गीतास्वाध्याय- मेरी समझ से, सातवां अध्याय

गीतास्वाध्याय- मेरी समझ से, सातवां अध्याय

इस अध्याय का आरम्भ भगवान कृष्ण के ज्ञान विज्ञान योग संबंधित प्रवचन से होता है. इसीलिए इस अध्याय को ज्ञान विज्ञान का मूल मंत्र भी माना जाता है. भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि, जो ज्ञान मैं तुम्हें देने जा रहा हूँ,

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वृंदावन मंदिर यात्रा का पांचवां पड़ाव – राधा गोविंद के दर्शन

वृंदावन मंदिर यात्रा का पांचवां पड़ाव – राधा गोविंद के दर्शन

IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है!जहाँ हर गली-नुक्कड़ भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी की मधुर लीलाओं की गवाही देता है, वहीं आज हम आपको ले चल रहे हैं वृंदावन के एक और दिव्य स्थल – राधा गोविंद मंदिर की ओर। यह श्रृंखला, जो बांके बिहारी मंदिर से प्रारंभ हुई थी, अब अपने पाँचवें पड़ाव पर पहुँची है, जहाँ भक्ति, शौर्य और शिल्पकला का अद्वितीय संगम है – राधा गोविंद मंदिर। इतिहास और निर्माण का वैभव राधा गोविंद मंदिर, जिसे गोविंद देव जी मंदिर भी कहा जाता है, वृंदावन के सबसे प्राचीन और भव्य मंदिरों में से एक है।इस मंदिर का निर्माण 1590 ई. में आमेर (जयपुर) के राजा मान सिंह ने करवाया था।इस भव्य मंदिर के निर्माण में लगभग 10 लाख रुपये की लागत आई थी, जो उस काल में एक अत्यंतविशाल राशि मानी जाती थी। इस सात-मंज़िला मंदिर की वास्तुकला में हिंदू, इस्लामी और पश्चिमी शैलियों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह मंदिर न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि स्थापत्य की दृष्टि से भी एक अनमोल धरोहर है। मुगल काल का विध्वंस और मूर्ति की सुरक्षा 1670 ई. में, मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने इस मंदिर को आक्रमण का निशाना बनाया और इसके ऊपरी चार मंज़िलों को नष्ट करवा दिया। लेकिन संकट की इस घड़ी में, श्री गोविंद देव जी की मूल मूर्ति को सुरक्षित रूप से जयपुर पहुँचा दिया गया, जहाँ आज भी वह विधिवत पूजित हैं। वर्तमान में वृंदावन स्थित राधा गोविंद मंदिर केवल तीन मंज़िला संरचना के रूप में खड़ा है, लेकिन इसकी भव्यता और भक्ति की ऊर्जा आज भी उसी प्रकार विद्यमान है। यह मंदिर एक उच्च चबूतरे पर स्थित है, जिससे श्रद्धालुओं को कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचना होता है। जैसे ही आप मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते हैं, आप महसूस करते हैं मानो समय थम गया हो — वातावरण में राधा-कृष्ण की लीला की मधुर अनुभूति होती है। यहाँ की लाल बलुआ पत्थर से बनी संरचना और उसके भीतर की नक्काशी, गोविंद देव जी की अद्वितीय छवि को दर्शाती है। भक्तगण यहाँ आकर एक गहन आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं, जो उन्हें प्रभु के समीप ले जाती है। इस मंदिर के निर्माण की प्रेरणा श्रील रूप गोस्वामी से प्राप्त हुई थी, जो श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रमुख अनुयायी थे। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति पर आधारित वैष्णव परंपरा को पुनः जीवित करने में अहम भूमिका निभाई। दर्शनों का समय (Govind Dev Ji Mandir Timings) राधा गोविंद मंदिर में दर्शन कर IndoUS Tribune की यह पांचवीं कड़ी भी भक्ति और ऐतिहासिक गौरव से परिपूर्ण रही। इस मंदिर की भव्यता, इसकी गाथा और श्री गोविंद देव जी की दिव्यता हर श्रद्धालु के मन को आहलादित कर देती है। हम आशा करते हैं कि इस लेख ने आपको राधा गोविंद मंदिर के अद्भुत इतिहास, वास्तुकला और आध्यात्मिक महत्ता से अवगत कराया होगा। अगली कड़ी में, हम आपको ले चलेंगे वृंदावन के एक और प्राचीन एवं पुण्य स्थल — मदन मोहन मंदिर की ओर, जहाँ श्रीकृष्ण भक्ति की एक और अनूठी छवि देखने को मिलेगी। तब तक के लिए, राधा गोविंद देव जी की कृपा आप पर बनी रहे — जय श्री राधे!

