
रघुकुल की नई पीढ़ी- लव कुश एवं अन्य भाई
By: Rajendra Kapil
इक्ष्वाकु कुल में जन्मे श्री रामजी जब वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो राजकाज के साथ साथ
गृहस्थी के जीवन में भी व्यस्त हो गए. सभी कुछ आनंद से चल रहा था. एक दिन एक धोबी
अपनी पत्नी पर बहुत ही क्रोधित हो उठा, क्योंकि उसकी पत्नी नहर के दूसरी ओर किसी कारण
वश फँस गई और रात को घर नहीं लौट पाई. इस पर धोबी ने अपनी पत्नी को कुछ अपशब्द
कहे, कि मैं राम नहीं हूँ कि, मैं उस पत्नी को अपना लूँ, जो महीनों तक बाहर रही हो. इससे एक
लोकापवाद आरंभ हो गया. रामजी को लगा कि, इस लोकापवाद को समाप्त करना चाहिए, और
उन्होंने सीता की सहमति से, सीता को, वाल्मीकि के आश्रम में भेज दिया. उस समय सीता जी
गर्भ से थी. वाल्मीकि के आश्रम रह कर सीता जी ने रघुकुल की नयी पीढ़ी, लव कुश को जन्म
दिया. लेकिन सीताजी ने उन बालकों को यह नहीं बताया की उनके पिता कौन हैं. इन दोनों
बालकों ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा, शस्त्र और शास्त्र उसी आश्रम में रह कर, ऋषि वाल्मीकि एवं
ऋषि भारद्वाज से सीखी. सीताजी ने भी, वाल्मीकि के कहने पर, अपनी असली पहचान गुप्त ही
रखी. उन्हें सब उस आश्रम में, वनदेवी के रूप में जानने लगे और लव कुश को वनदेवी के पुत्रों
के रूप में जानने लगे.
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, राम राज्य को सार्वभौमिक मान्यता देने के लिए, रामजी ने, ऋषि
वशिष्ठ के अनुरोध पर, एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ की एक शर्त थी कि,
एक अश्व को चारों दिशा में भेजा जाये, जो राम राज्य की उदघोषणा का प्रतीक होगा. अगर
किसी राजा को राम राज्य से किसी प्रकार की आपत्ति हो, तो वह अश्व को रोक कर अयोध्या
नरेश को चुनौती दे सकता था. यह अश्व, जब वाल्मीकि आश्रम के निकट पहुँचा, तो लव कुश ने
इसे रोक लिया. उन्होंने अपने गुरु के मुख से सुन रखा था कि, राजा राम ने लोक निंदा को सुन,
अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया है. और उन्हें उस पर भारी आपत्ति थी. अश्व का इस तरह
रोक दिया जाना अयोध्या राज्य के लिए एक चुनौती बन गया. पहले सैनिक भेजे गए, पर लव
कुश ने उन्हें हरा दिया. फिर भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को एक एक करके भेजा गया, लेकिन
लव कुश के युद्ध कौशल के सामने उन्हें भी परास्त होना पड़ा. सभी ने उन्हें बालक जान, हल्के
में लिया. ऐसे में स्वयं राम वहाँ सेना सहित पहुँचे, लव कुश की आपत्ति को ध्यान से सुना और
उन्हें समझाया कि, अश्वमेध यज्ञ के बाद इस भूल को सुधारने का प्रयास करेंगे. तब जाकर लव
कुश, जो अपने पिता के विरुद्ध खड़े थे, ने अपने हठ को तोड़ा. बाद में ऋषि वाल्मीकि स्वयं इन
दो बालकों को साथ ले, राज दरबार में पहुँचे और पूरे रहस्य से आवरण हटाया. इस प्रकार पिता
पुत्रों का पुनर्मिलन हो पाया.
रामजी की नई पीढ़ी लव कुश का विवरण, वाल्मीकि रामायण में बहुत विस्तार से है. लेकिन
तुलसी बाबा ने इस प्रसंग पर अधिक नहीं लिखा. चूँकि यह एक विवादित विषय था, इसीलिए
तुलसी इस कथा से दूर रहे. उत्तरकांड में एक दो चौपाइयों में इसका संदर्भ इस प्रकार आता है:
दुइ सुत सुंदर सीता जाए, लव कुस बेद पुरानन्ह गाए
दोउ बिजई बिनई गुन मंदिर, हरि प्रतिबिंब मनहूँ अति सुंदर
दुइ दुइ सुत सब भ्रातन्ह केरे, भए रूप गुन सील घनेरे
सीताजी ने लव कुश नामक दो बेटों को जन्म दिया, जो हरि अर्थात् प्रभु राम के प्रतिबिंब थे.
