आंध्र प्रदेश यात्रा: सातवाँ पड़ाव – अमरा लिंगेश्वर मंदिर (अमरावती)
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! आंध्र प्रदेश के मंदिरों की हमारी आध्यात्मिक यात्रा अब सातवें पवित्र पड़ाव पर पहुँच चुकी है। पहले पड़ाव में हमने तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर (तिरुपति) के दिव्य दर्शन किए, और अब हम
गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से, सत्रहवाँ अध्याय-श्रद्धात्रय योग
By: Rajendra Kapil इस अध्याय का आरम्भ अर्जुन के एक प्रश्न से होता है. ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः ॥ (१) भावार्थ: अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्रों के विधान को त्यागकर पूर्ण श्रद्धा
Gita study – in my understanding chapter sixteen: divine and demoniac qualities
By: Rajendra Kapil In this world, we find two types of human beings. The first are those we call good or virtuous—people who embody purity, honesty, and moral discipline. Such individuals are respected as noble and righteous.The second group consists of those with
आंध्र प्रदेश यात्रा – छठा पड़ाव: महानंदीश्वर मंदिर (नांदयाल)
आंध्र प्रदेश के पवित्र मंदिरों की हमारी यात्रा निरंतर आगे बढ़ रही है। IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में आपका स्वागत है — जहाँ हम आपको भारत की उन दिव्य धरोहरों से परिचित करा रहे हैं जो केवल आस्था ही नहीं,
IndoUS Tribune – आंध्र प्रदेश मंदिर यात्रा: पाँचवाँ पड़ाव: अहोबिलम नरसिंह स्वामी मंदिर (कर्नूल)
भूमिका – पाँचवाँ पड़ाव: दिव्य और रहस्यमय अहोबिलम IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन“ श्रृंखला के पाँचवें पड़ाव में आपका हार्दिक स्वागत है। तिरुपति, श्रीकालहस्ती, कनक दुर्गा और अन्य पवित्र धामों की यात्रा के बाद, अब हम पहुँच रहे हैं एक अत्यंत दिव्य
गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से, सोलहवाँ अध्याय, दैवी एवं आसुरी सम्पदा
By: Rajendra Kapil इस जगत में दो प्रकार के प्राणी पाए जाते हैं. एक जिनको हम अच्छे या सात्विक लोग कहते हैं. इन्हें सज्जन पुरुषों का सम्मान दिया जाता है. दूसरे जो बुरे स्वभाव वाले, जिन्हें हम दुष्ट लोगों की श्रेणी में गिनते
Gita Swadhyaya – In My Understanding, Chapter Fifteen – Purushottama Yoga
By: Rajendra Kapil This chapter of the Bhagavad Gita reveals a profound and unique secret—one that is supremely excellent. Because this excellence belongs only to the Supreme Lord, He is called Purushottama. And the yogi who strives to attain Him through this knowledge
आंध्र प्रदेश: चौथा पड़ाव – श्री सिम्हाचलम मंदिर (विशाखा पट्टनम)
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला IndoUS Tribune की विशेष श्रृंखला “यात्रा और दर्शन” में आपका पुनः हार्दिक स्वागत है। तिरुमला वेंकटेश्वर,श्रीकालहस्ती और श्री कुरम मंदिरों के पवित्र दर्शन के बाद अब हमारी यात्रा पहुँच रही है आंध्र प्रदेश के एकअत्यंत महत्वपूर्ण
आंध्र प्रदेश: तीसरा पड़ाव – कनक दुर्गा मंदिर (विजयवाड़ा)
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में आपका स्वागत है! इस श्रृंखला के पहले पड़ाव पर हमने तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के दिव्य दर्शन किए थे, और दूसरे पड़ाव पर पहुँचे श्रीकालहस्ती मंदिर (चित्तूर) — जहाँ भगवान शिव वायु तत्व के रूप में
गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से, पन्द्रहवाँ अध्याय – पुरुषोत्तम योग
By: Rajendra Kapil भगवद् गीता का यह अध्याय एक ऐसे रहस्य का उद्घाटन करता है, जो विशिष्ट रूप से अति उत्तम है. चूँकि यह उत्तम गुण केवल प्रभु के पास है, इसीलिए प्रभु को पुरुषोत्तम भी कहा गया है. और जो योगी इस
Gita study – in my understanding, chapter 14
By: Rajendra Kapil Now we have reached the fourteenth step of this Gita series. This chapter gives us a detailed understanding of the qualities (gunas) and natural tendencies present in human life. Some people among us are of highly sattvic (pure and virtuous) nature. Some are entangled
