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रामचरितमानस एक सुहावना सरोवर
By: Rajendra Kapil
सरोवर की छवि हृदय में आते ही, एक ऐसे मनोरम वातावरण का दृश्य सामने आ जाता है, जहाँ स्वच्छ पानी है. ठंडी ठंडी हवा बह रही है, पास में कोयल आदि पंछी चहचहा रहे हैं. चारों ओर छायी हरियाली मन प्राण को तरो ताज़ा कर रही है. तुलसी बाबा ने मानस के आरंभ में इस महाकाव्य को एक सरोवर की उपमा से सजाया है, और नाम रखा रामचरित मानस:
राम चरित मानस एहि नामा, सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा
मन करि विषय अनल बन जरई, होई सुखी जौं एहि सर परई
जो इस सरोवर में डुबकी लगाता है, उसके इस संसार से उपजे सभी पाप धूल जाते हैं, और वह पुन: पवित्र हो उठता है. अपने इस महाकाव्य की प्रशंसा में, तुलसी बाबा कहते हैं, कि यह ऋषियों एवं मुनियों को बड़ा प्रिय है. इसकी संरचना महादेव की कृपा एवं प्रेरणा से हुई है. यह रामकथा पहले शिव के हृदय में विराजमान थी, उन्होंने अपने आशीर्वाद से इसे मेरे हृदय में प्रस्फुटित किया. इसके लिए मेरा उन्हें कोटि कोटि नमन.
रचि महेस निज मानस राखा, पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा
इस महान कृपा के कारण साधारण सा तुलसी, रामचरित मानस का कवि बन गया;
संभु प्रसाद सुमति हियँ हुलसी, रामचरितमानस कवि तुलसी
इस सरोवर के चार घाट हैं, अर्थात् इस में चार समांतर कथाएँ चल रही हैं. जिनसे जीवन के चार परम फल प्राप्त होंगे.
पहली कथा – शिव पार्वती के बीच चल रही है.
दूसरी कथा- ऋषि याज्ञवल्क और भारद्वाज के बीच हो रही है
तीसरी कथा- उत्तरकांड में काकभुशुण्डी और पक्षिराज गरुड़ में और
चौथी कथा – तुलसी बाबा हम और आप जैसे भक्तों को सुना रहे हैं.
चार घाट, चार कथाएँ, चार फल. जीवन में चार का बड़ा महत्व है. जीवन के चार फल हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष.
बाबा ने हनुमान चालीसा का आरंभ भी, इन्ही चार फलों की प्राप्ति की कामना से किया है.
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि
वरणऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि
जीवन में रामकथा का सबसे बड़ा आशीर्वाद है – उसका सुंदर फल. तो यह कथा भी उन्हीं चार फलों को देने वाली है. धर्म- जीवन जीने की कला सिखाता है. अर्थ- यानि धन, जीवन चलाने का सबसे बड़ा साधन है. काम- कामनाएँ जीवन का अभिन्न अंग है, और धर्म और अर्थ उन कामनायों को एक सहज दिशा दिखाता है. मोक्ष- और सब कुछ भोगने के बाद, जीवन का अंतिम लक्ष्य होता है, मोक्ष. इस सबके लिए ऋषियों ने जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया.
ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम. जीवन का आनंद लेने के लिए बनाई, चार ऋतुएँ. बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, पतझड़ और अंत में सर्दी. हर जगह चार का बोलबाला है. यहाँ तक कि, रात और दिन में भी, चार चार पहर होते हैं.
सरोवर में सबसे महत्वपूर्ण होता है, उसका तरो ताज़ा जल, जो उसमें डुबकी लगाने वालों को एक नयी ऊर्जा से भर देता है. तुलसी बाबा ने बताया कि, रामचरित मानस रूपी सरोवर का जल है, राम और सीता का प्यारा सुयश. मानस की चौपाइयाँ इस सरोवर के आस पास फैली पुरवाइयाँ हैं. इस कथा में दी गई, अनेकों उपमयाएँ सरोवर की मधुर तरंगें हैं. इसकी चौपाइयों में छिपे रहस्य, सरोवर की सीपियों में छिपे मोती हैं: मानस के दोहे और छंद तरह तरह के कमल हैं. छंदों में छिपे अर्थ, उन कमलों का पराग और मधुर सुगंध हैं.
राम सिय जस सलिल सुधासम, उपमा बीचि बिलास मनोरम
छंद सोरठा सुंदर दोहा, सोई बहुरंग कमल कुल सोहा
अरथ अनूप सुभाव सुभासा, सोई पराग मकरंद सुबासा
इस रामचरित मानस में बहुत सारी प्रासंगिक कथाएँ भी हैं. वह सब कथाएँ इस सरोवर पर विचरण करने वाले, कोयल और तोते जैसे रंग बिरंगे प्यारे प्यारे पक्षी हैं. इस मानस को गाने वाले भक्त गण, कथा वाचक, इस सरोवर के रखवाले प्रतीत होते हैं. यह केवल उन्हीं को राम कथा सुनाते हैं, जो इसके अधिकारी हैं, यानि इसको सुनने योग्य हैं.