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वृंदावन: चौथा पड़ाव – श्री राधा वल्लभ मंदिर में दर्शन

वृंदावन: चौथा पड़ाव – श्री राधा वल्लभ मंदिर में दर्शन

IndoUS Tribune की आध्यात्मिक श्रृंखला ‘यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर’ में आपका हार्दिक स्वागत है। यह श्रृंखला केवल मंदिर दर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि एक गहन यात्रा है — उन लीलाओं, परंपराओं और भक्ति रस की, जो युगों से इस पावन भूमि

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Shreemad Bhagwat Gita – As I understand: Chapter six

Shreemad Bhagwat Gita – As I understand: Chapter six

By: Rajendra Kapil This chapter is known as ‘The Yoga of Self-Control’ (Ātma-Saṃyam Yoga).Self-control is generally found in a renunciate or a true yogi. That is why, in this chapter, Lord Krishna attempts to describe the qualities of a true renunciate to Arjuna. The first and foremost

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वृंदावन मंदिर यात्रा का तीसरा पड़ाव प्रेम मंदिर के दिव्य दर्शन

वृंदावन मंदिर यात्रा का तीसरा पड़ाव प्रेम मंदिर के दिव्य दर्शन

IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर“ श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! जहाँ हवाओं में राधे-राधे की पुकार गूंजती है, जहाँ हर वृक्ष, हर कली, हर कुंज गवाही देती है राधा-कृष्ण के अमर प्रेम की—वहीं स्थित है एक ऐसा अद्वितीय मंदिर जो अपने नाम के अनुरूप प्रेम का प्रतीक है – प्रेम मंदिर। बांके बिहारी जी और निधिवन की रहस्यमयी दिव्यता के बाद, हमारा अगला पड़ाव है एक ऐसा मंदिरजो श्रद्धालु के हृदय को भक्ति, सौंदर्य और निर्मल प्रेम से सराबोर कर देता है। प्रेम मंदिर – जहाँ भक्ति और सौंदर्य का मिलन होता है वृंदावन की बाहरी परिधि में स्थित यह मंदिर, जैसे ही दृष्टि के सामने आता है, श्रद्धालु स्तब्ध रह जाता है –संगमरमर की अद्भुत नक्काशी, चमचमाता श्वेत सौंदर्य, और चारों ओर सजे गुलाबों से सुगंधित बगीचे, सब मिलकर मानो स्वर्गिक सौंदर्य की अनुभूति कराते हैं। रात्रि में जब मंदिर रंग–बिरंगी रोशनियों में नहाता है, तब यह दृश्य किसी चित्रकला के दिव्य कैनवास से कम नहीं होता।फव्वारों की लहरों में प्रतिबिंबित होता मंदिर, और राधा-कृष्ण के झूलते झांझर भक्ति की अमिट छाप छोड़ जाते हैं। मंदिर की स्थापत्य कला – एक अनुपम कृति प्रेम मंदिर का निर्माण सफेद इटालियन कैरारा संगमरमर से किया गया है, जिसे कारीगरों ने 12 वर्षों की अथक साधना से आकार दिया।इसकी बेसमेंट 20 फीट गहरी ग्रेनाइट से बनी है, जो इसे सदियों तक स्थायित्व प्रदान करेगी। इस मंदिर की दीवारों पर राधा–कृष्ण की 84 लीलाओं को इतनी बारीकी और जीवंतता से उकेरा गया है कि लगता है जैसे समय वहीं ठहर गया हो —श्रीकृष्ण कालिया नाग पर नृत्य कर रहे हों, गोवर्धन पर्वत उठा रहे हों, या रास लीला में राधा जी संग आनंद में मग्न हों। परिक्रमा पथ में चलते हुए हर झांकी से भक्ति का प्रवाह इतना गहरा होता है कि मनुष्य को अपनी सांसों की गति का भी भान नहीं रहता। प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का संगम प्रेम मंदिर का परिसर लगभग 55 एकड़ में फैला हुआ है।चारों ओर हरियाली, गुलाब के फूल, कमल के ताल, और संगीत की धीमी धुनें इस स्थान को किसी स्वप्नलोक में बदल देते हैं। श्रद्धालु मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते हुए जैसे-जैसे गर्भगृह के समीप आता है, वह माया, मोह और व्यर्थ के विचारों से स्वतः मुक्त हो जाता है।गर्भगृह में विराजमान श्री राधा गोविंद और श्री सीता राम की मूर्तियाँ इतनी दिव्य हैं कि नेत्रों से अश्रु स्वतः बहने लगते हैं। दीवारों पर अंकित भक्ति के पद और संत परंपरा मंदिर के भीतर की दीवारों पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित पद–संकीर्तन अंकित हैं, जो हर हृदय को भीतर तक भिगो देते हैं।यहाँ आठ प्रमुख सखियाँ, पाँच जगद्गुरु, और रासिक संतों की भव्य मूर्तियाँ भी स्थापित हैं, जो भक्ति की परंपरा को मूर्त रूप देती हैं। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज – प्रेम के अवतार इस मंदिर के संस्थापक, भक्ति–योग–रसावतार, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज, एक ऐसी दिव्य विभूति हैं जिन्होंने भक्ति मार्ग को सरल, सुलभ और सर्वसुलभ बनाया।वे अंतिम 700 वर्षों में जगद्गुरु की उपाधि पाने वाले एकमात्र संत हैं। उनका सपना था –एक ऐसा मंदिर बनाना, जो भक्ति, दर्शन, और आध्यात्मिक शिक्षा का केंद्र बने।1946 में जब वे युवा थे, तभी उन्होंने यह संकल्प लिया था।और 2001 से 2012 तक, यह सपना रूपांतरित हुआ एक ऐसे मंदिर में जो युगों तक प्रेम की गा  कहता रहेगा। दर्शन समय और जानकारी समापन – भक्ति की निष्कलंक झलक प्रेम मंदिर, IndoUS Tribune की वृंदावन यात्रा का ऐसा पड़ाव है जहाँ सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि आत्मा का साक्षात्कार होता है। यहाँ का हर पत्थर, हर ध्वनि, हर दृश्य भगवान के प्रेम को जीता है। हम आशा करते हैं कि इस यात्रा ने आपको राधा-कृष्ण के निराकार प्रेम से साक्षात्कार कराया होगा। अब समय है अगले पड़ाव की ओर बढ़ने का –हमारी अगली कड़ी में, हम आपको ले चलेंगे राधा वल्लभ मंदिर, जहाँ राधारानी की महिमा अपने चरम पर है। तब तक के लिए —राधे राधे! प्रेम मंदिर की अनुभूति आपके जीवन में प्रेम, सौंदर्य और भक्ति की सरिता बहाती रहे।

