
IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा का 17वाँ पड़ाव
वैष्णो देवी मंदिर – माँ की भक्ति, शक्ति और शरण का जीवंत प्रतीक
हरिद्वार — गंगा के किनारे बसे इस पावन नगरी में जहाँ हर मंदिर एक नई कथा कहता है, IndoUS Tribune की मंदिर यात्रा के सत्रहवें चरण में हम पहुँचे हैं वैष्णो देवी मंदिर — एक ऐसा स्थल जहाँ भक्त माँ की गुफा में प्रवेश कर केवल मूर्ति के नहीं, बल्कि आत्मा के दर्शन करते हैं। यह मंदिर हरिद्वार के जगदीश नगर, ज्वालापुर क्षेत्र में स्थित है और अपने विशिष्ट स्थापत्य, सुरंगनुमा प्रवेशद्वारों और आध्यात्मिक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।
सुरंगों से मंदिर तक – एक आंतरिक यात्रा
वैष्णो देवी मंदिर में प्रवेश करते ही श्रद्धालु एक ऐसी यात्रा पर निकलते हैं जो केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी है।मंदिर की संरचना इस प्रकार की गई है कि दर्शन से पहले भक्तों को एक संकरी सुरंग से होकर गुजरना होता है — यह प्रतीक है जीवन की कठिनाइयों और आत्मिक खोज
की उस संकरी राह का, जहाँ अंतिम लक्ष्य मोक्ष है।
इस गुफा-यात्रा में पग-पग पर सजग रहना पड़ता है — श्रद्धालु हाथों से दीवारों को छूते हुए, सिर झुकाते हुए, और कभी-कभी रेंगते हुए माँ के दर्शन तक पहुँचते हैं। यह यात्रा एक विशेष प्रकार का आत्म-समर्पण मांगती है — अहं का विसर्जन और भक्ति का पूर्ण समर्पण।
तीन देवियों का सजीव स्वरूप
मंदिर के गर्भगृह में पहुँचते ही भक्तों को माँ वैष्णो देवी के दर्शन होते हैं, जो लक्ष्मी, काली और सरस्वती के त्रिदेवियों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। तीनों मूर्तियाँ अलग-अलग प्रतीकों को दर्शाती हैं —
- लक्ष्मी: समृद्धि और संतुलन
- काली: शक्ति और अज्ञान का विनाश
- सरस्वती: ज्ञान और बुद्धि की देवी
यहाँ दर्शन मात्र से ही एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है, जो व्यक्ति को भीतर तक झकझोर देती है।
12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन – भारत के तीर्थों की झलक
इस मंदिर की विशेषता यह भी है कि इसके परिसर में भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों की सुंदर और यथासंभव सजीव प्रतिकृतियाँ निर्मित की गई हैं। काशी विश्वनाथ से लेकर सोमनाथ तक, प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान और विवरण दिया गया है, जिससे श्रद्धालु बिना देश की लंबी यात्रा किए ही इन पवित्र स्थलों के दर्शन कर पाते हैं।
पौराणिक कथा और त्रिकुटा की भक्ति
मंदिर से जुड़ी कथा अत्यंत मार्मिक और प्रेरणादायक है। त्रिकुटा नामक एक युवती ने बाल्यकाल से ही भगवान राम को पति रूप में स्वीकार कर लिया था और कठोर तपस्या के माध्यम से उन्हें पाने का प्रयास किया। भगवान राम ने त्रिकुटा की भक्ति से प्रसन्न होकर वचन दिया कि वे कलियुग में माँ वैष्णो देवी के रूप में पूजी जाएँगी। यही त्रिकुटा, माँ वैष्णो देवी के रूप में विख्यात हुईं।
यह कथा उस नारी शक्ति की याद दिलाती है, जो समर्पण और साधना से ब्रह्मांड को भी प्रभावित कर सकती है।
हरिद्वार का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रंग
मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही चारों ओर एक अद्भुत शांति का अनुभव होता है। चिर–परिचित घंटियों की मधुर ध्वनि, अगरबत्तियों की सुगंध, और भक्तों के स्वर मंदिर को जीवंत बना देते हैं। यहाँ के पुजारी न केवल विनम्र और सेवा-भाव से ओतप्रोत हैं, बल्कि हर श्रद्धालु को व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन भी देते हैं।
त्योहारों के समय — विशेषकर नवरात्रि, दुर्गाष्टमी, और रामनवमी के अवसर पर — मंदिर का वातावरण और भी आध्यात्मिक हो उठता है। रंगीन झाँकियाँ, संकीर्तन, भजन संध्या और दीपमालिका की सजावट इस स्थान को एक दिव्य लोक में बदल देती है।
गंगा के दर्शन – भक्ति और प्रकृति का समागम
मंदिर की ऊँचाई से गंगा नदी का विहंगम दृश्य मन को मोह लेता है। भक्त यहाँ न केवल देवी माँ के दर्शन के लिए आते हैं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और हरिद्वार की सांस्कृतिक आत्मा को महसूस करने के लिए भी। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जब मंदिर की दीवारों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो यह दृश्य साक्षात स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है।
कैसे पहुँचें
मंदिर हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित है। जगदीश नगर, ज्वालापुर में बने इस मंदिर तक टैक्सी, ऑटो रिक्शा अथवा निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर प्रत्येक दिन सुबह 8:00 बजे से रात 8:00 बजे तक खुला रहता है।
IndoUS Tribune की ओर से श्रद्धा-सम्मान
IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा में वैष्णो देवी मंदिर केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि माँ की गोद जैसा शरणस्थल है। यहाँ न केवल देवी के दर्शन होते हैं, बल्कि भक्त को अपने भीतर की शक्ति, भक्ति और साधना की अनुभूति भी होती है। यह स्थल नारी शक्ति, समर्पण और आत्मिक संतुलन का प्रतीक है।
हमारी अगली कड़ी में हम आपको हरिद्वार के एक और दिव्य मंदिर या घाट की यात्रा पर ले चलेंगे। तब तक माँ गंगा और माँ वैष्णो देवी की कृपा आप पर बनी रहे — ऐसी हमारी मंगलकामना है।