हिंगलाज माता मंदिर: इतिहास और आस्था का संगम
हिंगलाज माता मंदिर का इतिहास
हिंगलाज माता मंदिर, जिसे नानी मंदिर और हिंगुला देवी के नाम से भी जाना जाता है, पाकिस्तान के बलूचिस्तान क्षेत्र के मकरान में स्थित है। यह मंदिर हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के बीचों बीच हिंगोल नदी के तट पर स्थित है और कराची से लगभग 250 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर लगभग 457 वर्ष पुराना है और 51 शक्ति पीठों में से एक है, जहां सती के अंग गिरने के स्थान पर देवी की पूजा होती है। यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक निराकार पत्थर है जिसे सिंदूर से लिप्त किया गया है और हिंगलाज माता के रूप में पूजा जाता है। इसी कारण इसे संस्कृत में हिंगुला कहा जाता है।
हिंगलाज माता मंदिर की पौराणिक कथा
हिंगलाज माता मंदिर की कहानी तब शुरू होती है जब दक्ष प्रजापति की पुत्री सती ने भगवान शिव से अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह किया। दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन सती और शिव को नहीं बुलाया। सती को जब इस यज्ञ के बारे में पता चला, तो वे स्वयं वहां पहुँच गईं, जहाँ उनके पिता ने उनके पति शिव का अपमान किया। इस अपमान को सहन न कर पाने के कारण सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। जब शिव को इसका पता चला, तो वे क्रोधित होकर सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य करने लगे। ब्रह्मांड को विनाश से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिए, जो पृथ्वी पर 51 स्थानों पर गिरे। इन स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है। माना जाता है कि हिंगलाज में सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था, जो सिर का एक हिस्सा होता है।
हिंगलाज माता मंदिर की महत्वपूर्ण कथाएँ
हिंगलाज माता मंदिर से कई महत्वपूर्ण कथाएँ जुड़ी हुई हैं:
राक्षसों की कथा: कहा जाता है कि सती का सिर हिंगलाज में गिरा और वहाँ के राक्षस इसे देखकर भयभीत होकर वहां से भाग गए। देवी ने उन पर दया की और उन्हें वापस आकर उनकी पूजा करने का आग्रह किया, जिससे वे देवी के भक्त बन गए।
अकाल की कथा: बलूचिस्तान में एक बार भयंकर अकाल पड़ा, और लोगों ने हिंगलाज माता से प्रार्थना की। देवी ने उनकी प्रार्थनाओं को सुनकर अपने मंदिर से हिंगोल नदी बहने दी, जिससे भूमि उपजाऊ हो गई और लोगों को राहत मिली।
राजा हिंगलाज की कथा: एक कठोर शासक हिंगोल के अत्याचार से परेशान लोगों ने सती से प्रार्थना की, जिन्होंने उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार क्षेत्र का नाम हिंगोल रखा और उसे इतिहास से मिटा दिया।
हिंगलाज माता मंदिर का महत्व
हिंगलाज माता मंदिर, न केवल हिंदुओं के लिए बल्कि मुस्लिम समुदायों के लिए भी आस्था का केंद्र है। स्थानीय मुस्लिम समुदायों, विशेष रूप से जिक्रियों, में देवी के प्रति गहरा सम्मान है और वे इसे नानी का हज (दादी की तीर्थयात्रा) कहते हैं। यह धार्मिक सहिष्णुता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां दोनों धर्मों के लोग मिलकर देवी की पूजा करते हैं।
हिंगलाज माता मंदिर की तीर्थयात्रा और अनुष्ठान
हर साल अप्रैल में हिंगलाज माता मंदिर की वार्षिक तीर्थयात्रा का आयोजन होता है, जिसमें लगभग 2,50,000 लोग शामिल होते हैं। यह चार दिवसीय उत्सव होता है, जिसमें तीसरा दिन सबसे पवित्र माना जाता है। तीर्थ यात्री खंडेवारी और चंद्रगुप्त कीचड़ ज्वालामुखी पर चढ़ाई करते हैं, नारियल चढ़ाते हैं, और हिंगोल नदी में स्नान करते हैं। यह यात्रा पैदल नंगे पाँव करने की परंपरा है, लेकिन अधिकांश लोग वाहन का उपयोग करते हैं। तीर्थयात्री अपने परिवारों और वैवाहिक जीवन की समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
