सूर्य अर्घ्य का महत्व
हम सभी जानते हैं कि सूर्य पूरे ब्रह्मांड का ऊर्जा स्रोत है। सृष्टि की शक्ति केवल सूर्य से ही मिलती है। चाहे वह प्रकृति हो, मानव हो या विश्व का कोई भी वस्तु, सूर्य की किरणों से सभी को नया जीवन मिलता है। शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि की हर रचना पांच मुख्य तत्वों पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि और वायु से मिलकर बनी है। ये पांचों प्रकृति के मूल तत्व हैं और इन सबका केंद्र सूर्य है। ब्रह्मांड की रचना के ये पांच तत्व सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
सूर्य अर्घ्य (Surya Argha) क्या है?
सूर्य अर्घ्य एक प्राचीन हिंदू अनुष्ठान है जिसमें व्यक्ति सूर्य देवता को जल अर्पित करता है। इसे सूर्य उपासना का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है, जिसमें स्नान के बाद स्वच्छ जल से भरा पात्र सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से प्रातःकाल में किया जाता है जब सूर्य उदित होता है। माना जाता है कि सूर्य अर्घ्य से व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं।
ऋग्वेद में सूर्य अर्घ्य का महत्व
भारतीय दर्शन का मूल आधार चारों वेदों में से प्रथम और प्रमुख ऋग्वेद में ठीक और विस्तृत रूप से विवरण मिलता है। ऋग्वेद में कहा गया है कि सूर्य प्रकृति के हर अंश को जागृत करता है। सूर्य के कारण सृष्टि का हर अंश कार्य करता है और सक्रिय रहता है। सृष्टि के सभी जीव तत्व अपनी ऊर्जा के लिए सूर्य पर निर्भर होते हैं। सूर्य जीव की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कमजोरियों को समाप्त कर उसे स्वस्थ और दीर्घायु बनाता है। सूर्य की किरणों में शामिल सात रंग मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावी हैं। यदि कोई व्यक्ति सुबह स्नान करने के बाद सूर्य को कलश जल अर्पित करता है, तो जल की धार से छिनी हुई सूर्य की किरणें पूरे शरीर पर पड़ती हैं और सभी रोगों को ठीक कर व्यक्ति को बुद्धिमान बनाती हैं।
वैज्ञानिकों ने भी स्वीकारा अर्घ्य का महत्व धर्म से परे वैज्ञानिक साक्ष्यों में विश्वास रखने वाली आधुनिक पीढ़ी के लिए सूर्य को अर्घ्य देने के पक्ष में पर्याप्त वैज्ञानिक आधार हैं। कई वैज्ञानिकों ने शोध और अनुसंधान के बाद सिद्ध किया है कि वेदों में वर्णित हर कार्य विज्ञान से मेल खाता है। सूर्य को अर्घ्य देने के तरीके के बारे में विस्तृत प्रमाण देते हुए, विज्ञान ने भी यह सिद्ध किया है कि जब हम सूर्योदय के समय दोनों हाथ ऊपर उठाते हैं, तो जल की एक पतली धार तेज धार की तेज किनारे से गिरती है। यह धार सूर्य और जल अर्पित करने वाले व्यक्ति के बीच एक पतली जल की दीवार बन जाती है। खाली आंखों से सूर्य की विशाल रोशनी को देखना असंभव है, लेकिन जब सूर्य की किरणें हमारी आंखों पर पड़ती हैं, तो यह दृष्टि को शुद्ध करती हैं। यह न केवल दृष्टि बढ़ाती है, बल्कि कई प्रकार के रोगों को भी रोकती है। जल की धार से छिनी हुई सूर्य की किरणें पूरे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का छिड़काव करती हैं। इससे व्यक्ति की आंतरिक और आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है।
ज्योतिषीय महत्व
सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व केवल वेदों और विज्ञान में ही वर्णित नहीं है, बल्कि ज्योतिषीय ग्रंथों में भी सूर्य को अर्घ्य देने के कई लाभ बताए गए हैं। सूर्य सभी ग्रहों का राजा है, इसलिए जितना अधिक सूर्य का बलिदान कुंडली में होता है, सूर्य जल अर्पित करने से सूर्य का बलिदान किया जाता है। यदि जन्म चक्र में सूर्य की कमजोर स्थिति हो और सूर्य को बलिदान करना हो, तो प्रतिदिन लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यदि नौकरी या व्यवसाय में लाभ नहीं हो रहा है या फंसे हुए पैसे को निकालना चाहते हैं, तो सूर्य को जल अर्पित करना लाभकारी होता है। जल में तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। लाल फूल और कुमकुम मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य का बलिदान करके सूर्य यश देता है।
धर्म या विज्ञान
धर्म या विज्ञान, दोनों का उद्देश्य मानवता के कल्याण और उसकी क्षमताओं को बढ़ाना है। दोनों अपने स्वभाव और विश्वासों के अनुसार मानव के विकास में सहायक होते हैं। यही कारण है कि कभी-कभी विज्ञान धर्म का परीक्षण करता है। इसी क्रम में, सूर्य को अर्पित करने जैसे अनुष्ठान सिद्ध होते हैं, जो मानव के लिए कल्याणकारी होते हैं। हालांकि, सूर्य को जल अर्पित करना न तो बहुत समय मांगता है और न ही अत्यधिक प्रयास। थोड़े से प्रयास को एक आदत बनाकर, हम अपने पूरे कल्याण को बहुत आसानी से कर सकते हैं। और हालांकि, सूर्य को अर्घ्य देने से प्रकृति के प्रति समर्पण की भावना मजबूत होती है। इसलिए सुबह स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य देने की आदत बनाएं।