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गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से,  छटा अध्याय

गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से,  छटा अध्याय

By: Rajendra Kapilयह अध्याय ‘आत्म सयंम योग’ के नाम से जाना जाता है.  आत्म संयम साधारणतः एक संन्यासी या योगी में पाया जाता है. इसीलिए इस अध्याय में, प्रभु कृष्ण ने, अर्जुन को एक संन्यासी के लक्षण बताने का प्रयास किया है. संन्यासी

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Japanese Ambassador visits Ayodhya, prays at Ram Janmabhoomi temple

Japanese Ambassador visits Ayodhya, prays at Ram Janmabhoomi temple

Japanese Ambassador to India and Bhutan, Keiichi Ono, visited Ayodhya on Saturday and offered prayers at the Shri Ram Janmabhoomi and Shri Hanuman Garhi temples, highlighting Japan’s growing cultural connection with India. “Witnessed the cultural and spiritual significance at Shri Hanuman Garhi Temple

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Gita study — in my understanding, chapter five: the yoga of renunciation of action

Gita study — in my understanding, chapter five: the yoga of renunciation of action

By: Rajendra Kapil The central message of this chapter is — Karma Sannyasa Yoga. In this chapter, Lord Krishna beautifully and insightfully explains the difference between renunciation of action and performing action without attachment.By now, Arjuna had gained significant insight into the concept

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वृंदावन यात्रा का दूसरा पड़ाव: राधा रमण मंदिर — जहां शालिग्राम बने श्रीकृष्ण