हिंगलाज माता मंदिर तक कैसे पहुंचे
हिंगलाज माता मंदिर पहुँचने के लिए कराची से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। हिंगलाज के निकटतम शहर अगोर कैंप है, जो मंदिर से लगभग 12 किमी दूर है। यहाँ पहुँचने के लिए वार्षिक तीर्थयात्रा में शामिल होना सबसे अच्छा तरीका है, जिसे विभिन्न हिंदू संगठनों द्वारा आयोजित किया जाता है। ये संगठन पंजीकृत तीर्थयात्रियों के लिए बस, ट्रक, कार, और मोटरसाइकिल की व्यवस्था करते हैं और भोजन, पानी, आवास और सुरक्षा प्रदान करते हैं।
यातायात के साधन
हवाई यात्रा: आप पाकिस्तान के किसी भी शहर से कराची के लिए उड़ान भर सकते हैं और फिर सड़क मार्ग से हिंगलाज माता मंदिर पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग: कराची से अगोर कैंप तक निजी वाहन या बस द्वारा यात्रा की जा सकती है। अगोर कैंप से मंदिर तक का सफर कठिन होता है और चार-पहिया ड्राइव वाहन की आवश्यकता होती है।
सार्वजनिक परिवहन: सार्वजनिक परिवहन की कमी के कारण, निजी वाहन या वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान संगठनों द्वारा संचालित वाहनों का उपयोग करना सबसे अच्छा विकल्प है।
आसपास के आकर्षण स्थल
हिंगलाज माता मंदिर के आसपास कई प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थल हैं जो दर्शनीय हैं:
हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान: यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है, जो लगभग 6,100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ पहाड़, घाटियाँ, नदियाँ, जंगल, घास के मैदान और तटीय क्षेत्र हैं। यहाँ पर तेंदुए, लकड़बग्घे, भेड़िये, लोमड़ी, सियार, हिरण, आइबेक्स, मगरमच्छ, कछुए, डॉल्फिन और प्रवासी पक्षियों सहित कई वन्य जीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
कुंड मलिर बीच: यह पाकिस्तान के सबसे खूबसूरत समुद्र तटों में से एक है, जो मकरान तट के पास हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के निकट स्थित है। यहाँ सुनहरी रेत, साफ पानी, खजूर के पेड़ और चट्टानी पहाड़ियाँ हैं। यह समुद्र तट तैराकी, धूप सेंकने, कैंपिंग और पिकनिक के लिए आदर्श है।
प्रिंसेस ऑफ होप: यह एक प्राकृतिक चट्टान संरचना है जो एक खड़ी महिला के रूप में दिखाई देती है। यह कुंड मलिर बीच के पास एक पहाड़ी पर स्थित है। इसका नाम हॉलीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जोली ने 2002 में अपनी यात्रा के दौरान रखा था।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
हिंगलाज में सती का कौन सा अंग गिरा था? सती का सिर हिंगलाज में गिरा था। इसीलिए हिंगलाज माता को हिंगुला देवी के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “हिंगुल के सिर वाली देवी।”
हिंगलाज देवी कौन हैं? हिंगलाज माता एक हिंदू देवी हैं, जिन्हें 51 शक्ति पीठों में से एक के रूप में पूजा जाता है। इन्हें हिंगुला देवी, कोटारी या कोटवी के नाम से भी जाना जाता है। उनका मंदिर बलूचिस्तान, पाकिस्तान के हिंगोल घाटी में स्थित है।
हिंगुलाम्बिका देवी कौन हैं?
हिंगुलाम्बिका देवी हिंगलाज माता का ही एक नाम है। इसका अर्थ है “हिंगुल की मूर्ति देवी।” हिंगुल एक प्रकार का खनिज है जो हिंगोल घाटी में पाया जाता है।
निष्कर्ष
हिंगलाज माता मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था, सहिष्णुता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। इसकी पौराणिक कथाएँ, इतिहास और यहाँ की धार्मिक गतिविधियाँ इसे एक विशेष स्थान बनाती हैं। यह मंदिर उन सभी के लिए एक प्रेरणा है, जो आस्था और विश्वास के पथ पर चलना चाहते हैं। हिंगलाज माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यह यात्रा न केवल शारीरिक धैर्य की, बल्कि आत्मिक समृद्धि की भी है, जो अनंत काल तक लोगों को जोड़ती रहेगी