December 22, 2024
प्रारब्ध और उसके तीन प्रकार: ईश्वर कृपा से प्रारब्ध का निवारण
Dharam Karam

प्रारब्ध और उसके तीन प्रकार: ईश्वर कृपा से प्रारब्ध का निवारण

धार्मिक जीवन में प्रारब्ध का महत्व समझना हर साधक के लिए आवश्यक है। प्रारब्ध वह भाग्य है, जो हमारे कर्मों के अनुसार पहले से निर्धारित होता है और हमें इस जीवन में भोगना पड़ता है। तुलसीदास जी ने लिखा है:

प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर।
तुलसी चिन्ता क्यों करे, भज ले श्री रघुबीर।।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता और अन्य ग्रंथों में प्रारब्ध के तीन प्रकार बताए हैं:

  1. मंद प्रारब्ध: यह वह प्रारब्ध है जिसे भगवान के नाम का जाप करने से समाप्त किया जा सकता है।
  2. तीव्र प्रारब्ध: इसे सच्चे संत के संग और भगवान में श्रद्धा और विश्वास से नाम जप करके समाप्त किया जा सकता है।
  3. तीव्रतम प्रारब्ध: यह ऐसा प्रारब्ध है जिसे भोगे बिना समाप्त नहीं किया जा सकता। लेकिन भगवान कहते हैं, जो सच्चे विश्वास और प्रेम से मेरा नाम जपते हैं, उनके साथ मैं स्वयं होता हूँ। मैं उनके प्रारब्ध की तीव्रता को कम कर देता हूँ ताकि उन्हें उसका कष्ट महसूस न हो।

प्रारब्ध और ईश्वर कृपा: एक कथा

एक गुरुजी थे जो जीवनभर भगवान के नाम का जाप करते रहते थे। वे वृद्ध हो गए थे और चलने-फिरने में असमर्थ थे। उनके शिष्य उनके सेवा कार्यों में मदद करते थे, जैसे स्नान और शौच के लिए ले जाना।

समय के साथ, शिष्य सेवा में ढिलाई करने लगे। उन्हें कई बार पुकारने पर भी वे देर से आते।

भगवान का साक्षात्कार

एक रात, जब गुरुजी ने निवृत्ति के लिए शिष्यों को पुकारा, तो तुरंत एक बालक आया। उसने बड़े कोमलता से गुरुजी की सहायता की और उन्हें बिस्तर तक ले गया। अब यह रोज का नियम बन गया। गुरुजी ने गौर किया कि यह बालक हर बार आवाज देते ही तुरंत आ जाता है।

एक दिन गुरुजी ने उस बालक का हाथ पकड़ लिया और पूछा, “तू कौन है? मेरे शिष्य तो ऐसा नहीं करते।”

बालक ने अपना वास्तविक स्वरूप प्रकट किया। वह स्वयं भगवान थे। गुरुजी ने रोते हुए कहा, “हे प्रभु, आप स्वयं मेरी सेवा कर रहे हैं! यदि आप मुझसे इतने प्रसन्न हैं तो मुझे मुक्ति क्यों नहीं दे देते?”

ईश्वर का उत्तर

भगवान मुस्कुराए और बोले, “जो कष्ट आप भोग रहे हैं, वह आपके प्रारब्ध हैं। आप मेरे सच्चे भक्त हैं और मेरी कृपा से आपके प्रारब्ध मैं स्वयं कटवा रहा हूँ, ताकि आपको इसका तीव्र कष्ट न हो।”

गुरुजी ने कहा, “हे प्रभु, क्या आपकी कृपा मेरे प्रारब्ध से बड़ी नहीं? क्या आपकी कृपा मेरे प्रारब्ध को समाप्त नहीं कर सकती?”

भगवान ने समझाया, “मेरी कृपा सर्वोपरि है। मैं आपके प्रारब्ध को समाप्त कर सकता हूँ, लेकिन तब आपको अगले जन्म में इन प्रारब्धों को भोगने के लिए लौटना होगा। यह कर्म का नियम है। इसलिए, मैं स्वयं आपके प्रारब्ध को कटवा रहा हूँ ताकि इस जन्म में ही आपको मोक्ष प्राप्त हो सके।”

सारांश

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि प्रारब्ध कर्मों का फल है, जिसे भोगना आवश्यक है। लेकिन भगवान की कृपा और सच्ची साधना से प्रारब्ध की तीव्रता कम हो सकती है। भक्तों को भगवान के नाम में विश्वास और भक्ति रखनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर अपने भक्तों के साथ सदैव रहते हैं और उनके कष्टों को सहने योग्य बना देते हैं।

ईश्वर की आराधना और साधना के द्वारा ही जीवन को प्रारब्ध के बंधनों से मुक्त किया जा सकता है।

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