March 10, 2025
हरिद्वार मंदिर यात्रा श्रृंखला: दूसरी यात्रा – श्री चंडी देवी मंदिर
Dharam Karam

हरिद्वार मंदिर यात्रा श्रृंखला: दूसरी यात्रा – श्री चंडी देवी मंदिर

इंडोयूएस ट्रिब्यून के धर्म कर्म अनुभाग में हम आपके लिए लेकर आए हैं हरिद्वार मंदिर यात्रा की एक विशेष
श्रृंखला। इस श्रृंखला में हम आपको हरिद्वार के प्रमुख धार्मिक स्थलों के दर्शन कराएंगे। हरिद्वार, जिसे देवभूमि का
प्रवेश द्वार माना जाता है, आध्यात्मिकता, भक्ति और दिव्यता का संगम प्रस्तुत करता है। इस यात्रा की दूसरी
कड़ी में हम आपको लेकर चलेंगे श्री चंडी देवी मंदिर के दर्शन के लिए, जो सिद्धपीठों में एक प्रमुख स्थान रखता
है।

श्री माँ चंडी देवी मंदिर, हरिद्वार

इच्छाओं को पूर्ण करने वाला पवित्र स्थल

हरिद्वार अपने प्राचीन मंदिरों, आश्रमों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इस पवित्र नगर में स्थित चंडी देवी
मंदिर, माँ चंडी को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो बुरी शक्तियों का नाश करने वाली देवी मानी जाती हैं। यह
मंदिर नील पर्वत की चोटी पर स्थित है और इसे ‘नील पर्वत तीर्थ’ भी कहा जाता है, जो हरिद्वार के पाँच पवित्र
तीर्थों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई श्रद्धालु सच्चे मन से यहाँ आकर माँ चंडी से प्रार्थना करता है,
तो उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। इसी कारण इसे सिद्धपीठ भी कहा जाता है। हरिद्वार में स्थित अन्य दो
सिद्धपीठों में मनसा देवी मंदिर और माया देवी मंदिर शामिल हैं।

मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना का मुख्य श्रेय कश्मीर के राजा सुचत सिंह को जाता है, जिन्होंने 1929
में इसका निर्माण कराया था। लेकिन इस मंदिर की प्रतिमा का इतिहास 8वीं शताब्दी तक जाता है, जब आदि
शंकराचार्य ने यहाँ माँ चंडी देवी की स्थापना की थी। आदि शंकराचार्य के इस कार्य का उद्देश्य हिमालय की
आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करना था।

राक्षसों का संहार करने वाली देवी

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वर्ग के राजा इंद्र पर दानवों के राजा शुंभ और निशुंभ ने आक्रमण कर दिया
था। उन्होंने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, जिसके कारण माँ पार्वती के तेज से देवी चंडिका प्रकट
हुईं। शुंभ ने देवी चंडिका के सौंदर्य से मोहित होकर विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे देवी ने अस्वीकार कर दिया।
इसके बाद एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें माँ चंडी ने चंड-मुंड नामक राक्षसों का वध किया और अंततः शुंभ-
निशुंभ का भी संहार किया। यह माना जाता है कि यह युद्ध नील पर्वत पर हुआ था, और इसी कारण यहाँ माँ
चंडी देवी का भव्य मंदिर स्थित है।
मंदिर तक पहुँचने के रास्ते

  1. पैदल यात्रा:
    o यदि आप रोमांच और प्रकृति के साथ मंदिर तक पहुँचना चाहते हैं, तो चंडी घाट से लगभग 3
    किलोमीटर की चढ़ाई करनी होगी। यह ट्रैकिंग मार्ग प्रकृति प्रेमियों और साहसिक यात्रियों के
    लिए विशेष आकर्षण रखता है।
  2. उड़नखटोला (रोपवे):
    o अगर आप पैदल यात्रा नहीं करना चाहते, तो आप उड़नखटोला (रोपवे) का सहारा ले सकते हैं।
    कुछ ही मिनटों में यह आपको मंदिर तक पहुँचा देता है और इस दौरान आप गंगा नदी और
    हरिद्वार के अद्भुत दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।

मंदिर दर्शन का समय

 खुलने का समय: प्रातः 06:00 बजे
 बंद होने का समय: रात्रि 08:00 बजे
मंदिर तक पहुँचने के अन्य साधन
 बस द्वारा: ऋषिकेश से हरिद्वार आने के लिए बस स्टैंड से स्थानीय बस ली जा सकती है। यात्रा में
लगभग एक घंटा लगता है।
 ऑटो रिक्शा द्वारा: हरिद्वार बस स्टॉप से साझा ऑटो-रिक्शा लिया जा सकता है, जो लगभग 20 मिनट
में मंदिर के आधार तक पहुँचा देता है।
 केबल कार द्वारा: मंदिर के आधार स्थल पर केबल कार सेवा उपलब्ध है, जो केवल 10 मिनट में आपको
मंदिर तक पहुँचा देती है।

सबसे अच्छा समय दर्शन के लिए

माँ चंडी देवी के दर्शन सालभर किए जा सकते हैं, लेकिन नवरात्रि (चैत्र एवं आश्विन मास) के समय यहाँ विशेष
रूप से भक्तों की भीड़ रहती है। यदि आप हरिद्वार के प्राकृतिक सौंदर्य का पूरा आनंद लेना चाहते हैं, तो अक्टूबर
से मार्च के बीच की यात्रा सबसे उत्तम मानी जाती है।

हरिद्वार की इस पवित्र यात्रा में श्री चंडी देवी मंदिर के दर्शन करना न केवल धार्मिक अनुभव देता है बल्कि प्रकृति
की सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा का भी अनुभव कराता है। यदि आप हरिद्वार की यात्रा की योजना बना रहे हैं,
तो माँ चंडी देवी के दर्शन अवश्य करें और उनकी कृपा प्राप्त करें।

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