वृंदावन यात्रा का दूसरा पड़ाव: राधा रमण मंदिर — जहां शालिग्राम बने श्रीकृष्ण

IndoUS Tribune की विशेष श्रृंखला “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” की दूसरी कड़ी में हम चलते हैं वृंदावनके एक दिव्य और चमत्कारिक मंदिर — राधा रमण मंदिर की ओर। यह मंदिर न केवल अपनी अलौकिक मूर्तिऔर जीवंत भक्ति परंपरा के लिए प्रसिद्ध है,

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गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से,  पाँचवा अध्याय

गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से,  पाँचवा अध्याय

By: Rajendra Kapilइस अध्याय का मूल भाव है, कर्म संन्यास योग. इसमें भगवान कृष्ण ने ‘कर्म संन्यास योग’ को बड़े सुंदर ढंग सेपरिभाषित किया है. अब तक अर्जुन को निष्काम कर्म में बारे में बहुत सारा ज्ञान प्राप्त हो चुका था. एक और

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वृंदावन यात्रा का पहला पड़ावबांके बिहारी मंदिर — राधा-कृष्ण भक्ति का दिव्य केंद्र

वृंदावन यात्रा का पहला पड़ावबांके बिहारी मंदिर — राधा-कृष्ण भक्ति का दिव्य केंद्र

IndoUS Tribune की श्रृंखला ‘यात्रा और दर्शन: वृंदावन के मंदिर’ में आपका स्वागत है। इस पवित्र श्रृंखला की शुरुआत हम वृंदावन के सबसे प्रसिद्ध और आध्यात्मिक मंदिर बांके बिहारी मंदिर से कर रहे हैं — एक ऐसा स्थल जो राधा-कृष्ण भक्ति के असंख्य श्रद्धालुओं के लिए केवल मंदिर नहीं, बल्कि एक जीवंत अनुभव है। इतिहास और महिमा: हरिदास जी की भक्ति से प्रकट हुआ ईश्वर का रूप बांके बिहारी मंदिर की स्थापना स्वामी हरिदास जी ने 1864 में की थी। हरिदास जी स्वयं राधा-कृष्ण के महान उपासक और प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे। किंवदंती है कि जब वह वृंदावन के निधिवन में ध्यानपूर्वक भजन गा रहे थे, तब राधा और कृष्ण उनके सामने संयुक्त रूप में प्रकट हुए। स्वामी हरिदास जी ने उनसे आग्रह किया कि वे एक ही मूर्ति के रूप में भक्तों के लिए सदा प्रकट रहें। यही मूर्ति बाद में बांके बिहारी के नाम से प्रसिद्ध हुई। ‘बांके’ का अर्थ होता है टेढ़ा, और ‘बिहारी’ का मतलब है ब्रज में रमण करने वाला। भगवान की इस प्रतिमा की झुकी हुई मुद्रा इस बात की प्रतीक है कि वे प्रेम से अपने भक्तों की ओर आकर्षित हो गए हैं। यह स्वरूप राधा और कृष्ण के मिलन का प्रतिनिधित्व करता है। मंदिर की अनूठी परंपराएँ और दिव्यता बांके बिहारी मंदिर अपने विशेष दर्शन और भक्ति परंपराओं के लिए जाना जाता है: राधा–कृष्ण भक्ति का वैश्विक केंद्र बांके बिहारी मंदिर न केवल उत्तर भारत का, बल्कि पूरे विश्व में राधा–कृष्ण भक्ति का सबसे बड़ा और जीवंत केंद्र बन चुका है।अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों से हजारों श्रद्धालु यहाँ आकर दर्शन करते हैं।मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही भक्तों का मन आत्मिक शांति और प्रेम से भर उठता है। यह मंदिर सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक ऊर्जा का संगम है, जहाँ संगीत, भजन, सेवा और प्रेम के साथ राधा-कृष्ण की भक्ति जीवंत रूप में प्रकट होती है। त्योहार और विशेष अवसर बांके बिहारी मंदिर में अनेक पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाए जाते हैं: त्योहारों के दौरान मंदिर पूरी तरह राधा-कृष्ण के रंगों में रंग जाता है, लेकिन इसी समय अत्यधिक भीड़ और प्रशासनिक अव्यवस्था की भी झलक दिखाई देती है। चुनौतियाँ: भीड़ प्रबंधन और मंदिर प्रशासन बांके बिहारी मंदिर की लोकप्रियता के कारण यहाँ दर्शन के समय भारी भीड़ एक सामान्य दृश्य बन चुकी है। दुर्भाग्यवश, स्थानीय प्रशासन और मंदिर प्रबंधन द्वारा उपयुक्त सुरक्षा एवं व्यवस्था न किए जाने के कारण कई बार भगदड़ जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मंदिर परिसर में एक कॉरिडोर विकसित करने की योजना भी विवादों में घिरी रही है, जिसमें मंदिर की परंपरा और पुजारियों के अधिकारों को लेकर न्यायालय तक में मामला पहुंचा। कैसे पहुँचें? श्रद्धा और सुधार का संगम आवश्यक बांके बिहारी मंदिर एक आध्यात्मिक तीर्थ है, जो श्रद्धालुओं के मन, हृदय और आत्मा को कृष्ण-प्रेम से जोड़ता है। परंतु इसकी प्रतिष्ठा और दिव्यता को बनाए रखने के लिए प्रशासनिक सुधार, पारदर्शिता और पुजारियों की भूमिका की स्पष्ट परिभाषा आज की आवश्यकता बन चुकी है। IndoUS Tribune की यह श्रृंखला न केवल आपको धार्मिक स्थलों के दर्शन कराती है, बल्कि उन सामाजिक और व्यवस्थागत पहलुओं को भी उजागर करती हैजिन्हें समझना और सुधारना हम सभी की जिम्मेदारी है। अगली कड़ी में हम आपको वृंदावन के एक अन्य महत्वपूर्ण मंदिर की यात्रा पर ले चलेंगे। तब तक के लिए, “राधे राधे”।

