भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा की चौथी कड़ी: ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास, कथा और यात्रा मार्ग
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के मंधाता शहर में स्थित है। इस पवित्र स्थल की विशेषता यह है कि यह नर्मदा नदी के किनारे स्थित एक द्वीप पर बना हुआ है, जो “ॐ” अक्षर के आकार में है, जिसे देववाणी लिपि में लिखा गया है। यह अद्वितीय आकार ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग को विशेष धार्मिक महत्व प्रदान करता है। मध्य प्रदेश में स्थित दो प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर है, जबकि दूसरा उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास और पौराणिक कथा ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा और इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस ज्योतिर्लिंग के निर्माण की कथा राजा मंधाता से जुड़ी है, जिन्होंने इस स्थान पर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने यहां प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया, जिसके बाद इस स्थान का नाम ‘मंधाता पर्वत’ पड़ा।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का निर्माण 11वीं शताब्दी में मालवा के परमार राजाओं, जयसिंहदेव और जयवर्मन, द्वारा किया गया था। इसके बाद, यह मंदिर चौहान शासकों के प्रशासन के अधीन रहा। हालांकि, 13वीं शताब्दी में महमूद गज़नी ने इस मंदिर को लूटा, फिर भी इसके धार्मिक महत्व में कोई कमी नहीं आई। 19वीं शताब्दी में होलकर शासकों, विशेष रूप से रानी अहिल्याबाई होलकर, ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव ने अपनी अनंत ज्योति (लिंग) को तीनों लोकों में प्रवाहित किया। इस अनंत स्तंभ को देखकर भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने इसके आदि और अंत का पता लगाने की कोशिश की। ब्रह्मा जी ने झूठ का सहारा लिया, जबकि भगवान विष्णु ने अपनी असमर्थता स्वीकार की। भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा नहीं होगी, जबकि विष्णु जी की सत्यता के कारण उनकी पूजा सदैव की जाएगी। इस कथा के आधार पर, ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के अनंत और असीमित रूप का प्रतीक बन गए।
ओंकारेश्वर की यात्रा के मार्ग ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तक पहुंचने के लिए इंदौर से दो मार्ग हैं। पहला मार्ग खंडवा रोड से होकर जाता है, जहां से इंदौर-बैग्राम-चोरल- पनखनिया-चिचला-बरवाहा-मोर्टक्का-ओंकारेश्वर स्टेशन आते हैं। इस मार्ग पर यात्रा करते हुए आप प्राकृतिक दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। दूसरा मार्ग इंदौर-उमरिया-डॉ. आंबेडकर नगर-मेंद-भगदरा-धारगांव-मचलपुर-बरवाहा-मोर्टक्का-ओंकारेश्वर होते हुए जाता है।
इंदौर से ओंकारेश्वर की दूरी लगभग 80 किलोमीटर है, और इसे ट्रेन या बस के माध्यम से आसानी से तय किया जा सकता है। उज्जैन से ओंकारेश्वर की दूरी लगभग 150 किलोमीटर है, जिसे बस या टैक्सी के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महत्ता हिंदू धर्म में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान है। यह मंदिर नर्मदा नदी के तट पर स्थित है, और यहां भक्तगण पवित्र नर्मदा नदी में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर का आकर ‘ॐ’ के आकार में होने के कारण यह मंदिर धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन सुबह 5:00 बजे से प्रारंभ होता है और रात्रि 9:30 बजे तक मंदिर के द्वार खुले रहते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि इसके शांत और सौंदर्यपूर्ण वातावरण में पूजा-अर्चना करने से भक्तों को अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त होता है।
निष्कर्ष
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महत्वपूर्ण और पवित्र स्थल है, जो भक्तों के लिए अत्यंत धार्मिक महत्ता रखता है। इसकी यात्रा, भगवान शिव के अनंत और असीमित रूप का अनुभव करने का एक अनोखा अवसर प्रदान करती है। इस मंदिर की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व भक्तों के लिए आत्मिक शांति और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक माध्यम है। शिवभक्तों के लिए यह एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां जीवन में कम से कम एक बार अवश्य जाना चाहिए। भारत के चारों कोनों से यहां आकर भक्तगण अपने जीवन को धन्य मानते हैं और अपनी आस्था और विश्वास को सुदृढ़ करते हैं।