आंध्र प्रदेश मंदिर यात्रा – आठवाँ पड़ाव अमरालिंगेश्वर (अमरेश्वर) मंदिर, अमरावती

आंध्र प्रदेश मंदिर यात्रा – आठवाँ पड़ाव अमरालिंगेश्वर (अमरेश्वर) मंदिर, अमरावती

IndoUS Tribune की “आंध्र प्रदेश मंदिर यात्रा” श्रृंखला में आपका हार्दिक स्वागत है।

इस पावन यात्रा के सात आध्यात्मिक पड़ावों को पूर्ण करने के बाद, आज हम आपको लेकर चल रहे हैं आठवें
पड़ाव पर — अमरालिंगेश्वर (अमरेश्वर) मंदिर, जो आंध्र प्रदेश के ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक नगर अमरावती
में स्थित है। कृष्णा नदी के दक्षिणी तट पर अवस्थित यह मंदिर न केवल भगवान शिव के पंचाराम क्षेत्र में से एक
है, बल्कि हिंदू और बौद्ध परंपराओं के संगम का भी अनुपम उदाहरण है।

अमरालिंगेश्वर मंदिर: आस्था, इतिहास और अद्भुत स्थापत्य का संगम

अमरालिंगेश्वर स्वामी मंदिर, जिसे अमराराम भी कहा जाता है, भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत प्राचीन
और शक्तिशाली तीर्थ है। यहां भगवान शिव की पूजा अमरेश्वर स्वामी के रूप में की जाती है और उनकी
सहधर्मिणी बाला चामुंडिका देवी हैं। यह मंदिर पंचाराम क्षेत्रों में सबसे विशाल शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है,
जिसकी ऊँचाई लगभग 15 फीट है और जिसे श्वेत संगमरमर से निर्मित माना जाता है।

पौराणिक महत्व और कथा

पुराणों के अनुसार, तारकासुर नामक असुर ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त कर देवताओं को पराजित कर दिया
था। अंततः भगवान शिव के पुत्र कुमारस्वामी (कार्तिकेय) ने उसका वध किया। तारकासुर के गले में धारण किया
गया शिवलिंग युद्ध के दौरान पाँच भागों में विभक्त हो गया, और इन्हीं पाँच स्थानों पर पंचाराम क्षेत्र स्थापित
हुए। अमरावती में स्थापित लिंग को इंद्रदेव ने प्रतिष्ठित किया, इसी कारण इसे पंचारामों में सर्वोच्च माना जाता
है।
मान्यता है कि यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था और लगातार बढ़ रहा था, जिसे रोकने के लिए उसमें एक कील
ठोकी गई। उसी स्थान पर आज भी शिवलिंग के शीर्ष पर लाल रंग का चिह्न दिखाई देता है, जिसे भक्त अत्यंत
श्रद्धा से देखते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

अमरालिंगेश्वर मंदिर का इतिहास लगभग 1800 वर्ष पुराना माना जाता है। इस क्षेत्र में कभी विश्वप्रसिद्ध
अमरावती बौद्ध स्तूप स्थित था। मंदिर निर्माण में उस स्तूप के अवशेषों के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं, जो इसे
हिंदू-बौद्ध सांस्कृतिक संगम का प्रतीक बनाते हैं।

18वीं शताब्दी में वसीरेड्डी वेंकटाद्रि नायडू, जो चिंदापल्ली और बाद में धरनिकोटा के शासक थे, ने इस मंदिर का
व्यापक जीर्णोद्धार कराया। कहा जाता है कि एक हिंसक संघर्ष के बाद वे मानसिक अशांति से ग्रस्त हो गए थे और
अमरेश्वर स्वामी की शरण में आने पर उन्हें शांति प्राप्त हुई। इसके पश्चात उन्होंने अपनी राजधानी अमरावती
स्थानांतरित की और जीवन भर शिव भक्ति में लीन रहे।

स्थापत्य विशेषताएँ

मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है और इसमें चार भव्य गोपुरम, अनेक प्राकार (परिक्रमा मार्ग) और तीन स्तरों पर
बने गर्भगृह शामिल हैं। मंदिर परिसर में काल भैरव, श्रीशैल मल्लिकार्जुन, काशी विश्वेश्वर, चंडीश्वर और
श्रीकालहस्तीश्वर जैसे विभिन्न स्वरूपों के दर्शन होते हैं।
यहाँ के संगीतात्मक स्तंभ (म्यूजिकल पिलर्स) विशेष आकर्षण हैं, जिन्हें हल्के से स्पर्श करने पर अलग-अलग स्वर
सुनाई देते हैं — प्राचीन स्थापत्य और ध्वनिविज्ञान का अद्भुत उदाहरण।

धार्मिक महत्व और फलश्रुति

स्कंद पुराण के अनुसार, जो भक्त कृष्णा नदी में स्नान कर अमरेश्वर स्वामी के दर्शन करता है, वह पापों से मुक्त
होता है। कहा जाता है कि जो श्रद्धालु यहाँ तीन दिन तक निवास कर शिव आराधना करता है, उसे शिवलोक की
प्राप्ति होती है। इस स्थान को मोक्षदायिनी भूमि भी माना गया है।

प्रमुख उत्सव

मंदिर में महाशिवरात्रि, नवरात्रि और कल्याणोत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन अवसरों पर देश-विदेश
से हजारों श्रद्धालु अमरावती पहुँचते हैं।

मंदिर समय और यात्रा जानकारी

मंदिर समय:

प्रातः 6:00 बजे से 1:00 बजे तक
सायं 4:00 बजे से 8:00 बजे तक

कैसे पहुँचे:

 हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा – विजयवाड़ा (लगभग 56 किमी)
 रेल मार्ग: निकटतम स्टेशन – पेदकुरापाडु / गुंटूर
 सड़क मार्ग: गुंटूर, विजयवाड़ा और मंगलगिरी से नियमित बस सेवाएँ उपलब्ध

समापन

अमरालिंगेश्वर मंदिर के दर्शन IndoUS Tribune की आंध्र प्रदेश मंदिर यात्रा के आठवें अध्याय को आध्यात्मिक
गहराई और ऐतिहासिक गौरव प्रदान करते हैं। यह मंदिर न केवल भगवान शिव की असीम कृपा का प्रतीक है,
बल्कि भारत की प्राचीन सांस्कृतिक निरंतरता का भी जीवंत प्रमाण है।
IndoUS Tribune की ओर से हम आशा करते हैं कि यह यात्रा आपको भारतीय सनातन परंपरा, पुराणकथाओं
और मंदिर स्थापत्य की दिव्यता से निरंतर जोड़ती रहेगी।

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