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The Rath Yatra A festival of faith on wheels 

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By: Rakesh Malhotra, President of Global Indian Diaspora Foundation For Indian Americans, the annual Rath Yatra — the grand chariot festival celebrated in Puri and replicated in cities like New York, San Francisco, Chicago, and Houston — holds profound emotional and spiritual significance. Organized by ISKCON, Odia communities,

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Dalai Lama nears 90, continues to embrace every soul with compassion

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As he approaches his 90th birthday on July 6, His Holiness the 14th Dalai Lama remains as spiritually radiant and accessible as ever, extending his arms to the world with deepened compassion and humility. Despite his age, the Tibetan spiritual leader rises daily

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Vrindavan Temples Yatra Series – A Weekly Spiritual Journey

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Start Date: June 27, 2025 | One temple each week Radha Krishna Mandir (Pagal Baba Ashram)– A 10-storey temple offering panoramic views of Vrindavan; dedicated to bhajan and meditation. Banke Bihari Temple– The spiritual heart of Vrindavan, where Krishna’s playful form is worshipped

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Shreemad Bhagwat Gita – As I understand: Chapter Four

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By Rajendra Kapil | 847-962-1291 The fourth chapter of the Bhagavad Gita begins with the revelation of divine knowledge. Lord Krishna tells Arjuna, “The wisdom I am sharing with you is divine and eternal. I first imparted this sacred knowledge at the beginning of

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IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा का 18वाँ और अंतिम पड़ाव: श्री श्री मा आनंदमयी आश्रम — एक दिव्य उपस्थिति, जहाँ मौन भी साधना बन जाता है

IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा का 18वाँ और अंतिम पड़ाव: श्री श्री मा आनंदमयी आश्रम — एक दिव्य उपस्थिति, जहाँ मौन भी साधना बन जाता है

