January 31, 2025
वृन्दावन की दिव्य कथा: बिहारीजी के दर्शन की अद्भुत लीला
Dharam Karam

वृन्दावन की दिव्य कथा: बिहारीजी के दर्शन की अद्भुत लीला

Indo US Tribune News Desk
Jan 24, 2025

वृन्दावन, भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि, जहां हर भक्त ठाकुरजी के दिव्य दर्शन की आकांक्षा लेकर आता है। ऐसे ही एक भक्त का वृन्दावन में आना हुआ। उसने बिहारीजी के दर्शन के लिए तीन दिन तक प्रयास किया, परंतु उसे ठाकुरजी के दर्शन नहीं हुए। जब अन्य लोग कहते, “देखो, बिहारीजी तो सामने ही खड़े हैं,” वह उदास होकर कहता, “मुझे तो दिखाई नहीं दे रहे।”

दर्शन न मिलने का दुख

भक्त के लिए यह अत्यंत पीड़ा का समय था। उसने सोचा, “शायद मुझसे कोई बड़ा पाप हुआ है, तभी भगवान मुझे दर्शन नहीं दे रहे।” यह विचार उसके मन में इतना गहरा उतर गया कि उसने निश्चय कर लिया कि अब जीवन व्यर्थ है। उसने निर्णय लिया कि वह यमुना जी में जाकर अपने प्राण त्याग देगा।

यमुनाजी के तट पर एक अद्भुत घटना

रात्रि के समय, जब वह भक्त यमुना जी के तट पर पहुंचा, उसने देखा कि वहां एक कोहड़ी व्यक्ति लेटा हुआ था। उसी समय भगवान ने उस कोहड़ी को स्वप्न में दर्शन देकर कहा, “अभी यहां एक भक्त आएगा, तुम उसके चरण पकड़ लेना। उसकी कृपा से तुम्हारा कोढ़ ठीक हो जाएगा।”

कोहड़ी इस दिव्य स्वप्न से जागा और भगवान की आज्ञा मानने के लिए तैयार हो गया। जैसे ही वह भक्त वहां आया, कोहड़ी ने उसके चरण पकड़ लिए और विनती करने लगा, “मेरा कोढ़ दूर कर दो।”

भक्त की असमर्थता और कोहड़ी की दृढ़ता

भक्त हतप्रभ हो गया। उसने कहा, “मैं तो बड़ा पापी हूं। ठाकुरजी ने मुझे दर्शन भी नहीं दिए। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।” लेकिन कोहड़ी ने अपने हाथ नहीं छोड़े और आग्रह करता रहा। अंततः कोहड़ी ने कहा, “आप केवल इतना कह दीजिए कि मेरा कोढ़ दूर हो जाए।”

भक्त ने स्वयं को अयोग्य समझते हुए कहा, “मेरे पास ऐसी कोई शक्ति नहीं है।” परंतु कोहड़ी के बार-बार विनती करने पर उसने अनमने भाव से कहा, “तुम्हारा कोढ़ दूर हो जाए।” और यह कहते ही क्षणभर में कोहड़ी का रोग पूरी तरह ठीक हो गया।

भगवान की लीला का रहस्योद्घाटन

कोहड़ी ने भक्त को बताया कि भगवान ने स्वप्न में उसे यह सब करने का आदेश दिया था। यह सुनकर भक्त को अपने विचारों पर ग्लानि हुई। उसने यमुना जी में कूदने का विचार त्याग दिया और बिहारीजी के मंदिर लौट आया।

जैसे ही वह मंदिर पहुंचा, उसे ठाकुरजी के दर्शन हो गए। भगवान के दिव्य स्वरूप को देखकर उसका हृदय भर आया। उसने रोते हुए पूछा, “प्रभु, आपने मुझे पहले दर्शन क्यों नहीं दिए?”

भगवान का दिव्य उत्तर

बिहारीजी मुस्कराए और कहा, “तुमने जीवनभर मुझसे कुछ नहीं मांगा। तुमने कभी कोई इच्छा व्यक्त नहीं की। इसलिए मैं तुम्हें दर्शन देने के योग्य नहीं था। लेकिन आज तुमने किसी के लिए कुछ मांगा, किसी की सेवा की, तो अब मैं तुम्हारे सामने आने लायक हो गया।”

सेवा का महत्व

इस कथा का सार यह है कि भगवान सेवा करने वालों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहते हैं। उन्होंने हनुमानजी के प्रति भी यही भाव व्यक्त किया था – ‘सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं’। सेवा करने वाला बड़ा होता है, और सेवा लेने वाला छोटा। परंतु भगवान और उनके भक्त इस “छोटे” होने में भी गौरव का अनुभव करते हैं।

भक्त और भगवान का अद्भुत संबंध

भगवान और भक्त का रिश्ता ऐसा है, जहां अहंकार का कोई स्थान नहीं। भगवान हमेशा अपने भक्तों के प्रेम और सेवा से बंध जाते हैं। यह कथा सिखाती है कि जब हम निस्वार्थ भाव से किसी की मदद करते हैं, तो हम भगवान के निकट हो जाते हैं। और यह भी कि जो कुछ भी नहीं चाहता, भगवान स्वयं उसके दास हो जाते हैं।

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