दोनों भाई बड़े वीर एवं विनयी थे. इसी प्रकार बाक़ी सभी भाइयों के भी दो दो पुत्र उत्पन्न हुए.
जो रूप गुण और शील में बहुत ही सुंदर थे.
लव कुश का नाम तो सभी जानते हैं, लेकिन बाक़ी तीन भाइयों के जो दो दो बेटे हुए. उनके नाम
बहुतों को मालूम नहीं हैं. आइये ज़रा उनके जीवन के बारे में खोज खबर निकालते हैं. राम से
छोटे भाई थे भरत जी. भरतजी का विवाह सीता की चचेरी बहिन मांडवी से हुआ था. उनके दो
राजकुमार हुए, जिनके नाम थे, तक्ष और पुष्कल. बड़े होकर तक्ष ने तक्षिला नाम के राज्य का
विकास किया. तक्षशिला का शाब्दिक अर्थ है, शिला को काट कर बनाया गया निर्माण. यह
पुरातन काल में अपनी सांस्कृतिक एवं शिक्षा के प्रचार प्रसार का केंद्र बिंदु था. और पुष्कल ने
इंदुस (Indus) नदी के पश्चिम तट पर पुष्कल बटि नामक एक राज्य का निर्माण किया. दोनों भाई
इस प्रकार जीवन भर, इन राज्यों का कार्यभार सम्भालते हुए, प्रजा की सेवा में निरंतर लगे रहे.
इसी प्रकार भाई लक्ष्मण का विवाह सीता की बहन उर्मिला से हुआ था. उर्मिला ने लक्ष्मण के
वनवास काल में बहुत त्याग और तप किया था. एक कथा के अनुसार वह अपने पति की
सहायता के लिए चौदह वर्ष तक सोती रही, ताकि लक्ष्मण चौदह वर्ष तक जाग कर राम और
सीता की सुरक्षा पर तैनात रह सकें. हिन्दी साहित्य के कई कवियों ने उर्मिला के जीवन पर कई
महाकाव्यों का सृजन किया. उनमें मैथिलीशरण गुप्त का साकेत बहुत प्रसिद्ध है, जोकि उर्मिला
के जीवन और त्याग पर आधारित है.
प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा ने, उर्मिला के सन्दर्भ में, एक जगह लिखा है:
अबला जीवन तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी
लक्ष्मण और उर्मिला के भी दो बेटे हुए. जिनके नाम थे, अंगद और चंद्रकेतु. दोनों लक्ष्मण की
भाँति वीर और माँ की तरह परमार्थी एवं तपस्वी थे. दुर्भाग्य से उनके बारे में इतिहास में अधिक
जानकारी उपलब्ध नहीं है.
और अंत में हैं, लक्ष्मण के सगे छोटे भाई शत्रुघ्न. इनका विवाह मांडवी की छोटी बहिन श्रुतकीर्ति
के साथ हुआ था. एक ओर जहां लक्ष्मण ने अपना जीवन राम और सीताजी की सेवा में अर्पित
कर दिया तो दूसरी ओर शत्रुघ्न ने अपना जीवन भरत और अयोध्या की सेवा में लगा दिया.
इनके भी दो पुत्र हुए, जिनके नाम थे, सुबाहु और शत्रुघाती. जैसे पिता, ठीक वैसा ही उनका बेटा.
दोनों के नाम का अर्थ था, शत्रु का विनाश करने वाला शूरवीर. एक बार अयोध्या पर, रावण के
भानजे लवणासुर ने आक्रमण कर दिया. लवणासुर बहुत बलशाली असुर था, जिसे कई प्रकार के
दिव्य अस्त्र प्राप्त थे. शत्रुघ्न ने रामजी की आज्ञा और आशीर्वाद से लवणासुर का सामना किया
और बड़े प्रराकर्म से युद्ध के बाद लवणासुर का वध कर दिया, लवणासुर मधुपुर (आज की मथुरा)
का राजा था. शत्रुघ्न ने मधुपुर को जीत कर अपने अधिकार में ले लिया. फिर अपने वृद्धकाल
काल में यही मधुपुर अपने बेटों को सौंप, सन्यास की ओर निकल पड़े. ऐसा कहा जाता है कि,
तेलंगाना में आज भी एक मंदिर है जोकि केवल शत्रुघ्न और श्रुतकीर्ति जी को समर्पित है. इस
मंदिर का नाम है, श्री कल्याण सन्निधि मंदिर.
इस प्रकार चारों भाइयों के आठों बेटों ने रघुकुल परंपरा को आगे बढ़ाया और बड़े बड़े काम कर
कुल की यशस्वी गाथा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. मेरा रघुकुल की इस नई पीढ़ी को,
सादर नमन!!