
वृंदावन: दसवाँ पड़ाव–जयपुर मंदिर (गोविंद देव जी मंदिर)
IndoUSTribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! कृष्ण नगरी वृंदावन की इस आध्यात्मिक यात्रा के दसवें पड़ाव पर हम आपको लेकर चल रहे हैं जयपुर मंदिर,
जिसे गोविंद देव जी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर अपनी भव्यता, इतिहास और अद्भुत आध्यात्मिक आभा के कारण विशेष स्थान रखता है।
मंदिर और स्थान
गोविंद देव जी मंदिर, वृंदावन का एक प्रमुख मंदिर है, जो राधा-कृष्ण को समर्पित है।यह मंदिर 18वीं शताब्दी में जयपुर नरेश महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा बनवाया गया था।बाद में, उन्हीं के प्रयासों से वृंदावन से भगवान गोविंद देव जी की प्रतिमा जयपुर लाई गई, जहाँ आज भी लाखों भक्त उनके दर्शन करते हैं।
इतिहास और किंवदंती
किंवदंती है कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने कृष्ण के स्वरूप की तीन प्रतिमाएँ बनवाई थीं। इनमें से एक प्रतिमा, जो उनके मुखमंडल का प्रतीक है, आज गोविंद देव जी के नाम से जानी जाती है। यही प्रतिमा वृंदावन से जयपुर लाई गई थी।
गोविंद देव जी मंदिर का एक और ऐतिहासिक महत्व यह है कि गौड़ीय वैष्णव परंपरा के महान दार्शनिक बलदेव विद्याभूषण ने यहीं गोविंदा भाष्य की रचना की थी।
स्थापत्य और गौरव
मंदिर का सत्संग हाल गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है, क्योंकि यह दुनिया की सबसे चौड़ी बिना स्तंभ वाली कंक्रीट इमारत है।15,800 वर्ग फीट में फैला यह हाल एक साथ 5,000 भक्तों को समा सकता है।
पूजा और परंपराएँ
मंदिर में प्रतिदिन सात आरतियाँ और भोग अर्पित किए जाते हैं।मंगला आरती से लेकर शयन आरती तक, हर आरती में भक्त बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।जन्माष्टमी, राधाष्टमी और होली जैसे पर्वों पर मंदिर का वातावरण अलौकिक हो जाता है।
प्रबंधन
मंदिर के महंत आंजन कुमार गोस्वामी कई दशकों से इसकी आध्यात्मिक और प्रशासनिक व्यवस्था देख रहे हैं। उनकी अगुवाई में न केवल परंपरागत सेवा प्रणाली को संजोया गया है, बल्कि लाइव दर्शन जैसी आधुनिक सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई गई हैं।
निष्कर्ष
जयपुर मंदिर, वृंदावन की आस्था, इतिहास और स्थापत्य का अद्वितीय संगम है। यहाँ का हर दर्शन भक्तों को कृष्ण भक्ति और राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम से जोड़ देता है। IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में यह दसवाँ पड़ाव था।
हमारी अगली कड़ी में, हम आपको वृंदावन के भव्य रंगाजी मंदिर की यात्रा पर लेकर चलेंगे। तब तक के लिए, श्री गोविंद देव जी की कृपा आप पर बनी रहे — यही शुभकामना।