December 22, 2024
भगवान जगन्नाथ और तुलसीदास जी का दिव्य मिलन
Dharam Karam

भगवान जगन्नाथ और तुलसीदास जी का दिव्य मिलन

कैसे दिए भगवान जगन्नाथ ने तुलसीदास जी को दर्शन
एक बार तुलसीदास जी को किसी ने बताया कि जगन्नाथ जी में साक्षात ईश्वर के दर्शन होते हैं। इस बात से प्रेरित होकर तुलसीदास जी अपने इष्ट देव के दर्शन के लिए जगन्नाथ पुरी की ओर चल पड़े।

तुलसीदास जी जब बहुत लंबी और थका देने वाली यात्रा के पश्चात जगन्नाथ मंदिर पहुंचे, तो अपने इष्ट देव के दर्शन की इच्छा से प्रसन्न चित्त होकर मंदिर में प्रवेश किया। जगन्नाथ जी के दर्शन करके उनके मन को धक्का लगा कि यह हस्तपादविहिन और गोलाकार आंखों वाला देवता मेरे सुंदर नयनों वाले मेरे इष्ट श्री राम कैसे हो सकते हैं?

तुलसीदास जी मंदिर से निकल कर निराश होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए और सोचने लगे कि मेरा इतनी दूर दर्शन करने आना सफल नहीं हुआ। इसी सोच विचार में रात्रि हो गई। तभी उन्हें किसी बालक ने पुकारा, “यहां तुलसीदास कौन है?” बालक हाथ में जगन्नाथ जी का भोग लिए बोल रहा था, “बाबा तुलसीदास जी कौन हैं?”

तुलसीदास जी सोचने लगे कि उनके साथ जो श्रद्धालु आए हैं, उन्होंने पुजारी को बताया होगा कि तुलसीदास भी दर्शन के लिए आए हैं तो उन्होंने मेरे लिए प्रसाद भेज दिया होगा।

तुलसीदास जी कहने लगे, “हां, मैं ही तुलसीदास हूं।”
इतना सुनते ही बालक कहने लगा, “मैं आपको ढूंढ ही रहा था। आपके लिए जगन्नाथ जी ने प्रसाद भेजा है।”
तुलसीदास जी कहने लगे, “तुम इस प्रसाद को वापस ले जाओ।”

बालक आश्चर्य से कहने लगा, “जगन्नाथ का भात – जगत पसारे हाथ। तुलसीदास जी, आप कह रहे हैं कि प्रसाद वापिस ले जाओ।”

तुलसीदास जी बोले, “मैं अपने इष्ट को भोग लगाए बिना कुछ ग्रहण नहीं करता। तुम्हें जगन्नाथ का झूठा प्रसाद मेरे किस काम का? इससे मैं अपने इष्ट को भी भोग नहीं लगा सकता।”

बालक ने कहा, “बाबा, आपके इष्ट देव ने ही भेजा है यह प्रसाद।”
तुलसीदास जी कहने लगे, “हस्तपादविहिन यह देव मेरे इष्ट कैसे हो सकते हैं?”
बालक कहने लगा, “आपने रामचरितमानस में यह किसके रूप का वर्णन किया था?

बिनु पग चलै सुनै बिन काना।
कर बिन करम करै विधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।

इतना सुनते ही तुलसीदास जी की आंखों में अविरल आंसू बहने लगे और मुख से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। बालक ने थाल रखते हुए कहा, “मैं ही तुम्हारा राम हूं” और अदृश्य हो गया। “मेरे चारों द्वारों पर हनुमान पहरा देते हैं और विभिषण नित्य दर्शन को आते हैं। प्रातः आकर तुम भी दर्शन कर लेना।”

तुलसीदास जी की आंखों से आंसू बह रहे थे, उन्हें अपने शरीर की सुध-बुध नहीं रही और उन्होंने स्नेह से भगवान जगन्नाथ का प्रसाद ग्रहण किया। अगले दिन जब तुलसीदास जी मंदिर में दर्शन करने गए तो उन्हें जगन्नाथ, कृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा जी के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण और सीता जी के दर्शन हुए।

जिस जगह पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की, उस स्थान को तुलसी चौरा के नाम से जाना जाता है।

तुलसीदास जी की पीठ बड़छता मठ के रूप में प्रसिद्ध है।
तुलसीदास जी की इस कथा ने यह सिद्ध किया कि भगवान के विभिन्न रूपों में एक ही परम तत्व समाहित है। जगन्नाथ मंदिर के इस प्रसंग ने तुलसीदास जी के जीवन को एक नया मोड़ दिया और उनके भक्ति मार्ग को और अधिक गहरा बना दिया। उन्होंने यह समझा कि भगवान का हर रूप सुंदर है और हर रूप में वही अनंत कृपा और प्रेम है जो श्रीराम में है।

तुलसीदास जी का यह अनुभव हमें सिखाता है कि हमें हर रूप में ईश्वर के दर्शन करने चाहिए और उनकी महिमा को पहचानना चाहिए, चाहे वह किसी भी रूप में हमारे सामने आए। यह कथा हमें भक्तिपूर्ण समर्पण और आस्था की सच्ची शक्ति का महत्व समझाती है।

भगवान जगन्नाथ की यह लीला हमें यह सिखाती है कि सच्ची भक्ति और आस्था के साथ जब हम ईश्वर की आराधना करते हैं, तो वे किसी न किसी रूप में हमारे समक्ष प्रकट होते हैं और हमारे जीवन को उनके दिव्य दर्शन से भर देते हैं।