जे गावहि यह चरित संभारे, तेइ एहि ताल चतुर रखवारे
सदा सुनहि सादर नर नारी, तेइ सुरबर मानस अधिकारी
जिन पर रामजी की परम् कृपा होती है, वही इस सरोवर के पास आ पाते हैं. इसके पावन जल से उनके सारे विघ्न और कष्ट दूर हो जाते हैं. यह सरोवर उनके तीनों पापों को समाप्त कर देते हैं. तीनों पापों से तात्पर्य है, आध्यात्मिक पाप, आधिदैविक पाप, और आधिभौतिक पाप. यानि आध्यात्म से जुड़े पाप, देवताओं से जुड़े पाप तथा शारीरिक पाप, सब इस मानस के सरोवर में गोते लगाने से सदा सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं.
इस सरोवर के पास दुष्ट और आलसी लोग आसानी से नहीं पहुँचते.अगर गलती से आ भी जायें, तो उन्हें यह सरोवर भाता नहीं. उन्हें यहाँ नींद आ जाती है. उन्हें कोयल की कूँहुँभी, कांव की काँय काँय लगती है. वह अभागे लोग इस सरोवर के मनोरम वातावरण का लाभ नहीं उठा पाते.
अति खल जे बिषई बग कागा, एहि सर निकट न जाहि अभागा
आवत एहि सर अति कठिनाई, राम कृपा बिनु आइ न जाई
ऐसे अभागे इस सरोवर के पास आकर भी, बिना स्नान किए लौट जाते हैं. लौटकर सरोवर के बारे अपने परिवारी जनों के सामने बहुत सारे दोषों का वर्णन करते हैं, बड़े अभिमान के साथ सरोवर की भरपूर निंदा करते हैं.
करि न जाइ सर मज्जन पाना, फिरि आवइ समेत अभिमाना
जौ बहोरी कोइ पूछन आवा, सर निंदा करि ताहि बुझावा
थोड़ा और आगे चल कर तुलसी बाबा ने मानस सरोवर में छुपे कुछ और रहस्यों को बताया. यह सरोवर पावन नगरी अयोध्या में बहती सरयू नदी के किनारे संवत् 1631 में प्रगट् हुआ. चैत्र का महीना, नौमी तिथि, जब वेद पुराण राम जन्म का विस्तार से वर्णन करते हैं. ऐसे पुनीत अवसर पर रामचरित मानस सरोवर का उदय हुआ. यही रामचरित मानस के आरंभ की तिथि भी मानी जाती है.
संवत् सोरह सौ एकतीसा, करऊँ कथा हरि पद सीसा
नौमी तिथि भौम मधुमासा, अवधपुरी यह चरित प्रकासा
अब तुलसी बाबा सरयू नदी की महानता की ओर बढ़ जाते हैं. और पाठकों को बताते हैं कि, शिव पार्वती विवाह प्रसंग इस नदी के जल चर जीव हैं. रामजी का अपने भाइयों के साथ खेलता बचपन, इस नदी का उफान है. रामजी का विवाह और उसमें परिवार का अत्यधिक उत्साह, इस नदी की मस्ती भरी चाल है. फिर उन्हें नदी में थोड़ी काई नज़र आती है, तो कह उठते हैं:
काई कुमति केकई केरी, परि जासू फल बिपति घनेरी
कैकेयी की कथा इस नदी कि काई है, जो इसे दूषित बनाती है.
इस प्रकार तुलसी बाबा ने अपने लिखे राम चरित मानस को एक सरोवर बता, स्वयं बहुत सारे गोते लगाए. और पिछले 450 वर्षों से करोड़ों भक्त भी उस सरोवर का आनंद ले रहे है. विश्व भर में, जितने भी राम भक्त हैं, वह इस सरोवर के अमृत जल का नित्य पान कर, अपने आप को
पवित्र करते चले जा रहे हैं. कोई कोई भक्त जो गहराई में डुबकी लगाता है, तो उसे ज्ञान के मोती भी प्राप्त होते हैं. इसी लिए किसी ने उचित ही कहा है:
जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ
पाये ढेरों मणि मोती, पाई बने बड़ सेठ
ऐसे तुलसी बाबा को बाबा को मेरा सादर नमन. और उनके इस पवित्र सरोवर मैं डुबकी लगाकर हम तो यही कहेंगें- जय श्री राम!!!