
भगवद गीता के अध्याय 15
हम आज भगवद गीता के अध्याय 15 का विस्तार से चर्चा करेंगे, जिसका शीर्षक है “पुरुषोत्तम योग”(The Yoga of the Supreme Person)
इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने पुरुषोत्तम योग का विवरण किया है। यह योग भगवान की अद्वितीय गुणों की चर्चा करता है और जीव को उनके पास ले जाने का मार्ग दिखाता है।
वृक्ष का वर्णन:
भगवान ने एक प्रतीक वृक्ष का वर्णन किया है, जिसकी जड़ें आकाश में हैं और शाखाएँ धरती पर फैली हुई हैं।
इस वृक्ष के पत्ते वेद, उपनिषद, धर्मग्रंथ, शास्त्र और ज्ञान को प्रतिनिधित्व करते हैं।
दो मार्ग:
भगवान ने दो मार्गों का वर्णन किया है:
सांख्य योग (ज्ञान का मार्ग): ज्ञान के माध्यम से भगवान की प्राप्ति की जा सकती है। इस मार्ग में जीव को अपने असली स्वरूप की पहचान होती है।
कर्म योग (कर्म का मार्ग): कर्म के माध्यम से भी भगवान की प्राप्ति की जा सकती है। इस मार्ग में कर्मों को भगवान के लिए किया जाता है।
भक्ति और समर्पण:
भगवान के प्रति भक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सभी कार्यों को भगवान के लिए करने से हम उनके पास ले जा सकते हैं।
भक्ति में अटल स्मरण और अपने कर्मों को भगवान के लिए समर्पित करने से आत्मा का उद्धार होता है।
उच्च लक्ष्य:
इस अध्याय में ज्ञान का उच्च लक्ष्य है।
ज्ञान के माध्यम से आत्मा का उद्धार होता है।
ज्ञानी व्यक्ति जीवन के संचालन को समझता है और उसके पीछे छिपे आत्मा को पहचानता है।
ज्ञान के माध्यम से जीव जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होता है।
भगवद गीता के इस अध्याय में ज्ञान, भक्ति, और कर्म के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति की जा सकती है। यह अध्याय आत्मा के अद्वितीयता और उसके साक्षात्कार की महत्वपूर्णता को समझाता है। यह अध्याय हमें उस परमात्मा की ओर ले जाता है, जो हमारे सभी कार्यों का कारण है। इससे हमें अपने जीवन के उद्देश्य का समझने में मदद मिलती है और हमें अपने कर्तव्यों को सम्मान और समर्पण के साथ पूरा करने की प्रेरणा मिलती है।