प्रगट हुए मेरे रघुराई- सबको बधाई हो बधाई!!

प्रगट हुए मेरे रघुराई- सबको बधाई हो बधाई!!

By: Rajendra Kapil

राम नवमी के पुनीत अवसर पर रामजी के जन्म का उत्साह, विश्व के सनातन हिन्दु समाज में, चरम सीमा पर
है. हर कोई राम जन्मोत्सव की भरपूर तैयारी में है. विश्व भर में, जहाँ कहीं राम भक्त हैं, घरों और मंदिरों को
सजाने में व्यस्त हैं. चैत्र माह की नवरात्रि और फिर राम नवमी का जोश, सोने पर सुहागे वाली स्थिति है. बसंत
ऋतु चारों ओर अपनी नयी ऊर्जा बिखेर रही है. रामजन्म के कई कारणों का उल्लेख रामचरितमानस में है.
उनमें से यह तीन प्रमुख हैं. एक मनु और शतरूपा जैसे संत दंपति को दिए वरदान का मान रखना, दूसरा नारद
जैसे भक्तों के श्राप को चरितार्थ करना. और तीसरा संसार से रावण जैसे दुष्ट असुरों का सफ़ाया करना. गीता में
भी भगवान कृष्ण ने यही कहा है:

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥


जब जब धर्म की हानि हद से गुजर जाती है, तो मैं धर्म को पुन: स्थापित करने के लिए और दुष्टों के विनाश के
लिए हर युग में प्रगट होता हूँ.

मानस के बालकाण्ड में उल्लेख आता है कि, जब राजा दशरथ अधेड़ उम्र तक पिता नहीं बन पाए, तो उन्हें यह
कमी काफ़ी सताने लगी. एक दिन वह गुरु वसिष्ठ के पास गए, और इस समस्या का समाधान सुझाने की विनती
करने लगे. गुरुजी ने पुत्रेष्टि यज्ञ की सलाह दी, और बताया कि, यह यज्ञ ऋषि शृंगी से करवाना चाहिए:

एक बार भूपति मन माही, भै गलानी मोरे सुत नाहीं
गुर गृह गयउ तुरत महिपाला, चरन लागि करि बिनय बिसाला
सृंगी रिशिहि बसिष्ठ बुलावा, पुत्रकाम सुभ जग्य करावा
भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें, प्रगटे अगिनी चरु कर लीन्हे


ऋषि शृंगी ने विधिवत पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. यज्ञ में अग्निदेव की कृपा से खीर का एक कटोरा प्रसाद रूप में प्रगट
हुआ, जिसे ऋषि ने राजा दशरथ को, यह कह कर दिया कि, इसे आप अपनी सारी रानियों में यथायोग्य रूप से
बाँट दें. महाराज दशरथ ने ऋषि की आज्ञा का पालन कर, तीनों रानियों में बाँट दिया.

अर्ध भाग कौसल्यहि दीन्हा, उभय भाग आधे कर कीन्हा
कैकेई कहँ नृप सो दयऊ, रहयो सो उभय भाग पुनि भयऊ

आधा कटोरा कौसल्या जी को दिया गया. बाक़ी बचे हिस्से का आधा हिस्सा माँ कैकेई को दिया गया. बाक़ी बचे
हिस्से के पुन: दो हिस्से कर माता सुमित्रा को खिलाए गए. इस प्रकार खीर का प्रसाद पा कर एवं प्रभुके परम

कृपा से समय पाकर, तीनों रानियाँ गर्भवती हो गईं. और इस समाचार को पाकर अयोध्या में ख़ुशी की लहर
फैल गई. देवता गण भी प्रसन्न हो उठे और उन्होंने अवध में सुख और सम्पदा के अम्बार लगा दिए.

जा दिन ते हरि गर्भहि आए, सकल लोक सुख संपत्ति छाए
मंदिर महँ सब राजहि रानी, सोभा सील तेज की खानी


समय पाकर वह शुभ दिन भी आ पहुँचा, जब तीनों रानियों ने चार सुंदर राज कुमारों को जन्म दिया. उस
तिथि को तुलसी बाबा ने बड़े प्यार से इतिहास के पन्नों पर लिख दिया.

नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता
मध्य दिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा

चैत्र का पुनीत महीना था. नौमी तिथि थी. सुंदर अभिजित मुहूर्त था. दिन में दोपहर 12 बजे का समय ( मध्य
दिवस) था. उस समय न ज़्यादा सर्दी थी, न ही ज़्यादा गर्मी थी. ऐसे सुंदर समय में रामजी का अवतरण
अयोध्या जैसी पावन नगरी में हुआ. साथ ही जन्मे उनके तीनों भाई. माँ कैकेयी ने भरत लाल को जन्म दिया
और माँ सुमित्रा के यहाँ आये दो सुंदर राजकुमार लक्ष्मण और शत्रुघ्न.  राम जन्म के अवसर पर देवता गण अपने
अपने विमानों में सवार होकर अयोध्या के आकाश में आ विराजे और अंजलियाँ भर भर कर फूलों की वर्षा करने
लगे.  अवध में यह समाचार आग की तरह, कुछ ही क्षणों में फैल गया. लोग ढोल नगाड़े बजाने लगे. जगह जगह
शहनाइयों और दुंदुंभियाँ का मधुर स्वर तरंगित होने लगा.  चारों ओर ख़ुशी की लहर से, अवध वासी सड़कों
पर निकल नृत्य करने लगे. आकाश से देवता फूल  बरसा  रहे थे और धरती पर अयोध्या वासी झूम रहे थे.
तुलसी बाबा से भी रहा नहीं गया. वह भी झूम कर गाने लगे:

