
राम रक्षा स्तोत्र – सुरक्षा का शक्तिशाली कवच
By: Rajendra Kapil
राम रक्षा स्तोत्र में ऋषि बुध कौशिक ने रामजी की आराधना एक अलग ढंग से की है. ऋषि
कौशिक ने रामजी के सम्मुख पूर्ण समर्पण करते हुए, उनसे प्रार्थना की, कि प्रभु उनकी हर प्रकार
से रक्षा करें. इसी प्रार्थना के अन्तर्गत उन्होंने लगभग अठतीस श्लोकों में रामजी से विवध प्रकार
का संरक्षण माँगा. यह सभी श्लोक एक छोटी सी पुस्तिका में संकलित हैं, जिसका नाम है,
रामरक्षा स्तोत्र. सबसे पहले ऋषि कौशिक ने प्रभु की सुंदर छवि का ध्यान कर उन्हें प्रणाम किया.
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामांकारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं।
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचंद्रम् //
धनुष बाण लिए रामजी पद्मासन मुद्रा में, पीतांबर वस्त्रों में शोभायमान हैं. मंद मुस्कान लिए
उनका मुखारविंद, जिस पर नये नये खिले कमलों के समान उनके मधुर नेत्र, उनकी शोभा को
बढ़ा रहे हैं. नाना अलंकारों से सुशोभित, उनका पीतांबर अति प्रिय लग रहा है. सिर पर कस कर
बंधा, जटा मण्डल शोभायमान है. उनके बायें ओर माँ सीता जी विराजमान हैं. इस दिव्य छवि को
प्रणाम करते हुए, ऋषि कौशिक ने राम रक्षा स्तोत्र का आरंभ किया.
उसके बाद ऋषि कौशिक ने प्रभु राम को अलग अलग विशेषणों से संबोधित करते हुए अपने
विभिन्न अंगों की रक्षा करने की प्रार्थना की:
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम्।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
जिह्वां विद्यानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित:।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित्।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु:।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोऽखिलं वपु: ॥९॥
इनमें श्लोकों में प्रार्थना है कि, राघव मेरे सिर की रक्षा करें. दशरथ के पुत्र श्री राम मेरे ललाट
(मस्तक) की रक्षा करें. कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की रखा करें. विश्वामित्र के प्रिय शिष्य राम मेरे
कानों की रक्षा करें. माँ सुमित्रा के पुत्र मेरे मुख की रक्षा करें. विद्यानिधि मेरी जिह्वा पर अपना
आशीर्वाद बनायें रखें. भरतजी के प्रिय भ्राता मेरे कंठ की रक्षा करें. सीतापति राम मेरे हाथों की
रक्षा करें. अर्थात् शरीर के हर अंग पर प्रभु राम की कृपा होती रहे.
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
ऐसी सुरक्षा प्राप्त कर, जीवन में आए बल के प्रति कृतज्ञता प्रगट करते हुए, सभी भक्तों को कहते
हैं कि, जो इस राम रक्षा स्तोत्र का नित्य पाठ करेगा, वो रामजी की कृपा से हमेशा सुखी, विजयी,
विनीत एवं चिरायु बना रहेगा.
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
ऋषि कौशिक ने इस श्लोक में इस रक्षा स्तोत्र की प्रेरणा के बारे एक रहस्य का उद्घाटन किया है. इसमें
उन्होंने बतलाया कि, भगवान शंकर ने स्वप्न में इस रक्षास्तोत्र लिखने का आदेश दिया, उसीकी प्रेरणा,
से अगली सुबह उठ कर, उन्होंने उसे उसी रूप में लिख प्रभु राम को समर्पित कर दिया,
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
इस श्लोक में, रामजी की तपस्वी छवि को सामने रखते हुए, और उनकी सादी जीवनचर्या को ध्यान कर
ऋषि कौशिक लिखते हैं कि, वह रामजी जो कंद मूल और फलों का सेवन कर जीवन बिताते हैं. जो
अत्यधिक सयंमी, तपस्वी एवं ब्रह्मचारी है, ऐसे महाराज दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों हमारी
हमेशा रक्षा करें.
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
इस प्रकार जो भी भक्त बड़ी श्रद्धा से ऐसे रामजी का नित्य प्रति जप सुमिरन करते हैं, उन्हें
बहुत ही पुण्य प्राप्त होगा, इस बात में रत्ती भर संदेह नहीं है. ऋषि ने तो यहाँ तक कह दिया
कि, यह पुण्य इतना होगा, जैसे मानो किसी ने अश्वमेध यज्ञ करके पुण्य अर्जित किया हो.
