कराकर हमें मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
महाविष्णु का महेश्वर स्वरूप
भगवान विष्णु ने कहा, “हे प्रिये! मेरा बाह्य स्वरूप महाविष्णु है, लेकिन मेरा आंतरिक स्वरूप साक्षात् महेश्वर है। महाभारत के भगवद्गीता में जिस परमात्मा की व्याख्या की गई है, वह महेश्वर ही हैं।”
संदेश
इस वार्तालाप से स्पष्ट होता है कि भगवान विष्णु अपने अंतर में महेश्वर का ध्यान करते हैं, जो अद्वैत और अद्वितीय सत्य का प्रतीक है। भगवद्गीता, जो इस ज्ञान को प्रस्तुत करती है, केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि स्वयं ईश्वर का वाङ्मयी स्वरूप है। गीता का प्रतिदिन अभ्यास करने से महान पापों का नाश होता है और आत्मा परमानंद को प्राप्त करती है।
यह वार्तालाप हमें सिखाता है कि समस्त सृष्टि एक ही दिव्य शक्ति से प्रेरित है, और ज्ञान एवं ध्यान के माध्यम से इस सत्य को अनुभव किया जा सकता है।