आंध्र प्रदेश: तीसरा पड़ाव – कनक दुर्गा मंदिर (विजयवाड़ा)

आंध्र प्रदेश: तीसरा पड़ाव – कनक दुर्गा मंदिर (विजयवाड़ा)

IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में आपका स्वागत है! इस श्रृंखला के पहले पड़ाव पर हमने तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के दिव्य दर्शन किए थे, और दूसरे पड़ाव पर पहुँचे श्रीकालहस्ती मंदिर (चित्तूर) — जहाँ भगवान शिव वायु तत्व के रूप में पूजित हैं। अब हम आंध्र प्रदेश की तीसरी महत्वपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा पर निकलते हैं — विजयवाड़ा के प्रसिद्ध कनकादुर्गा मंदिर की ओर। यह मंदिर शक्ति, समृद्धि और दया की देवी कनकादुर्गा को समर्पित है और यहां लाखों श्रद्धालु विशेष रूप से नवरात्रि के पावन अवसर पर पहुंचते हैं। यह प्राचीन मंदिर इंद्रकीलाद्री पर्वत पर स्थित है, जो पवित्र कृष्णा नदी के किनारे है और ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कथाओं से भरा हुआ है।

इंद्रकीलाद्री अद्वितीय है क्योंकि यह कनकादुर्गा और मल्लेश्वर के स्वयंभू स्वरूप का निवास स्थान है। यहां देवी मल्लेश्वर के दाईं ओर स्थित हैं, जो सामान्य परंपरा के विपरीत है, जिसमें देवीयां अपने पति के बाईं ओर बैठती हैं। इस परंपरा से स्पष्ट होता है कि इंद्रकीलाद्री में शक्ति की प्रधानता है। यहां देवी का रूप उत्तर-पूर्व की ओर दृष्टि बनाए हुए शांत और आनंदमय मुस्कान के साथ दिखता है, जिससे भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कनकादुर्गा मंदिर का आधिकारिक नाम श्री दुर्गा मल्लेश्वर स्वामीवरला देवस्थानम है। मंदिर में देवी का आठ भुजाओं वाला रूप है, प्रत्येक भुजा में शक्तिशाली अस्त्र है और देवी महिषासुर पर खड़ी होकर त्रिशूल से उसे परास्त करती हैं। यह मंदिर विजयवाड़ा के निवासियों के लिए अत्यंत पूजनीय है और देवी की शक्ति, सुंदरता और करुणा का प्रतीक है।

मंदिर का इतिहास भी गौरवपूर्ण है। यहाँ 1229 ईस्वी का एक तेलुगु शिलालेख मिला है, जो चोल वंश के समय का है और जिसने दक्षिणी वाराणसी यानी इंद्रकीलाद्री में मंदिर को दान देने का उल्लेख किया है। मंदिर परिसर में मल्लेश्वर स्वामी, नटराज और कार्तिकेय, वल्ली और देवसेना जैसे कई उप-देवता भी हैं। हनुमानजी मंदिर के क्षेत्रपाल हैं और उनके पीछे अपराजिता देवी की प्रतिमा है।

विजयवाड़ा में कनकादुर्गा मंदिर का भव्य नवरात्रि उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है। दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में देवी के दस रूपों की पूजा की जाती है — स्वर्ण कवरचालंकृत दुर्गा, बाल त्रिपुरासुंदरी, अन्नपूर्णा, गायत्री, ललिता त्रिपुरा सुंदरी, सरस्वती, महालक्ष्मी, दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी और राजा राजेश्वरी देवी। इस दौरान श्रद्धालु पवित्र कृष्णा नदी में स्नान करते हैं और देवी की कृपा प्राप्त करते हैं।

सड़क और परिवहन की दृष्टि से यह मंदिर विजयवाड़ा शहर के केंद्र में स्थित है। रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से मात्र 10 मिनट की दूरी पर है और हवाई अड्डा 20 किलोमीटर दूर है। मंदिर के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। आषाढ़ महीने में आयोजित साकंभरी महोत्सव में देवी के अन्न, फसल और भोजन की समृद्धि के लिए विशेष पूजा की जाती है।

कनकादुर्गा मंदिर के दर्शन हमारी आंध्र प्रदेश यात्रा का तीसरा पड़ाव हैं — एक ऐसा अनुभव जो भक्तों को शक्ति, भक्ति और धार्मिक परंपरा से जोड़ता है। IndoUS Tribune की इस श्रृंखला के माध्यम से हम आशा करते हैं कि आप भी इस दिव्य यात्रा का हिस्सा बनेंगे और भारतीय संस्कृति की समृद्ध आध्यात्मिक धरोहर का अनुभव करेंगे। हमारे अगले पड़ाव में हम पहुँचेंगे सिंहाचलम मंदिर (विशाखापत्तनम) — जहाँ भगवान वेंकटेश्वर का भव्य रूप और दक्षिण भारत की प्राचीन स्थापत्य कला का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा।

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