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम्।
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
इस श्लोक में रामजी की एक और सुंदर छवि का चित्रण है. प्रभु राम राजेंद्र हैं, अर्थात् सब देवी देवताओं
में सर्वोपरि हैं. हमेशा सत्य की खोज में लगे रहते हैं. श्यामल छवि वाले दशरथ पुत्र, हमेशा लोक कल्याण
में लगे रहते हैं. और इसीलिए रावण जैसे दुष्ट असुरों का सहज वध करने वाले हैं. ऐसे लोक उपकारी
रामजी को मेरी बारंबार वंदना.
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
ऐसे लोक कल्याण के महा नायक प्रभु राम को मैं हृदय से स्मरण करता हूँ.
ऐसे भक्तों के परम प्रिय रामजी के गुणगान मैं सदा करना चाहता हूँ.
ऐसे परम दयालु श्री राम के चरणों में, मैं सादर प्रणाम करता हूँ.
ऐसे परम कृपालु प्रभु की शरण में, मैं अपने आप को समर्पित करता हूँ.
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र:।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र:।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर् ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
इस श्लोक में ऋषि कौशिक ने रामजी को अपना सब कुछ मान लिया है. प्रभु ही मेरे माता पिता हैं. प्रभु
ही मेरे स्वामी एवं परम मित्र हैं. बिना कारण, परम दयालु प्रभु राम मेरे सर्वस्व हैं. इनके सिवा मैं किसी
दूसरे को नहीं जानता.
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
कृपा के साथ साथ प्रभु और क्या क्या करते हैं? इस बात का उत्तर ऋषि ने इस श्लोक में दिया.
प्रभु राम हमारी हर आपदा अर्थात् मुसीबतों को सहज ही हर लेते हैं. हर मुश्किल घड़ी में हमारे
साथ खड़े रहते है. और अच्छे समय समय में हमें ढेरों संपदा प्रदान कर, जीवन आनंद से भर
देते हैं. ऐसे लोक कल्याण नायक प्रभु को, मैं हृदय से बारंबार नमन करता हूँ.
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
रामजी के साथ साथ ऋषि कौशिक ने रामजी के परम भक्त श्री हनुमान को भी याद किया. हनुमान के
बिना राम अधूरे हैं. और रामजी के बिना हनुमानजी के अस्तित्व की कल्पना असंभव है. हनुमान जी के
गुणों की चर्चा इस श्लोक में है. हनुमान जी जितेन्द्रिय हैं, उन्होंने इंद्रियों के प्रलोभन को जीता हुआ है.
बुद्धिमानों में बजरंगी सबसे वरिष्ठ हैं, सबसे ऊपर हैं. वायु पुत्र हनुमान की गति अतुलनीय है. वानरों की
सेना के अधिनायक प्रमुख श्री हनुमान जी के चरणों में मेरा सादर प्रणाम.
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम:।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहम्।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
रामजी राज मणि हैं. राजाओं में सर्वश्रेष्ठ, हर युद्ध में विजय पाने वाले, प्रभु राम को मेरा सादर
नमन. संपूर्ण राक्षस कुल को समाप्त करने वाले लक्ष्मीपति प्रभु राम को, मैं नमस्कार करता हूँ.
रामजी के समान कोई और आश्रयदाता नहीं है. इसीलिए मैं उन्हीं शरणवत्सल प्रभु के चरणों में
समर्पित हूँ. मैं ऐसी प्रार्थना करता हूँ कि, मैं सदा राम नाम में लीन रहूँ. कृपालु राम, मेरा इस
संसार सागर से उद्धार करें.
अंत में ऋषि कौशिक ने इस महामंत्र की तुलना “विष्णु सहस्रनाम” से कर इसे सदा सदा के लिए
राम भक्तों की अतुल धरोहर बना दिया, और रामजी से आशीर्वाद माँगा कि, मैं सदा इस राम
भक्ति में लीन रहूँ और राम नाम में रमण करता रहूँ. ऋषि बुधकौशिक द्वारा रचित इस महामंत्र
राम रक्षा स्तोत्र के लिए राम प्रेमी भक्त समाज उनका हमेशा ऋणी रहेगा. मेरा ऋषि कौशिक के
चरणों में शत शत प्रणाम!!