हरिद्वार (कनखल) —जहाँ गंगा की लहरों में श्रद्धा बहती है और हर घाट, हर मंदिर एक कथा सुनाता है, वहीं कनखल  स्थित श्री श्री मा आनंदमयी आश्रम आध्यात्मिक साधना और आत्मिक शांति का अद्भुत केंद्र बनकर सामने आता है। IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा के इस 18वें और अंतिम पड़ाव पर हम पहुँचे हैं इस पावन आश्रम में, जो स्वयं मा आनंदमयी की दिव्य उपस्थिति से आलोकित है। दिव्यता का केंद्र – श्री श्री मा आनंदमयी आश्रमशांत वातावरण, श्वेत संगमरमर की इमारतें, गंगा का पावन प्रवाह और मा आनंदमयी का सजीव स्मरण — यह आश्रम केवल एक स्थान नहीं, बल्कि एक अनुभव है। आश्रम का मुख्य आकर्षण मा आनंदमयी की समाधि है, जहाँ श्रद्धालु मौन ध्यान में बैठकर उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति को अनुभव करते हैं। यहाँ ध्यान, योग और आत्मचिंतन के लिए अनेक साधन उपलब्ध हैं, जो साधकों को भीतर की यात्रा पर प्रेरित करते हैं। आश्रम परिसर में स्थित मंदिर, ध्यान कक्ष और पुस्तकालय सभी आध्यात्मिक जागरूकता के वाहक हैं। मा आनंदमयी: एक जीवंत दिव्यतामा आनंदमयी केवल एक संत नहीं थीं, बल्कि उन्होंने उस दिव्यता को प्रत्यक्ष रूप से जिया, जिसे अनेक लोग केवल ग्रंथों में पढ़ते हैं। उन्हें विभिन्न रूपों में पूजा गया — मनुष काली, देवी नर्मदा, गौरा माँ, और कई अन्य रूपों में। उनका यह सार्वभौमिक स्वरूप सभी धर्मों और परंपराओं को जोड़ता है। मा का कहना था:“प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक वस्तु ईश्वर का रूप है। मैं वही हूँ, जो तुम्हारी अंतरात्मा में ईश्वर की कल्पना है।” उनके उपदेश आत्मसमर्पण, सत्संग, और निरंतर ईश्वर-स्मरण पर आधारित थे। आश्रम में आज भी ये परंपराएँ जीवंत हैं — प्रतिदिन की आरती, कीर्तन, ध्यान और साधना सत्र, सभी साधकों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करते हैं। एक आत्मिक तीर्थ का अनुभव कनखल में स्थित यह आश्रम न केवल साधकों के लिए एक तीर्थ है, बल्कि उन सभी के लिए भी, जो जीवन में शांति और उद्देश्य की तलाश में हैं। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति, चाहे वह भक्त हो या जिज्ञासु, मा की उपस्थिति में आत्मिक विश्रांति का अनुभव करता है। IndoUS Tribune की ओर से श्रद्धा–सम्मानहरिद्वार मंदिर यात्रा की इस अंतिम कड़ी में IndoUS Tribune मा आनंदमयी आश्रम को समर्पित करता है — एक ऐसा स्थल जहाँ श्रद्धा, शांति और साधना का दिव्य संगम होता है। इस यात्रा में आपने जिन तीर्थों के दर्शन किए, वे भारतीय आध्यात्मिक परंपरा की विविधता और गहराई को दर्शाते हैं। आगे की यात्रा… वृंदावन की ओरहमारी “हरिद्वार मंदिर यात्रा“ यहीं समाप्त होती है, पर हमारी आध्यात्मिक यात्रा जारी रहेगी। 27 जून से शुरू हो रही है IndoUS Tribune की नई श्रृंखला — “वृंदावन के मंदिरों की यात्रा“।जहाँ हर मोड़ पर राधा-कृष्ण की लीलाएँ, हर कुंज में भक्ति का भाव और हर मंदिर में प्रेम का स्पंदन है। तब तक के लिए, माँ गंगा और माँ आनंदमयी का आशीर्वाद बना रहे।हर हर गंगे। राधे राधे।

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गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से, चौथा अध्याय

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By: Rajendra Kapil चौथे अध्याय का आरम्भ दिव्य ज्ञान से होता है. भगवान कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि, जो ज्ञान मैं तुम्हें दे रहा हूँ, वह बहुत दिव्य है. इसी ज्ञान को मैंने सबसे पहले इस कल्प के आरम्भ में आदित्य नारायण

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India’s living heritage through the worship of Rama

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By: Kushagra Aniket and Rudra Vikrama Srivastava The inauguration of the Ayodhya Rama Mandir on January 22, 2024, captured global attention. It marked a milestone not just in temple construction, but in India’s civilizational story—one shaped by cultural memory and spiritual yearning across

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IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा का 17वाँ पड़ाव

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वैष्णो देवी मंदिर – माँ की भक्ति, शक्ति और शरण का जीवंत प्रतीक हरिद्वार — गंगा के किनारे बसे इस पावन नगरी में जहाँ हर मंदिर एक नई कथा कहता है, IndoUS Tribune की मंदिर यात्रा के सत्रहवें चरण में हम पहुँचे हैं वैष्णो देवी मंदिर — एक ऐसा स्थल जहाँ भक्त माँ की गुफा में प्रवेश कर केवल मूर्ति के नहीं, बल्कि आत्मा के दर्शन करते हैं। यह मंदिर हरिद्वार के जगदीश नगर, ज्वालापुर क्षेत्र में स्थित है और अपने विशिष्ट स्थापत्य, सुरंगनुमा प्रवेशद्वारों और आध्यात्मिक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। सुरंगों से मंदिर तक – एक आंतरिक यात्रा वैष्णो देवी मंदिर में प्रवेश करते ही श्रद्धालु एक ऐसी यात्रा पर निकलते हैं जो केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक भी है।मंदिर की संरचना इस प्रकार की गई है कि दर्शन से पहले भक्तों को एक संकरी सुरंग से होकर गुजरना होता है — यह प्रतीक है जीवन की कठिनाइयों और आत्मिक खोज की उस संकरी राह का, जहाँ अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। इस गुफा-यात्रा में पग-पग पर सजग रहना पड़ता है — श्रद्धालु हाथों से दीवारों को छूते हुए, सिर झुकाते हुए, और कभी-कभी रेंगते हुए माँ के दर्शन तक पहुँचते हैं। यह यात्रा एक विशेष प्रकार का आत्म-समर्पण मांगती है — अहं का विसर्जन और भक्ति का पूर्ण समर्पण। तीन देवियों का सजीव स्वरूप मंदिर के गर्भगृह में पहुँचते ही भक्तों को माँ वैष्णो देवी के दर्शन होते हैं, जो लक्ष्मी, काली और सरस्वती के त्रिदेवियों के रूप में प्रतिष्ठित हैं। तीनों मूर्तियाँ अलग-अलग प्रतीकों को दर्शाती हैं — यहाँ दर्शन मात्र से ही एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है, जो व्यक्ति को भीतर तक झकझोर देती है। 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन – भारत के तीर्थों की झलक इस मंदिर की विशेषता यह भी है कि इसके परिसर में भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों की सुंदर और यथासंभव सजीव प्रतिकृतियाँ निर्मित की गई हैं। काशी विश्वनाथ से लेकर सोमनाथ तक, प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का विशेष स्थान और विवरण दिया गया है, जिससे श्रद्धालु बिना देश की लंबी यात्रा किए ही इन पवित्र स्थलों के दर्शन कर पाते हैं। पौराणिक कथा और त्रिकुटा की भक्ति मंदिर से जुड़ी कथा अत्यंत मार्मिक और प्रेरणादायक है। त्रिकुटा नामक एक युवती ने बाल्यकाल से ही भगवान राम को पति रूप में स्वीकार कर लिया था और कठोर तपस्या के माध्यम से उन्हें पाने का प्रयास किया। भगवान राम ने त्रिकुटा की भक्ति से प्रसन्न होकर वचन दिया कि वे कलियुग में माँ वैष्णो देवी के रूप में पूजी जाएँगी। यही त्रिकुटा, माँ वैष्णो देवी के रूप में विख्यात हुईं। यह कथा उस नारी शक्ति की याद दिलाती है, जो समर्पण और साधना से ब्रह्मांड को भी प्रभावित कर सकती है। हरिद्वार का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रंग मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही चारों ओर एक अद्भुत शांति का अनुभव होता है। चिर–परिचित घंटियों की मधुर ध्वनि, अगरबत्तियों की सुगंध, और भक्तों के स्वर मंदिर को जीवंत बना देते हैं। यहाँ के पुजारी न केवल विनम्र और सेवा-भाव से ओतप्रोत हैं, बल्कि हर श्रद्धालु को व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन भी देते हैं। त्योहारों के समय — विशेषकर नवरात्रि, दुर्गाष्टमी, और रामनवमी के अवसर पर — मंदिर का वातावरण और भी आध्यात्मिक हो उठता है। रंगीन झाँकियाँ, संकीर्तन, भजन संध्या और दीपमालिका की सजावट इस स्थान को एक दिव्य लोक में बदल देती है। गंगा के दर्शन – भक्ति और प्रकृति का समागम मंदिर की ऊँचाई से गंगा नदी का विहंगम दृश्य मन को मोह लेता है। भक्त यहाँ न केवल देवी माँ के दर्शन के लिए आते हैं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और हरिद्वार की सांस्कृतिक आत्मा को महसूस करने के लिए भी। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जब मंदिर की दीवारों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो यह दृश्य साक्षात स्वर्ग जैसा प्रतीत होता है। कैसे पहुँचें मंदिर हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित है। जगदीश नगर, ज्वालापुर में बने इस मंदिर तक टैक्सी, ऑटो रिक्शा अथवा निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। मंदिर प्रत्येक दिन सुबह 8:00 बजे से रात 8:00 बजे तक खुला रहता है। IndoUS Tribune की ओर से श्रद्धा-सम्मान IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा में वैष्णो देवी मंदिर केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि माँ की गोद जैसा शरणस्थल है। यहाँ न केवल देवी के दर्शन होते हैं, बल्कि भक्त को अपने भीतर की शक्ति, भक्ति और साधना की अनुभूति भी होती है। यह स्थल नारी शक्ति, समर्पण और आत्मिक संतुलन का प्रतीक है। हमारी अगली कड़ी में हम आपको हरिद्वार के एक और दिव्य मंदिर या घाट की यात्रा पर ले चलेंगे। तब तक माँ गंगा और माँ वैष्णो देवी की कृपा आप पर बनी रहे — ऐसी हमारी मंगलकामना है।

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IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा का 16वाँ पड़ाव

IndoUS Tribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा का 16वाँ पड़ाव

श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी तीर्थ – जैन साधना, शांति और सांस्कृतिक वैभव का अद्भुत संगम हरिद्वार — जहाँ पवित्र गंगा की धारा आत्मा को शुद्ध करती है, वहीं यह नगरी भारत की विविध धार्मिक परंपराओं का संगम भी है।IndoUSTribune की हरिद्वार मंदिर यात्रा के 16वें पड़ाव पर हम पहुँचे हैं श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेतांबर मंदिर, जो कि हरिद्वार में जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख साधना स्थल है। यह मंदिर न केवल एक आस्था का केंद्र है, बल्कि अध्यात्म, अहिंसा और आत्म-शुद्धि की प्रेरणा भी देता है। 📿 मंदिर का परिचय श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी तीर्थ, हरिद्वार के भूपतवाला क्षेत्र में, ऋषिकेश रोड पर स्थित है। यह मंदिर भगवान पार्श्वनाथ, जो जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं, को समर्पित है। मंदिर की शांत, शुद्ध और दिव्य वातावरण जैन साधना और ध्यान के लिए आदर्श स्थान प्रदान करता है। 🛕 वास्तुकला और धार्मिक महत्व यह मंदिर श्वेतांबर जैन शैली में निर्मित है, जिसमें नक्काशीदार स्तंभ, सुंदर मूर्तिकला और अत्यंत आकर्षक गर्भगृह में स्थित भगवान पार्श्वनाथ की भव्य मूर्ति विशेष आकर्षण का केंद्र है। सफेद संगमरमर से बनी यह मूर्ति ध्यान मुद्रा में स्थापित है, जो आत्मिक शांति, ज्ञान और करुणा का प्रतीक है। यह तीर्थस्थल जैन धर्म के मूल सिद्धांतों – अहिंसा, सत्य और तपस्या – को समर्पित है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु केवल पूजा ही नहीं करते, बल्कि आत्म-नियंत्रण और ध्यान के माध्यम से आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। 📚 ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि हालाँकि यह मंदिर हरिद्वार में आधुनिक समय में स्थापित हुआ है, इसका महत्व पूरे भारत में फैले जैन अनुयायियों के बीच अत्यंत उच्च हैश्री चिंतामणि पार्श्वनाथ की पूजा नासिक, जैसलमेर, और अन्य तीर्थों में भी होती है, जहाँ इनकी नीली प्रतिमा और सात फनों वाला शेषनाग विशेष रूप से पूजी जाती है। जैसलमेर और नासिक में स्थित मंदिरों में जो धार्मिक, शिल्पकला और पांडुलिपियों की धरोहर सुरक्षित है, वह चिंतामणि पार्श्वनाथ के प्रति देश भर में फैले श्रद्धा और समर्पण को दर्शाती है। इन मंदिरों के साथ-साथ हरिद्वार का यह तीर्थस्थल भी जैन संस्कृति के संरक्षण और प्रसार का एक जीवंत केंद्र बनता जा रहा है। 🚗 कैसे पहुँचें: श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर हरिद्वार रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन: हरिद्वार जंक्शन बस सेवा: स्थानीय ऑटो, ई-रिक्शा और टैक्सी आसानी से उपलब्ध हैं निकटतम हवाई अड्डा: जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून (लगभग 40 किमी) मंदिर परिसर में धर्मशाला, भोजन

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