धार्मिक महत्ता: यज्ञोपवीत के तीन लड़, नौ तार और 96 चौवे का आध्यात्मिक रहस्य
By: Dr Avi Verma
यज्ञोपवीत न केवल एक धार्मिक आभूषण है, बल्कि यह हमारे जीवन के संपूर्ण उद्देश्यों का प्रतीक भी है। यह धागा हमें ऋषियों द्वारा बताए गए कर्तव्यों, सद्गुणों और आंतरिक अनुशासन की याद दिलाता है। इसमें छिपे तीन लड़, नौ तार और 96 चौवे का गहन आध्यात्मिक अर्थ है, जो हमें सृष्टि के नियमों, मानव धर्म और आत्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है।
तीन लड़ का प्रतीकात्मक अर्थ
यज्ञोपवीत के तीन लड़ त्रिविध धर्मों और त्रिगुणात्मक गुणों का बोध कराते हैं।
- तीन ऋण: यह हमें तीन ऋणों को याद दिलाते हैं –
- ऋषिऋण: ज्ञानार्जन व साधना से पूरा होता है।
- देवऋण: यज्ञ व ईश उपासना द्वारा चुकाया जाता है।
- पितृऋण: वंशवृद्धि और कर्तव्यपालन से समाप्त होता है।
- त्रिगुण: तीन गुण – सत, रज और तम – हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक होते हैं। यह तीनों लड़ आत्मबल, वीर्य और ओज को बढ़ाते हैं।
- तीन लोक: यज्ञोपवीत तीनों लोकों (भूलोक, देवलोक, पाताल) का यश और सम्मान बढ़ाने का प्रतीक है। माता, पिता और आचार्य के प्रति समर्पण भाव भी तीन लड़ों के माध्यम से व्यक्त होता है।
नौ तार का गूढ़ अर्थ
यज्ञोपवीत के नौ तारों में नौ देवताओं का वास माना गया है, जो मानव जीवन के आदर्श गुणों को प्रकट करते हैं:
- ओंकार: ब्रह्म का प्रतीक – परमात्मा से जुड़ाव।
- अग्नि: तेजस्विता और ज्ञान का प्रकाश।
- अनंत: धैर्य व अनंत शक्ति का भाव।
- चंद्रमा: मन की शीतलता व शांति।
- पितृगण: स्नेह और कर्तव्य का भाव।
- प्रजापति: प्रजापालन व समाज के प्रति दायित्व।
- वायु: स्वच्छता और जीवन ऊर्जा।
- सूर्य: तप, प्रताप और कर्मठता।
- समस्त देवता: समदर्शिता व सबके प्रति समान दृष्टि।
इन नौ देवताओं के गुण – धैर्य, नम्रता, तेजस्विता, सेवा, स्वच्छता, परोपकार, शक्ति, दया और अनुशासन – को अपनाना यज्ञोपवीतधारी का परम कर्तव्य है।
96 चौवे का गणितीय और आध्यात्मिक रहस्य
यज्ञोपवीत में 96 चौवे लगाने का अभिप्राय वेदों और गायत्री मंत्र के अक्षरों से जुड़ा है।
- गायत्री मंत्र के 24 अक्षर और चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) के गुणनफल से 96 का अंक बनता है।
- 96 चौवे सृष्टि के समस्त गणनाओं – 15 तिथियां, 7 वार, 27 नक्षत्र, 25 तत्त्व, 4 वेद, 3 गुण, 12 मास – के जोड़ का प्रतीक हैं।
सूत्रात्मा प्राण का 96-अंशीय अस्तित्व कंधे से लेकर कटि पर्यंत माना गया है। यज्ञोपवीतधारी को इसका स्मरण रखते हुए सृष्टि की समग्रता और ब्रह्मांड के साथ अपने जुड़ाव को समझना चाहिए।
सद्गुणों की साधना
यज्ञोपवीत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह जीवन में सद्गुणों की स्थापना का प्रतीक है। नौ तार हमें सिखाते हैं:
- हृदय में प्रेम
- वाणी में मधुरता
- व्यवहार में सरलता
- सभी के प्रति उदारता
- अनुशासन और स्वच्छता
- स्वाध्याय और सत्संग
- अलस्य का त्याग
निष्कर्ष
यज्ञोपवीत का धारण करना हमारे आत्मिक विकास, कर्तव्यबोध और उच्च आदर्शों को अपनाने का संकल्प है। यह हमें सृष्टि के ऋणों को चुकाने और सद्गुणों की साधना करने की प्रेरणा देता है। यज्ञोपवीत एक धार्मिक सूत्र ही नहीं, बल्कि मानव जीवन के सर्वांगीण उत्थान का मार्गदर्शक है।