कामाख्या मंदिर: नीलाचल पर्वत पर स्थित एक अद्भुत आदि शक्ति पीठ
आइए पूर्वोत्तर भारत के उस पवित्र और रहस्यमय स्थान की यात्रा करें, जो आस्था, परंपरा और दिव्यता से परिपूर्ण है। असम के नीलाचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर, 51 शक्तिपीठों में से एक है। गुवाहाटी से लगभग 7 किलोमीटर दूर यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है और अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ दुर्लभ पक्षियों और पौधों को भी देखा जा सकता है।
शक्ति पीठ का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 हिस्सों में विभाजित किया, तब सती का योनि अंग कामाख्या में गिरा। इसी कारण यह स्थान एक पवित्र शक्ति पीठ माना गया। यहां की देवी को माँ कामाख्या के रूप में पूजा जाता है और उनके भैरव को उमानंद या उमनाथ कहा जाता है।
प्राचीन हिंदू ग्रंथों कालिकापुराण और देवीपुराण में कामाख्या को 51 शक्ति पीठों में सबसे प्रमुख शक्ति पीठ बताया गया है।
कामदेव और तांत्रिक साधना का केंद्र
एक अन्य कथा के अनुसार, प्रेम के देवता कामदेव ने अपनी खोई हुई शक्तियां इसी स्थान पर पुनः प्राप्त कीं और यहाँ एक मंदिर का निर्माण करवाया। असम में कामदेव का यह एकमात्र मंदिर है।
इतिहास और पुरातत्व के अनुसार, यह मंदिर प्राचीन काल से तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र रहा है। यह माना जाता है कि यहाँ तांत्रिक क्रियाओं की शुरुआत 5वीं शताब्दी में हुई थी।
कामाख्या मंदिर का निर्माण और वास्तुकला
वर्तमान कामाख्या मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ, लेकिन इसके ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की जड़ें 1500 वर्षों से भी अधिक पुरानी हैं। यह स्थल प्रारंभ में एक गुफा मंदिर के रूप में विकसित हुआ। समय के साथ मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हुआ और परिसर में नए मंदिरों को जोड़ा गया।
कामाख्या मंदिर पारंपरिक हिंदू शैली के शिखर से रहित है, लेकिन इसमें अलग-अलग कालखंडों की वास्तुकला का समावेश देखा जा सकता है। हजारों वर्षों पुराने शिल्प, यमराज को समर्पित मंदिर और दीवारों पर नक्काशी की गई सुंदर मूर्तियां इसे और भी आकर्षक बनाती हैं।
गर्भगृह की अनूठी विशेषता
कामाख्या मंदिर का गर्भगृह अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। यह भूमिगत है और यहाँ देवी की पारंपरिक मूर्ति नहीं है। इसके स्थान पर एक विशेष चट्टान, जो स्त्री के योनि रूप का प्रतीक है, की पूजा की जाती है। इसके नीचे एक प्राकृतिक जलस्रोत प्रवाहित होता है, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता को जोड़ता है।
मंदिर परिसर में भगवान शिव के पाँच प्रमुख रूपों– कामेश्वर, सिद्धेश्वर, अघोरा, अमृतकेश्वर और कौतिलिंग– को समर्पित मंदिर हैं। इसके अलावा भगवान विष्णु के तीन प्रमुख रूप– केदार, गदाधर और पांडुनाथ– और देवी काली व विभिन्न शक्तियों के मंदिर भी मौजूद हैं।
अंबुबाची मेला और अन्य उत्सव
कामाख्या मंदिर हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, विशेष रूप से अंबुबाची मेले के दौरान। यह अनोखा उत्सव मानसून के समय, जून महीने में मनाया जाता है और देवी के मासिक धर्म चक्र का उत्सव है, जो नारीत्व और सृजन शक्ति का उत्सव मनाता है।
इसके अलावा यहाँ दुर्गा पूजा, मनसा पूजा, पोहन बिया और वसंती पूजा जैसे त्योहारों का आयोजन भी होता है।
पर्यावरण संरक्षण में योगदान
आज कामाख्या मंदिर पर्यावरण संरक्षण का एक आदर्श बन चुका है। मंदिर प्रशासन ने फूलों की चढ़ावे को जैविक खाद में बदलने का प्रोजेक्ट शुरू किया है। साथ ही सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन और वर्षा जल संचयन जैसे कदम भी उठाए गए हैं।
कामाख्या मंदिर की यात्रा केवल एक धार्मिक अनुभव नहीं है, बल्कि यह भारत के समृद्ध इतिहास, प्रकृति के प्रति सम्मान और स्त्री शक्ति के महत्त्व को समझने का एक अवसर है।