भगवान विष्णु और शिव तत्व का महात्म्य: पद्मपुराण की कथा
भगवान विष्णु का ध्यान किस पर है?
भगवान विष्णु, जिनका स्थान इस ब्रह्मांड के पालनहार के रूप में है, किसका ध्यान करते हैं? यह रहस्य पद्मपुराण के उत्तरखंड में वर्णित है। इस कथा में लक्ष्मी और महाविष्णु के बीच संवाद को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से उनके ध्यान और योग के बारे में प्रश्न करती हैं।
मां लक्ष्मी का प्रश्न
एक दिन, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम कर रहे थे, मां लक्ष्मी ने उनसे प्रश्न किया, “हे भगवन्! आप पूरे जगत का पालन करते हुए भी ऐसा क्यों प्रतीत हो रहे हैं जैसे आप इस संसार से विरक्त हैं और गहरी नींद में सो रहे हैं?” लक्ष्मी जी का यह प्रश्न एक साधारण जिज्ञासा से भरा हुआ था, जिसके पीछे गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक रहस्य छिपे थे।
भगवान विष्णु का उत्तर
भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, “हे सुमुखि! मैं सो नहीं रहा हूं। मैं अपने अंतर में स्थित महेश्वर के स्वरूप का ध्यान कर रहा हूं। यह वही स्वरूप है, जिसे योगी पुरुष अपनी गहरी ध्यान साधना के माध्यम से अपने हृदय में देखते हैं। यह स्वरूप अखंड, अद्वैत, और शुद्ध ज्योतिर्मय है, जो न दुख का स्पर्श करता है न आनंद का, बल्कि यह स्वयं परमानंद स्वरूप है। यही तत्व इस जगत का आधार है।”
गीता के अध्याय और शिव तत्व
भगवान विष्णु ने आगे बताया कि महर्षि वेदव्यास ने वेदों के गहरे मंथन से जिस गीता का सृजन किया है, वह भी उसी महेश्वर तत्व का स्वरूप है। गीता के १८ अध्याय भगवान के विभिन्न अंगों के प्रतीक हैं— पाँच अध्याय भगवान के पाँच मुखों का प्रतीक हैं, दस अध्याय दस भुजाओं का, और शेष तीन अध्याय भगवान के उदर और चरणों के रूप में हैं। यह गीता स्वयं उस परमात्मा के दिव्य ज्ञान का सार है, जो सभी महापापों का नाश करने वाला है।
लक्ष्मी जी की जिज्ञासा और महेश्वर स्वरूप
जब लक्ष्मी जी ने सुना कि भगवान विष्णु भी महेश्वर का ध्यान करते हैं, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा, “हे हृषीकेश! आप स्वयं इस ब्रह्मांड के रचयिता और पालनकर्ता हैं। फिर ऐसा कौन-सा तत्व है, जिसका आप ध्यान करते हैं?” भगवान विष्णु ने उत्तर दिया, “हे प्रिये! मेरा यह शरीर मायामय है, परंतु मेरा असली स्वरूप उस परम महेश्वर तत्व का है, जो निर्गुण, निष्कल, और शाश्वत है। वही तत्व गीता में वर्णित है और उसी का मैं ध्यान करता हूं।”
गीता और महेश्वर का संबंध
भगवान विष्णु ने गीता के महात्म्य का वर्णन करते हुए कहा, “गीता का ज्ञान परमात्मा के स्वरूप को प्रकट करता है। जो व्यक्ति गीता के एक श्लोक का भी नित्य अभ्यास करता है, वह महान पापों से मुक्त हो जाता है। गीता केवल शब्द नहीं है, यह ईश्वर की वाणी है, जो सीधे उस महेश्वर तत्व की ओर संकेत करती है।”
निष्कर्ष
इस कथा के माध्यम से पद्मपुराण हमें यह सिखाता है कि भगवान विष्णु भी उस परम महेश्वर शिव का ध्यान करते हैं, जो इस जगत के सभी कर्तव्यों से परे, एकमात्र आनंदमय और अद्वैत स्वरूप है। गीता के माध्यम से हमें उसी शिव तत्व का बोध होता है, और यह ज्ञान हमारे जीवन को पवित्रता और मुक्तिदायक बना सकता है।
🚩 हर हर महादेव 🚩