Gita swadhyaya, my understanding – chapter thirteen
By: Rajendra Kapil This chapter is truly profound. In it, Lord Krishna imparts to Arjuna the knowledge of both — that which is visible (the body) and that which is invisible (the soul). It is well known that the soul animates the body
आंध्र प्रदेश यात्रा – दूसरा पड़ाव: श्री कला हस्ती मंदिर (चित्तूर) IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर (तिरुपति) के दिव्य दर्शन के बाद अब हम अपने आंध्र प्रदेश यात्रा के दूसरे पड़ाव पर पहुँच रहे हैं — श्री कलाहस्ती मंदिर, जो भगवान शिव को वायु
आंध्र प्रदेश की आराधना यात्रा: तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर से आरंभ होती भक्ति की नई कथा
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला की वृंदावन यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण हो चुकी है। श्रीकृष्ण और राधा रानी की पावन नगरी के दिव्य मंदिरों के दर्शन के पश्चात् अब हम एक नई आध्यात्मिक श्रृंखला की शुरुआत कर रहे हैं — भारत के प्रसिद्ध और पूजनीय मंदिरों की यात्रा।इस नई यात्रा का आरंभ हम आंध्र प्रदेश के पवित्र मंदिरों से कर रहे हैं, जहाँ भक्ति, स्थापत्य और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। श्रृंखला के प्रथम पड़ाव में हम दर्शन करेंगे तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर (तिरुपति) के — जहाँ भगवान श्री वेंकटेश्वर (श्री बालाजी) की दिव्य उपस्थिति हर भक्त के हृदय को श्रद्धा, भक्ति और समर्पण से भर देती है।हम आपको आमंत्रित करते हैं कि हमारे साथ जुड़े रहें और इस पवित्र यात्रा में भारत की महान धार्मिक विरासत, आध्यात्मिक ऊँचाइयों और भक्ति की गहराइयों का अनुभव करें। तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर का परिचय आंध्र प्रदेश के तिरुमला पर्वत पर स्थित तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर विश्व के सबसे प्रसिद्ध और धनवान मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री वेंकटेश्वर स्वामी (जिन्हें बालाजी, गोविंदा और श्रीनिवास के नाम से भी जाना जाता है) को समर्पित है।माना जाता है कि भगवान विष्णु ने कलयुग के कष्टों से मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए इसी स्थान पर अवतार लिया था, इसलिए इस स्थान को “कलियुग वैकुंठ” कहा जाता है और भगवान को “कलियुग प्रत्यक्ष दैवम्” कहा जाता है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) द्वारा संचालित होता है, जो लाखों श्रद्धालुओं की सेवा में दिन-रात तत्पर रहता है। सात पहाड़ियों पर बसा दिव्य धाम तिरुमला पर्वत श्रृंखला शेषाचलम पहाड़ियों का हिस्सा है, जो समुद्र तल से लगभग 853 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इन पहाड़ियों में सात शिखर हैं, जो आदि शेष नाग के सात सिरों का प्रतीक माने जाते हैं।मंदिर इन सात शिखरों में से सातवें शिखर वेंकटाद्रि पर स्थित है, जिसके समीप श्री स्वामी पुष्करिणी नामक पवित्र सरोवर है। इसलिए इसे “सात पहाड़ियों का मंदिर” भी कहा जाता है। मंदिर का इतिहास और स्थापत्य कला तिरुपति मंदिर की स्थापना प्राचीन थोंडमन राजवंश के शासनकाल में हुई थी, जिसे बाद में चोल, पांड्य और विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने विकसित किया।माना जाता है कि मंदिर का निर्माण कार्य तीसरी शताब्दी ईस्वी के आसपास प्रारंभ हुआ था और इसे द्रविड़ शैली में बनाया गया है।मुख्य गर्भगृह को आनंद निलयम् कहा जाता है, जहाँ भगवान वेंकटेश्वर पूर्व दिशा की ओर मुख किए खड़े हैं। मंदिर में पूजा वैखानस आगम परंपरा के अनुसार होती है। यह मंदिर 108 दिव्य देशमों में से एक है और 75वें दिव्य देशम के रूप में प्रसिद्ध है। यह उन आठ विष्णु स्वयंभू स्थलों में भी शामिल है जहाँ भगवान स्वयं प्रकट हुए। मंदिर की धार्मिक मान्यता और किंवदंतियाँ पुराणों के अनुसार, द्वापर युग में जब ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर लात मारी, तो देवी लक्ष्मी नाराज होकर पृथ्वी पर आ गईं। तब भगवान विष्णु ने श्रीनिवास रूप में अवतार लेकर तिरुमला पर्वत पर तपस्या की।बाद में देवी लक्ष्मी ने पद्मावती के रूप में जन्म लिया और दोनों का विवाह हुआ।