
वृंदावन: पंद्रहवाँ पड़ाव – राधा गोकुलानंद मंदिर
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर“ श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है। वृंदावन की हर गली में श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं की झलक मिलती है। यहाँ हर मंदिर का अपना विशिष्ट इतिहास और आध्यात्मिक महत्व है। इस श्रृंखला के पंद्रहवें पड़ाव पर हम आपको ले चलते हैं राधा गोकुलानंद मंदिर, जहाँ अनेक महान संतों द्वारा प्रतिष्ठित विग्रह और स्मृतियाँ एक साथ पूजित हैं।
मंदिर का इतिहास और विशेषता
राधा गोकुलानंद मंदिर वृंदावन के केशी घाट और राधा-रामन मंदिर के बीच स्थित है। यह मंदिर विशेष इसलिए है क्योंकि यहाँ एक ही स्थान पर कई विख्यात आचार्यों द्वारा पूजित विग्रहों की स्थापना है।
- राधा–विनोद जी: लोकनाथ गोस्वामी द्वारा किशोरीकुंड (उमराया) से प्राप्त।
- राधा विजया गोविंद जी: बलदेव विद्याभूषण द्वारा पूजित।
- राधा–गोकुलानंद जी: श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर द्वारा प्रतिष्ठित।
- महाप्रभु गौरांग (श्री चैतन्य महाप्रभु): जिनकी सेवा श्री नारोत्तम दास ठाकुर ने की।
मंदिर का निर्माण श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर ने कराया। पहले प्रत्येक विग्रह अलग-अलग स्थानों पर प्रतिष्ठित थे, लेकिन जब लोकनाथ गोस्वामी का राधा-विनोद मंदिर जीर्ण हो गया, तो सभी विग्रहों को एक ही स्थान पर स्थापित कर दिया गया।
गौरवपूर्ण धरोहर – गोवर्धन शिला
इस मंदिर में एक अद्वितीय गोवर्धन शिला भी है, जिसे स्वयं श्री चैतन्य महाप्रभु ने तीन वर्षों तक अपने हृदय से लगाकर पूजा। इस शिला पर उनके अंगूठे का निशान अंकित है और यह सदैव उनके आँसुओं से स्निग्ध रहती थी। बाद में यह शिला श्री रघुनाथ दास गोस्वामी को प्रदान की गई। आज भी भक्त थोड़े से दान के उपरांत इस शिला का दर्शन कर सकते हैं।
संतों की समाधियाँ
मंदिर परिसर में कई महान संतों की समाधियाँ भी स्थित हैं, जिनमें लोकनाथ गोस्वामी, नारोत्तम दास ठाकुर और विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर की समाधियाँ प्रमुख हैं। यह स्थान न केवल भक्ति का केंद्र है बल्कि वैष्णव परंपरा की विरासत का जीवंत प्रतीक भी है।
आध्यात्मिक वातावरण और अनुभव
इस मंदिर की विशेषता है इसका आध्यात्मिक वातावरण। जब भक्त मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते हैं तो सबसे पहले उन्हें यहाँ का अद्भुत शांत वातावरण महसूस होता है। मंदिर की दीवारों पर अंकित सुंदर शिल्पकला और विग्रहों के दर्शन भक्तों को भक्ति और श्रद्धा में डुबो देते हैं।
मंदिर दर्शन का अनुभव और भी गहरा हो जाता है जब यहाँ संकीर्तन गूंजता है। हर सुबह और शाम मंदिर परिसर में कीर्तन और भजन का स्वर वातावरण को भक्तिमय बना देता है। भक्त एक साथ हरिनाम संकीर्तन करते हैं, जिससे न केवल मंदिर प्रांगण बल्कि आसपास की गलियाँ भी कृष्ण-राधा के नाम से गुंजायमान हो उठती हैं।
परिक्रमा का माहौल भी अद्भुत होता है। भक्त श्रद्धा से मंदिर की परिक्रमा करते हुए प्रभु के चरणों में अपना मन समर्पित करते हैं। परिक्रमा मार्ग पर भजन, शंख और घंटियों की ध्वनि मिलकर ऐसा अनुभव देती है मानो स्वयं वृंदावन की दिव्यता आत्मा को स्पर्श कर रही हो।
दर्शन और आरती समय
- प्रातः दर्शन: 8:00 बजे से 12:00 बजे तक
- संध्या दर्शन: 5:20 बजे से 8:00 बजे तक
- ग्रीष्मकालीन मंगल आरती: प्रातः 5:00 बजे
- शीतकालीन मंगल आरती: प्रातः 6:00 बजे
कैसे पहुँचे
राधा गोकुलानंद मंदिर, वृंदावन के केंद्र में स्थित है और इसे पहुँचना सरल है।
- रेल द्वारा: निकटतम रेलवे स्टेशन मथुरा जंक्शन है, जो वृंदावन से लगभग 12 किमी दूर है। वहाँ से ऑटो या टैक्सी द्वारा मंदिर पहुँचा जा सकता है।
- सड़क मार्ग से: दिल्ली से वृंदावन लगभग 160 किमी की दूरी पर है। यमुना एक्सप्रेसवे के माध्यम से यह यात्रा सुविधाजनक और तेज हो जाती है।
- स्थानीय परिवहन: वृंदावन में ई-रिक्शा और ऑटो रिक्शा से मंदिर तक पहुँचना आसान है।
आध्यात्मिक महत्त्व
राधा गोकुलानंद मंदिर वह स्थान है जहाँ विभिन्न महान आचार्यों की भक्ति का संगम होता है। यहाँ आने वाले भक्त न केवल विग्रहों का दर्शन करते हैं, बल्कि उस दिव्य ऊर्जा का अनुभव भी करते हैं जो इन संतों ने अपनी साधना से यहाँ संचित की है।
निष्कर्ष
राधा गोकुलानंद मंदिर का दर्शन हमें वैष्णव संतों की तपस्या, भक्ति और राधा-कृष्ण के प्रेम की अनूठी अनुभूति कराता है। यह स्थल एक ऐसा संगम है जहाँ भक्ति, इतिहास और आध्यात्मिकता एक साथ मिलते हैं। IndoUS Tribune की ओर से हम आशा करते हैं कि इस पड़ाव ने आपको वृंदावन की वैष्णव परंपरा से गहराई से जोड़ा होगा।
हमारी अगली कड़ी में, हम आपको वृंदावन के गोपेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन कराएँगे। तब तक के लिए, श्री राधा-कृष्ण और वैष्णव आचार्यों की कृपा आप पर बनी रहे।