भगवान् शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन
श्रावण मास की शुरुआत के साथ, हम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा शुरू करेंगे। हर सप्ताह एक ज्योतिर्लिंग का दर्शन करेंगे, और इस पावन यात्रा का प्रारंभ करेंगे प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर से। श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित है।
श्रावण मास का महत्व
श्रावण मास हिंदू पंचांग के अनुसार अत्यधिक पवित्र महीना माना जाता है, जो भगवान शिव की भक्ति और उपासना के लिए समर्पित है। इस महीने में शिव भक्त उपवास, पूजा-अर्चना और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा विशेष फलदायी होती है और इससे सभी कष्टों का निवारण होता है।
प्रथम ज्योतिर्लिंग दर्शन
सोमनाथ मंदिर, जो प्राचीन काल से द्वादश ज्योतिर्लिंगों में पहला माना जाता है, भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का एक अद्वितीय प्रतीक है। यह मंदिर गुजरात के प्राभास पाटन में स्थित है और इसकी अद्वितीय वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व इसे विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल बनाते हैं।
इतिहास और पौराणिक कथा सोमनाथ मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि चंद्र देवता (चंद्रमा) को उनके ससुर दक्ष प्रजापति द्वारा श्राप दिया गया था। चंद्रमा ने भगवान शिव की तपस्या करके प्राभास तीर्थ में उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया और श्राप से मुक्त हो गए। भगवान शिव की कृपा से, चंद्रमा ने यहां सोने का मंदिर बनवाया था। इसके बाद रावण ने रजत (चांदी) का मंदिर बनवाया, और भगवान श्रीकृष्ण ने इसे चंदन की लकड़ी से पुनर्निर्मित किया।
स्थापत्य और वास्तुकला
वर्तमान सोमनाथ मंदिर कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में निर्मित है, जो इसके गौरवशाली अतीत का एक शानदार प्रतिरूप है। इसे प्रसिद्ध वास्तुकार प्रभाशंकर सोमपुरा के निर्देशन में बनाया गया था। मंदिर में गर्भगृह, सभा मंडप और नृत्य मंडप शामिल हैं, जिनमें 150 फीट ऊँचा शिखर है। शिखर के शीर्ष पर स्थित कलश का वजन 10 टन है और ध्वजदंड 27 फीट लंबा और एक फुट व्यास का है।
मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है और इसमें तीन ओर से प्रवेश द्वार हैं, जिनमें से प्रत्येक ऊँचे प्रांगण द्वारा संरक्षित है। मंदिर की नक्काशी और मूर्तियाँ शिल्पकारों की महान कलात्मक प्रतिभा का प्रमाण हैं। गर्भगृह में विशाल शिवलिंग स्थापित है, जहां पुजारी विभिन्न पूजाओं का आयोजन करते हैं। गर्भगृह के दाहिनी ओर त्रिपुरसुंदरी की प्रतिमा और बायीं ओर अंबिका माताजी की प्रतिमा है।
मंदिर की व्यवस्थाएँ
सोमनाथ मंदिर सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। यहाँ तीन बार आरती होती है: सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम 7 बजे। आरती 20 मिनट की एक आध्यात्मिक संगीतमय समागम होती है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
सुरक्षा कारणों से, मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार के सामान, यहां तक कि पूजा के नारियल भी ले जाने की अनुमति नहीं है। हालांकि, निजी सामान रखने के लिए पर्याप्त लॉकर की व्यवस्था है।
ध्वजारोहण
सोमनाथ मंदिर में ध्वजारोहण एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसे कोई भी श्रद्धालु धन का योगदान देकर कर सकता है। मंदिर प्राधिकरण द्वारा उपलब्ध कराई गई केसरिया रंग की ध्वजा, जिसमें नंदी और त्रिशूल के प्रतीक उकेरे गए होते हैं, का पूजा करने के बाद मंदिर के शीर्ष पर ध्वजा को फहराया जाता है।
प्राभास क्षेत्र – श्रीकृष्ण का देहत्याग स्थल
सोमनाथ, जिसे प्राभास क्षेत्र भी कहा जाता है, वैष्णवों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह वही स्थान है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन का अंत किया था। बृहस्पति, कपिला और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित यह स्थल एक पवित्र और शांतिपूर्ण स्थान है।
सोमनाथ पहुँचने के तरीके
हवाई मार्ग से: सोमनाथ का निकटतम हवाई अड्डा दीव में है, जो लगभग 85 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा, पोरबंदर और राजकोट हवाई अड्डे भी निकटतम हवाई अड्डे हैं।
बस से: सोमनाथ बस सेवाओं द्वारा आसपास के शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। दीव, राजकोट, पोरबंदर और अहमदाबाद से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग से: सोमनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल है, जो 5 किलोमीटर दूर है। वेरावल रेलवे स्टेशन से प्रमुख शहरों के लिए नियमित ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं।
सोमनाथ मंदिर का दर्शन केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और वास्तुकला का एक अमूल्य धरोहर भी है। श्रद्धालुओं के लिए यह स्थल हमेशा प्रेरणा और आस्था का स्रोत रहा है।