भए प्रकट कृपाला दीन दयाला, कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप निहारी ॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी ।
भूषण बन माला, नयन बिसाला, शोभा सिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि विधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, बेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रकट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहे ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहे ॥

उपजा जब ज्ञाना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहे ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहे ॥
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहुँ तात यह रूपा ।
कीजे सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा ॥

राम जन्म की यह मधुर स्तुति हर राम भक्त के घर में गाई जाती है. बाबा लिखते हैं, दीनों पर दया करने वाले
और माँ कौशल्या के परम हितकारी परम कृपालु रामजी इस पावन धरती पर प्रगट हो गए हैं. उनका रूप मुनियों
के मन को भाने वाला है. माता के हृदय को अति प्रसन्न करने वाला है. माँ कौशल्या उनके सामने हाथ जोड़,
हतप्रभ से खड़ी, पूछने लगी. हे प्रभु, हम साधारण जीव आपकी स्तुति किस प्रकार करें? आप तो हमारे मन और
बुद्धि से परे हैं. लेकिन आप हमारे कल्याण के लिए यहाँ प्रगट हुए. माँ को बड़ा अचम्भा हो रहा है. वोह ब्रह्म
जिसके रोम रोम में वेदों का वास है, जिनके हृदय में अनेकों लोक समाये हुए हैं, आज उसी माँ के सामने, एक बाल
रूप में प्रगट हो सामने खड़े हैं. माँ को लगा इस घटना को सुन विवेकी जन हँसेंगे. प्रभु को अचानक लगा, माँ
अपना वात्सल्य भूल एक अति विद्वान संत की तरह सोचने लगी है. उन्हें यह भान होते ही वह मुस्कुराने लगे.

उन्होंने तुरंत माँ के मन मस्तिष्क से ज्ञान का आवरण हटा, वात्सल्य का भाव जागृत कर दिया.  दूसरे ही क्षण, माँ
कौशल्या बोल उठीं, हे प्रभु, आप अब एक प्यारे से शिशु बन मेरी गोद को आनन्द से भर दो. अपनी प्रिय
शिशुलीला से मेरे आँगन को अपनी किलकारियों से भर दो. बस फिर क्या था? प्रभु तुरंत एक नवजात शिशु बन
माँ की गोद में पहुँच, रोने लगे.  इसे देख तुलसी बाबा लिखते हैं कि, अनंत ब्रह्मांड के नायक के इस विचित्र रूप
को, जो भक्त रामजी के चरित का गान करेंगे, उन्हें इस भव सागर में कभी भी नहीं भटकना पड़ेगा. बल्कि उन्हें
हरि पद सहज ही प्राप्त ही जाएगा. उन भक्तों के लिए, जिन्हें यह भ्रम हो सकता है कि, भगवान किसी स्त्री के गर्भ
से जन्म कैसे ले सकते हैं, बाबा ने यह दोहा लिखा:

विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार
निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गोपार


प्रभु ने जन्म नहीं लिया, बल्कि ब्राह्मण, गौ, देवता और संतों के कल्याण के लिए अपनी इच्छा से अपने शरीर का
निर्माण कर धरती पर अवतार लिया.

जैसे ही सेवकों ने राम जन्म का समाचार महाराज दशरथ को सुनाया, तो उसे सुन महाराज अति प्रसन्न हुए. उन्हें
लगा, मानो उन्होंने कोई ब्रह्मानंद पा लिया हो. शरीर पुलकित होने लगा. भाव विह्वल हो, महाराज दशरथ
सभी राज दरबारियों को उपहार बाँटने लगे. जैसे ही थोड़ा संभले, उन्होंने गुरु वशिष्ठ को बुलावा भेजा. ताकि
आगे की जो भी विधिवत प्रक्रिया है, उसे किया जा सके. पूरी अयोध्या फूल मालाओं से सजने लगी. घर आँगनों में
रंगोली से मंगल चिन्ह सजाये जाने लगे. घर घर बधाई बँटने लगी. लोग एक दूसरे का मिठाई से, स्वागत करने
लगे. सुहागन स्त्रियों मंगल गान गाने लगी. महाराज ने राज्य कोष खोल दिए. याचकों को विविध प्रकार के
उपहार मिलने लगे. लेकिन मज़ेदार बात यह है कि, उन याचकों ने उपहारों को संजोने की बजाय, उन्हें आगे
बाँटना शुरू कर दिया. रामजन्म का समाचार ही उनका सबसे बड़ा उपहार था.

सर्बस दान दीन्ह सब काहू, जेहि पावा राखा नहि ताहू
मृगमद चंदन कुंकुम कीचा, मची सकल बीथीन्नह बिच बीचा


गली कूचों में केसर और चंदन के तिलक होने लगे. इतना चंदन एक दूसरे का लगाया जाने लगा कि, गली में चंदन
और केसर कीचड़ सा ही गया. अवध वासी राम जन्म की मस्ती में झूमते गाते बसी यही कहते मिले:

आज अवध में प्रगटे अपने रघुराई
सब मिल गावो मंगल गीत,
बधाई हो, भई सबको बधाई


सभी राम भक्तों को इस पावन राम नवमी की, हम सब की तरफ़ से ढेर सारी बधाई! जय सिया राम!!!!

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