
वृंदावन: चौथा पड़ाव – श्री राधा वल्लभ मंदिर में दर्शन
IndoUS Tribune की आध्यात्मिक श्रृंखला ‘यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर’ में आपका हार्दिक स्वागत है। यह श्रृंखला केवल मंदिर दर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि एक गहन यात्रा है — उन लीलाओं, परंपराओं और भक्ति रस की, जो युगों से इस पावन भूमि में प्रवाहित होती आ रही हैं।
वृंदावन की पवित्र धूल में, जहाँ हर कण में राधा-कृष्ण की रासलीलाओं की गूंज है, हमारा अगला पड़ाव है
श्री राधा वल्लभ मंदिर, जो रस-भक्ति की पराकाष्ठा का जीवंत केंद्र है।
श्री राधा वल्लभ मंदिर: भक्ति, इतिहास और चमत्कार का संगम
स्थापना और परंपरा
श्री राधा वल्लभ मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई थी। इसके संस्थापक हिथ हरिवंश महाप्रभु थे, जिन्हें भगवान कृष्ण की मुरली का अवतार माना जाता है। उनके शिष्य सुंदरदास भटनागर ने 1585 ई. में इस मंदिर का निर्माण करवाया। सुंदरदास मुगल सम्राट अकबर के दरबार में नवरत्न अब्दुल रहीम खानखाना के अधीन कार्यरत थे।
उन्हीं के माध्यम से उन्होंने लाल बलुआ पत्थर (जो उस काल में केवल शाही इमारतों में उपयोग होता था) के प्रयोग की अनुमति प्राप्त की और आर्थिक सहायता भी मुगल दरबार से प्राप्त हुई। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि उस काल में भी आध्यात्मिक स्थलों के लिए सामाजिक और राजनीतिक समर्थन संभव था।
भगवान राधा वल्लभ की दिव्य मूर्ति
एक प्राचीन किंवदंती के अनुसार, यह विग्रह किसी मूर्तिकार की रचना नहीं है। भगवान शिव ने अपने परम भक्त आत्मदेव ब्राह्मण को अपनी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर, अपने हृदय से श्री राधा वल्लभ जी की यह मूर्ति प्रदान की थी।
बाद में आत्मदेव की दो कन्याओं का विवाह हिथ हरिवंश महाप्रभु से हुआ और यह विग्रह उनके साथ चारथावल गाँव से वृंदावन लाया गया।
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण “राधा वल्लभ” — अर्थात राधा के प्रियतम — के रूप में पूजित होते हैं। श्रीराधा की मूर्ति का स्थान एक सुंदर मुकुट ने ले लिया है जो साक्षात देवी की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
वास्तुशिल्प और मंदिर का स्वरूप
श्री राधा वल्लभ मंदिर वृंदावन के गोतम नगर क्षेत्र में, बांके बिहारी मंदिर के समीप स्थित है।
यह लाल बलुए पत्थर से निर्मित है — वही पत्थर जो उस समय केवल राजमहलों और किलों में प्रयुक्त होते थे।
मंदिर की दीवारें लगभग 10 फीट मोटी हैं और दो स्तरों में बनी हैं। इसकी भव्यता और दिव्यता, भक्तों के हृदय में श्रद्धा का संचार करती है।
मंदिर का गर्भगृह, शिखर और स्तंभ भारतीय मंदिर वास्तु परंपरा के उत्कर्ष को दर्शाते हैं।
प्रमुख पर्व और उत्सव
श्री राधा वल्लभ मंदिर में कई वार्षिक उत्सव अत्यंत भव्यता से मनाए जाते हैं:
- हितोत्सव – 11 दिवसीय उत्सव, जिसमें हिथ हरिवंश महाप्रभु की लीलाओं, शिक्षाओं और काव्य का स्मरण होता है।
- राधाष्टमी – श्री राधारानी के जन्मोत्सव पर 9 दिन तक चलने वाला भावमय उत्सव।
- कृष्ण जन्माष्टमी – रात्रि भर भजन, कीर्तन, रास-लीला के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य मनाया जाता है।
- व्याहलू उत्सव (मनोरथ उत्सव) – राधा-कृष्ण के विवाह की रस-परंपरा को जीवंत करती यह लीला, भक्तों को अनुपम रसिक भाव में सराबोर कर देती है।
- अन्य उत्सव – होली, दीवाली, झूलन उत्सव, फूल बंगला, सांझी, शरद पूर्णिमा, पतोत्सव आदि।
दर्शन और आरती समय
गर्मी में:
- मंगला आरती: 05:30 AM
- श्रृंगार आरती: 08:15 AM
- राजभोग आरती: 12:45 PM
- संध्या आरती: 05:30 PM
- शयन आरती: 09:00 PM
- समाज गायन: 07:30 PM
सर्दियों में:
- मंगला आरती: 07:00 AM
- श्रृंगार आरती: 08:35 AM
- राजभोग आरती: 12:30 PM
- संध्या आरती: 05:30 PM
- शयन आरती: 08:15 PM
- समाज गायन: 07:00 PM
भक्ति का केंद्र: श्री राधा वल्लभ मंदिर
श्री राधा वल्लभ मंदिर केवल एक स्थापत्य चमत्कार नहीं — यह जीवंत भक्ति रस का केन्द्र है।
यहाँ दर्शन मात्र से भक्त को ‘विरह’ और ‘संयोग’ के भावों की अद्वितीय अनुभूति होती है।
हिथ हरिवंश जी ने जिस प्रकार से भक्ति के रस में डूबकर राधा-कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया, वह आज भी समाज गायन की परंपरा के रूप में जीवित है।
यह मंदिर उस विचार को भी पुष्ट करता है कि भक्ति में भगवान स्वयं भक्त के चरणों में आ जाते हैं — और ‘प्रेम’ सबसे ऊँचा धर्म है।
IndoUS Tribune की यह श्रृंखला केवल मंदिरों का दौरा नहीं, बल्कि सनातन परंपरा, प्रेम और भक्ति का सजीव अनुभव है।
श्री राधा वल्लभ मंदिर — जहाँ राधा और कृष्ण एकत्व रूप में पूजित होते हैं — वहाँ मन और आत्मा दोनों अलौकिक आनंद में लीन हो जाते हैं।
अगली कड़ी में हम चलेंगे श्री गोविंद देव जी मंदिर, जो वास्तुकला, इतिहास और भक्तिभाव का एक अप्रतिम संगम है।
तब तक के लिए, श्री राधा वल्लभ जी की मुस्कान और श्रीराधा रानी की करुणा आपके जीवन को प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से आलोकित करती रहे।
राधे राधे!