परशुराम जयंती: भगवान परशुराम की जीवन कथा

परशुराम जयंती: भगवान परशुराम की जीवन कथा

परशुराम जयंती एक पवित्र त्योहार है, जो हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह पर्व भगवान परशुराम के जन्मदिन को समर्पित है, जिनको हिंदू धर्म में दसवे विष्णु अवतार के रूप में मान्यता प्राप्त हैं।

परशुराम भगवान का जन्म सिद्धपुर नामक स्थान पर हुआ था, जो आजकल गुजरात राज्य में स्थित है। उनके पिता का नाम जमदग्नि ऋषि था और माता का नाम रेणुका था। परशुराम का जीवन उनकी माता के पवित्रता और उनके पिता के शिक्षा से प्रभावित था।

परशुराम भगवान का एक अन्य महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सम्बन्ध भगवान राम से था। परशुराम भगवान का अन्य एक संबंध भगवान विष्णु के साथ भी था, जिन्होंने उन्हें अपने अवतार में स्थान दिया था।

परशुराम भगवान की एक और महत्वपूर्ण कहानी भगवान राम और माता सीता के साथ जुड़ी है। एक बार जब भगवान परशुराम आध्यात्मिक यात्रा पर थे, तो उन्होंने भगवान राम और माता सीता से मिलने का इच्छुकता जताई। भगवान राम ने उन्हें अपने आश्रम में स्वागत किया और उनके साथ गुणाकर संवाद किया।

परशुराम भगवान ने क्षत्रिय वर्ग के खिलाफ व्रत लिया था और उन्होंने धरती पर सभी क्षत्रियों को समाप्त करने का संकल्प लिया था। उन्होंने धरती पर 21 राजाओ के पुत्रों की हत्या की थी, जिन्होंने उनकी माता को परेशान किया था।

परशुराम का गुस्सा भगवान राम के स्वयंवर के समय भी देखा गया था। भगवान राम ने माता सीता की स्वयंवर में भाग लिया था और उन्होंने धनुष को तोड़कर माता सीता का स्वयंवर जीत लिया।इस घटना ने परशुराम को बेहद गुस्सा दिलाया और वह दोषी को सजा देने के लिए स्वयं स्वयंवर पहुँचे किंतु जब परशुराम जी ने भगवान राम को देखा, तो उनका गुस्सा शांत हो गया। उन्होंने भगवान राम के सम्मुख अपना सिर झुकाया। यह कहानी हमें यह दिखाती है कि परशुराम भगवान राम की महिमा और भक्ति को समझते थे।

परशुराम जयंती के अवसर पर भगवान परशुराम की कथाओं को स्मरण करते हुए हमें अपने धर्मिक और आध्यात्मिक संजीवनी में से शिक्षा लेने का मौका मिलता है। उनके उत्कृष्ट उदाहरणों से हमें धर्म, निष्ठा, और सेवा के महत्व को समझने का अवसर प्राप्त होता है। परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं!