चार धाम यात्रा का दूसरा पड़ाव: जगन्नाथ पुरी
चार धाम यात्रा के दूसरे पड़ाव में श्रद्धालु ओडिशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं। यह स्थान न केवल हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थों में से एक है, बल्कि यहां की अनोखी परंपराएं और अधूरी मूर्तियों की पौराणिक कथाएं इसे विशेष बनाती हैं। यह लेख भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा की मूर्तियों के रहस्यमयी इतिहास और मंदिर की दिव्यता पर प्रकाश डालता है।
जगन्नाथ पुरी और अधूरी मूर्तियों के पीछे की रोचक कथा
पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर अपनी अनूठी परंपराओं और अधूरी मूर्तियों के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है। हर साल यहां आयोजित होने वाली रथ यात्रा में हजारों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियों के पीछे छिपी पौराणिक कथा।
अधूरी मूर्तियों का रहस्य
पुरी के मंदिर की मूर्तियां अन्य मंदिरों की मूर्तियों से भिन्न हैं। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां बिना गर्दन, कान और हाथ-पैर के अधूरी लगती हैं। यह विशेषता एक पौराणिक कथा से जुड़ी हुई है।
राजा इंद्रद्युम्न की तपस्या
सत्ययुग में राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के परम भक्त थे और उनके लिए एक भव्य मंदिर बनवाना चाहते थे। लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि मूर्तियां कैसी बनें। उन्होंने इस सवाल का उत्तर पाने के लिए तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने राजा को भगवान विष्णु की कृपा से मूर्तियों के निर्माण का तरीका जानने का निर्देश दिया।
नीम की लकड़ी और अनोखा शिल्पकार
राजा को सपना आया कि उन्हें बैंकमुखाना नामक स्थान पर नीम की एक लकड़ी मिलेगी, जिससे मूर्तियां बनेंगी। राजा ने लकड़ी ढूंढ तो ली, लेकिन कोई भी शिल्पकार इसे काटकर मूर्ति का रूप नहीं दे पाया। तभी भगवान विश्वकर्मा एक वृद्ध कलाकार अनंता महाराणा के रूप में आए और मूर्तियां बनाने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने शर्त रखी कि जब तक वे खुद अनुमति न दें, कोई भी उनके कार्यक्षेत्र में प्रवेश नहीं करेगा।
अधूरी मूर्तियों की स्वीकार्यता
महीनों के इंतजार के बाद राजा से रहा नहीं गया और उन्होंने कार्यक्षेत्र का दरवाजा खोल दिया। अंदर उन्हें अधूरी मूर्तियां मिलीं और कलाकार गायब थे। राजा ने भगवान ब्रह्मा से मार्गदर्शन मांगा। ब्रह्मा ने बताया कि मूर्तियां अधूरी नहीं, बल्कि ईश्वर की इच्छा का प्रतीक हैं। ब्रह्मा ने राजा को आश्वासन दिया कि भगवान विष्णु स्वयं इन मूर्तियों में वास करेंगे।
पुरी मंदिर की महिमा
पुरी का जगन्नाथ मंदिर 12वीं शताब्दी में बना था। यहां की मूर्तियां लकड़ी से बनी होती हैं और कुछ वर्षों बाद इन्हें बदल दिया जाता है। रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां तीन विशाल रथों में स्थापित की जाती हैं, जिन्हें सैकड़ों भक्त खींचते हैं। यह उत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है और हिंदू आस्था का अद्भुत उदाहरण है।
पुरी मंदिर और रथ यात्रा भगवान विष्णु के प्रति अटूट भक्ति और मानवता के संदेश का प्रतीक हैं। अधूरी मूर्तियां दर्शाती हैं कि ईश्वर का रूप किसी भी सीमा में बंधा हुआ नहीं है।