
कोलकाता का कालीघाट मंदिर:चार आदि शक्तिपीठों में से एक और देवी शक्ति की महिमा का प्रतीक
भारत की प्राचीन धार्मिक परंपराओं में कालीघाट मंदिर का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मंदिर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थित है और इसे चार आदि शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहां माता सती के दाहिने पैर की उंगलियां गिरी थीं। इस मान्यता के कारण यह मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का केंद्र बन गया है।
पौराणिक कथा: कालीघाट का आध्यात्मिक महत्व
शक्ति पीठों का इतिहास देवी सती और भगवान शिव से जुड़ी कथा से शुरू होता है। माता सती ने जब अपने पिता राजा दक्ष द्वारा भगवान शिव का अपमान सहन नहीं किया, तो उन्होंने यज्ञ की अग्नि में आत्मदाह कर लिया। भगवान शिव, सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे, जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। कालीघाट को उन चार प्रमुख आदि शक्तिपीठों में गिना जाता है, जहां देवी के पैर की उंगलियां गिरी थीं।
मंदिर का नाम और इतिहास
कालीघाट मंदिर का नाम ‘काली’ और ‘घाट’ से मिलकर बना है। ‘काली’ देवी शक्ति का रौद्र और भयावह रूप है, जबकि ‘घाट’ का अर्थ नदी के किनारे की सीढ़ियां है। यह मंदिर आदिगंगा नामक गंगा की एक प्राचीन धारा के पास स्थित है। एक मान्यता यह भी है कि कोलकाता शहर का नाम ‘कालीक्षेत्र’ (काली का स्थान) से निकला है।
इतिहासकारों के अनुसार, वर्तमान मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में हुआ था, लेकिन इसके पवित्र महत्व के प्रमाण लगभग 500 वर्ष पुराने हैं। 16वीं शताब्दी के ग्रंथों में भी कालीघाट का उल्लेख मिलता है।
मंदिर की वास्तुकला और संरचना
कालीघाट मंदिर का वास्तुशिल्प कोलकाता की सांस्कृतिक धरोहर का एक अनूठा उदाहरण है। इसकी मुख्य संरचना पारंपरिक बंगाली शैली में बनी है। मंदिर के मध्य में एक बड़ा शिखर (गुंबद) है और चारों कोनों पर छोटे गुंबद हैं।
मूर्ति और पूजा स्थल
मंदिर के गर्भगृह में देवी काली की एक अद्वितीय मूर्ति स्थापित है, जिसे ‘दक्षिणा काली’ के नाम से जाना जाता है। यह मूर्ति एक विशेष काले पत्थर, जिसे ‘टचस्टोन’ कहा जाता है, से बनी है। देवी के तीन विशाल नेत्र, सोने से मढ़ी चार भुजाएं, और उनकी लंबी, सोने से बनी जीभ देवी के दिव्य स्वरूप को और भी भव्य बनाती है।
गर्भगृह के निकट भगवान शिव के भैरव रूप ‘नकुलेश्वर महादेव’ और अन्य देवी-देवताओं के भी मंदिर हैं।
महत्त्वपूर्ण उत्सव और आयोजन
कालीघाट मंदिर में हर दिन हजारों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन काली पूजा के दौरान यहां की भव्यता अद्वितीय होती है। यह पर्व अक्टूबर या नवंबर में दिवाली के समय मनाया जाता है। इस दौरान मंदिर को रंगीन रोशनी और फूलों से सजाया जाता है। भक्तों की भीड़ देवी की आराधना और दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है।
यहां का धार्मिक महत्व केवल आम भक्तों तक सीमित नहीं है। कई मशहूर हस्तियां भी यहां देवी का आशीर्वाद लेने आती हैं। कहा जाता है कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी भी कोलकाता में मैच खेलने से पहले यहां दर्शन करने आते थे।
मंदिर के आसपास का वातावरण
मंदिर के चारों ओर का इलाका हमेशा उत्साह से भरा रहता है। यहां फूलों, प्रसाद, और पूजा सामग्री की दुकानें हैं, जो इस स्थान को जीवंत बनाती हैं। मंदिर के पास ही पवित्र आदिगंगा बहती है, जहां भक्त स्नान कर अपनी पवित्र यात्रा शुरू करते हैं।
मंदिर तक पहुंचने का मार्ग
कालीघाट मंदिर कोलकाता के केंद्र में स्थित है, जिससे यहां पहुंचना आसान है।
- निकटतम मेट्रो स्टेशन: कालीघाट स्टेशन
- बस और टैक्सी सेवा: शहर के किसी भी हिस्से से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- हवाई मार्ग: नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मंदिर तक पहुंचने में लगभग 1 घंटे का समय लगता है।
कालीघाट मंदिर का आधुनिक महत्व
आज के समय में कालीघाट मंदिर न केवल एक पवित्र धार्मिक स्थल है, बल्कि यह कोलकाता के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। यह स्थान आस्था, परंपरा और आध्यात्मिकता का संगम है।
कालीघाट मंदिर न केवल देवी काली की दिव्यता का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास का अद्भुत उदाहरण भी है। यहां की यात्रा न केवल भक्तों के मन को शांति देती है, बल्कि उन्हें देवी शक्ति की अप्रतिम महिमा का अनुभव भी कराती है। यह मंदिर हर उस व्यक्ति के लिए एक अनिवार्य स्थल है जो भारतीय आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक विरासत को करीब से समझना चाहता है।