माना जाता है कि विवाह के उपरांत भगवान श्रीनिवास (वेंकटेश्वर) ने मनुष्य जाति के उद्धार के लिए सदैव तिरुमला पर्वत पर निवास करने का व्रत लिया। तीर्थयात्रा और भक्तों की आस्था तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर विश्व के सबसे अधिक दर्शन किए जाने वाले तीर्थस्थलों में से एक है। हर वर्ष लगभग 2.4 करोड़ श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।दैनिक औसत दर्शनार्थी संख्या 60,000 से अधिक होती है, जबकि ब्रह्मोत्सव, वैकुंठ एकादशी और दीपावली जैसे त्योहारों पर यह संख्या एक लाख से अधिक तक पहुँच जाती है। भक्त बालाजी को “कनिका” (दान) अर्पित करते हैं, और इन्हीं चढ़ावे के कारण यह मंदिर विश्व के सबसे समृद्ध धार्मिक स्थलों में गिना जाता है।यहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को अन्नप्रसादम् (मुफ़्त भोजन) वितरित किया जाता है, और मुण्डन संस्कार (बाल अर्पण) भी एक विशेष परंपरा के रूप में प्रचलित है। तिरुमला का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व यह मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि भारतीय स्थापत्य, संगीत और दर्शन की एक जीवंत धरोहर है।यहाँ के अनमाचार्य संकीर्तन, वैदिक परंपराएँ, और सप्तगिरी पर्वत श्रृंखला की प्राकृतिक छटा भक्तों को एक अलौकिक अनुभव प्रदान करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेता यहाँ आकर भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर चुके हैं। तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के दर्शन हमारी नई यात्रा का शुभारंभ है — एक ऐसी यात्रा जो हमें भारत की प्राचीन आस्था, मंदिर स्थापत्य और भक्ति परंपरा से जोड़ती है।IndoUS Tribune की ओर से हम आशा करते हैं कि इस श्रृंखला के माध्यम से आप भी इस दिव्य यात्रा का हिस्सा बनेंगे और भारतीय संस्कृति की अनमोल आध्यात्मिक धरोहर का अनुभव करेंगे।हमारे अगले पड़ाव में हम पहुंचेंगे श्रीकालहस्ती मंदिर (चित्तूर) — जहाँ भगवान शिव वायु तत्व के रूप में पूजित हैं।तब तक के लिए, भगवान वेंकटेश्वर की कृपा और आशीर्वाद आपके जीवन में सुख-समृद्धि और शांति लेकर आए — यही शुभकामना।
गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से, चौहदवाँ अध्याय
By: Rajendra Kapil अब हम इस गीता शृंखला के चौहदवें सोपान पर आ पहुँचे हैं. यह अध्याय हमें जीवन में उपस्थित गुणों एवं स्वभावों के बारे में विस्तृत जानकारी देता है. हममें से कुछ लोग बड़े सात्विक स्वभाव के होते हैं. कुछ और
Gita swadhyaya, my understanding – chapter thirteen
By: Rajendra Kapil This chapter is truly profound. In it, Lord Krishna imparts to Arjuna the knowledge of both — that which is visible (the body) and that which is invisible (the soul). It is well known that the soul animates the body
वृंदावन: अठारहवाँ पड़ाव – राधा कृष्ण मंदिर (पागल बाबा आश्रम)
By: Dr Avi Verma IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला का अंतिम पड़ाव IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! जहाँ हर श्वास में राधा-कृष्ण की भक्ति रची-बसी है, और हर मंदिर श्रीकृष्ण
Bhai Dooj 2025: Celebrating the eternal bond of love between brothers and sisters
Bhai Dooj, also known as Bhaiya Dooj, Bhau Beej, or Yama Dwitiya, is a cherished Hindu festival that celebrates the bond of love, protection, and respect between brothers and sisters. It is observed on the second day (Dwitiya) of the bright fortnight of
Indian missions worldwide celebrate Diwali, showcasing rich cultural heritage
Indian diplomatic missions across the globe marked Diwali, the festival of lights, on Saturday, reflecting India’s vibrant cultural heritage and promoting unity and harmony worldwide. In Japan, students, faculty, and members of the Indian community joined friends of India at Shimane University for
गीता स्वाध्याय, मेरी समझ से – तेरहवाँ अध्याय
By: Rajendra Kapil यह अध्याय अद्भुत है. इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को वोह ज्ञान दे रहे हैं, जोकि सामने दीख रहा है, अर्थात् शरीर. साथ ही उसके बारे में, जो नहीं दीख रहा है, अर्थात् आत्मा. यह सर्वविदित है कि, आत्मा इस शरीर