
आंध्र प्रदेश: चौथा पड़ाव – श्री सिम्हाचलम मंदिर (विशाखा पट्टनम)
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला
IndoUS Tribune की विशेष श्रृंखला “यात्रा और दर्शन” में आपका पुनः हार्दिक स्वागत है। तिरुमला वेंकटेश्वर,
श्रीकालहस्ती और श्री कुरम मंदिरों के पवित्र दर्शन के बाद अब हमारी यात्रा पहुँच रही है आंध्र प्रदेश के एक
अत्यंत महत्वपूर्ण और दिव्य तीर्थ—श्री सिम्हाचलम मंदिर।
विशाखापट्टनम की सिम्हाचलम पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर भगवान विष्णु के वराह-लक्ष्मी नरसिंह स्वरूप को
समर्पित है, जहाँ भक्तों को अद्भुत शांति, शक्ति और आस्था का अनुभव होता है।
श्री सिम्हाचलम मंदिर: भगवान वराह-लक्ष्मी नरसिंह का दिव्य धाम
श्री सिम्हाचलम मंदिर, जिसे श्री वराह लक्ष्मी नरसिंह स्वामी मंदिर भी कहा जाता है, आंध्र प्रदेश का एक
प्राचीन, ऐतिहासिक और अत्यंत शक्तिशाली तीर्थ स्थल है। यह मंदिर विशाखापट्टनम शहर से लगभग 16
किलोमीटर दूर सिम्हाचलम पहाड़ी पर स्थित है और समुद्र तल से लगभग 300 मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने
के कारण यह आसपास की पहाड़ियों और शहर का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है।
मुख्य विशेषताएँ
- प्रमुख देवता — वराह-नरसिंह स्वरूप
यहाँ भगवान विष्णु के अद्वितीय वराह-नरसिंह रूप की पूजा होती है — जिसमें मानव शरीर, वराह के दाँत और
नरसिंह का उग्र तेज एक साथ प्रकट होते हैं। - अद्वितीय प्रतिमा
यह प्रतिमा पूरे वर्ष चंदन के लेप से ढकी रहती है और केवल अक्षय तृतीया (चंदनोत्सव) के दिन ही इसका पूर्ण
स्वरूप दर्शन के लिए खुलता है। चंदन लेप के कारण प्रतिमा शिवलिंग जैसी प्रतीत होती है। - स्थापत्य कला
मंदिर का निर्माण कलिंग- द्रविड़ शैली में हुआ है।
इसमें —
तीन प्राकार
पाँच द्वार
लगभग 1000 सीढ़ियों वाला मार्ग
सुंदर नृत्यमंडप
उत्कृष्ट नक्काशी वाले स्तंभ
दर्शनीय हैं।
मंदिर का गर्भगृह पश्चिममुखी है — जो भारतीय मंदिरों में अत्यंत दुर्लभ माना जाता है।
- ऐतिहासिक महत्व
मंदिर का इतिहास लगभग 1000 वर्षों से भी पुराना है।
यहाँ चोल, पूर्वी गंग राजवंश, गजपति, विजयनगर साम्राज्य आदि अनेक राजवंशों के अभिलेख मिलते हैं।
वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण पूर्वी गंग राजवंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं सदी में कराया गया था।
सिम्हाचलम की पुराण कथाएँ और उत्पत्ति
प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु और भगवान नरसिंह की कथा
श्री सिम्हाचलम का उल्लेख विष्णु पुराण और भागवत पुराण में मिलता है।
कथा है कि —
प्रह्लाद को बचाने के लिए भगवान विष्णु पहले वराह रूप में प्रकट हुए और हिरण्याक्ष का वध किया।
बाद में वह नरसिंह रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकशिपु का संहार किया।
प्रह्लाद ने भगवान से वराह और नरसिंह दोनों के संयुक्त स्वरूप की स्थापना का आग्रह किया।
उसी स्थान पर इस मंदिर की स्थापना हुई।
उर्वशी और पुरुरवा की कथा
कहा जाता है कि एक काल में मूल मंदिर मिट्टी में दब गया था।
राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी ने यहाँ तप करके प्रतिमा को पुनः खोज निकाला और फिर से प्रतिष्ठित किया।
रामानुजाचार्य का आगमन
11वीं शताब्दी में श्री रामानुजाचार्य ने यहाँ आकर मंदिर को वैष्णव परंपरा में पुनर्स्थापित किया और चंदन-लेप
की परंपरा को कायम रखने का आदेश दिया।
कैसे पहुँचें (Travel Guide)
सड़क मार्ग:
विशाखापट्टनम से टैक्सी, ऑटो, बस द्वारा आसानी से पहुँच सकते हैं।
वायु मार्ग:
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा — विशाखापट्टनम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (14 किमी)
रेल मार्ग:
सबसे नजदीकी बड़ा स्टेशन — विशाखापट्टनम रेलवे स्टेशन (18 किमी)
मुख्य उत्सव
- चंदनोत्सव (अक्षय तृतीया)
इस दिन प्रतिमा से चंदन हटाया जाता है और भक्त भगवान के वास्तविक स्वरूप के दर्शन करते हैं। - सहस्रकलशाभिषेक, चंदनाभिषेक
विशेष पूजा और अभिषेक पूरे वर्ष आयोजित होते रहते हैं।
प्रसाद, दर्शन और अन्य आकर्षण
कप्पम स्तंभ — जिसे स्पर्श करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होने की मान्यता है
नृत्यमंडप की 96 खूबसूरत प्रतिमाएँ
माता सिंहावल्ली अम्मावरु का मंदिर
पहाड़ी से समुद्र और शहर का विहंगम दृश्य
अंतिम विचार – अगले पड़ाव पर मिलते हैं
सिम्हाचलम मंदिर का दिव्य आशीर्वाद हमारी “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला को और अधिक पवित्र और समृद्ध
बनाता है।
भगवान वराह-लक्ष्मी नरसिंह के चरणों में समर्पित यह स्थल भारतीय आस्था, परंपरा और शास्त्रीय वास्तुकला
का अद्भुत संगम है।
IndoUS Tribune की ओर से —
हम आशा करते हैं कि यह चौथा पड़ाव भी आपकी आध्यात्मिक यात्रा को प्रेरणा और शांति प्रदान करेगा।
अगला पड़ाव:
अब हमारी यात्रा आगे बढ़ती है अहोबिलम मंदिर (कर्नूल) — जहाँ भगवान नरसिंह के नौ रूपों के दिव्य दर्शन
होते हैं।
तब तक के लिए —
भगवान वराह-लक्ष्मी नरसिंह स्वामी की कृपा आपके जीवन में शक्ति, सुरक्षा और आनंद लेकर आए।