November 21, 2024
शिव के गले में पड़ी मुण्ड माला और माँ भगवती के 51 शक्ति पीठों का अद्भुत रहस्य
Dharam Karam

शिव के गले में पड़ी मुण्ड माला और माँ भगवती के 51 शक्ति पीठों का अद्भुत रहस्य

आप सभी ने भगवान शिव के गले में मुण्डमाला का वर्णन तो कई बार सुना होगा और माँ भगवती के शक्तिपीठों के बारे में भी आप जानते हैं। क्या कभी आपने इस रहस्य को जानने की कोशिश की कि भगवान शिव क्यों मुण्डमाला धारण करते हैं? माँ भगवती के शक्तिपीठ और भगवान शिव की मुण्डमाला की कहानी एक दूसरे से जुड़ी हुई है। भगवान शिव और सती का अद्भुत प्रेम शास्त्रों में वर्णित है।

इसका प्रमाण है सती के यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्मदाह करना और सती के शव को उठाए क्रोधित शिव का तांडव करना। हालांकि यह भी शिव की लीला थी क्योंकि इस बहाने शिव 51 शक्ति पीठों की स्थापना करना चाहते थे। शिव ने सती को पहले ही बता दिया था कि उन्हें यह शरीर त्याग करना है। इसी समय उन्होंने सती को अपने गले में मौजूद मुण्डों की माला का रहस्य भी बताया था।

मुण्ड माला का रहस्य

एक बार नारद जी के उकसाने पर सती भगवान शिव से जिद करने लगी कि आपके गले में जो मुण्ड की माला है उसका रहस्य क्या है। जब काफी समझाने पर भी सती न मानी तो भगवान शिव ने रहस्य खोल ही दिया। शिव ने सती से कहा कि इस मुण्ड की माला में जितने भी मुण्ड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं। सती इस बात को सुनकर चकित रह गईं।

सती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुण्ड मेरे हैं। इस पर शिव बोले यह आपका 108 वां जन्म है। इससे पहले आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं और ये सभी मुण्ड उन पूर्व जन्मों की निशानी हैं। इस माला में अभी एक मुण्ड की कमी है इसके बाद यह माला पूर्ण हो जाएगी। शिव की इस बात को सुनकर सती ने शिव से कहा, “मैं बार-बार जन्म लेकर शरीर त्याग करती हूं लेकिन आप शरीर त्याग क्यों नहीं करते?”

शिव हंसते हुए बोले, “मैं अमर कथा जानता हूं इसलिए मुझे शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता।” इस पर सती ने भी अमर कथा जानने की इच्छा प्रकट की। शिव जब सती को कथा सुनाने लगे तो उन्हें नींद आ गई और वह कथा सुन नहीं पाई। इसलिए उन्हें दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग करना पड़ा।

शक्ति पीठों की स्थापना

जब सती ने अपने प्राण त्याग दिए, तो शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और सती के शरीर को उठाकर तांडव करने लगे। इस तांडव से संपूर्ण ब्रह्मांड में हलचल मच गई। देवताओं ने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वे इस स्थिति को संभालें। विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में काट दिया, जो विभिन्न स्थानों पर गिरे और उन स्थानों पर शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

108 मुण्डों की माला

शिव ने सती के मुण्ड को भी माला में गूंथ लिया। इस प्रकार 108 मुण्डों की माला तैयार हो गई। सती का अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ। इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त हुआ और फिर उन्हें शरीर त्याग नहीं करना पड़ा।

आध्यात्मिक संदेश

इस कहानी से हमें यह समझने को मिलता है कि प्रेम और भक्ति की शक्ति असीमित होती है। सती का भगवान शिव के प्रति अटूट प्रेम और शिव का सती के प्रति समर्पण हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम सदा अजर-अमर रहता है। शिव की मुण्डमाला और शक्ति पीठों की स्थापना का यह रहस्य हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में प्रेम और भक्ति से बड़ा कोई साधन नहीं है।

भगवान शिव और माँ भगवती के इस अनोखे प्रेम की कहानी हमें यह बताती है कि सच्चे प्रेम और भक्ति में बलिदान और समर्पण का महत्व होता है। इसी बलिदान और समर्पण ने इस प्रेम कहानी को अमर बना दिया, जो सदियों से हमें प्रेरित करती आ रही है