Gita Swadhyaya – In My Understanding, Chapter Fifteen – Purushottama Yoga
By: Rajendra Kapil This chapter of the Bhagavad Gita reveals a profound and unique secret—one that is supremely excellent. Because this excellence belongs only to the Supreme Lord, He is called Purushottama. And the yogi who strives to attain Him through this knowledge
आंध्र प्रदेश: चौथा पड़ाव – श्री सिम्हाचलम मंदिर (विशाखा पट्टनम)
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला IndoUS Tribune की विशेष श्रृंखला “यात्रा और दर्शन” में आपका पुनः हार्दिक स्वागत है। तिरुमला वेंकटेश्वर,श्रीकालहस्ती और श्री कुरम मंदिरों के पवित्र दर्शन के बाद अब हमारी यात्रा पहुँच रही है आंध्र प्रदेश के एकअत्यंत महत्वपूर्ण
आंध्र प्रदेश: तीसरा पड़ाव – कनक दुर्गा मंदिर (विजयवाड़ा)
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में आपका स्वागत है! इस श्रृंखला के पहले पड़ाव पर हमने तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के दिव्य दर्शन किए थे, और दूसरे पड़ाव पर पहुँचे श्रीकालहस्ती मंदिर (चित्तूर) — जहाँ भगवान शिव वायु तत्व के रूप में
गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से, पन्द्रहवाँ अध्याय – पुरुषोत्तम योग
By: Rajendra Kapil भगवद् गीता का यह अध्याय एक ऐसे रहस्य का उद्घाटन करता है, जो विशिष्ट रूप से अति उत्तम है. चूँकि यह उत्तम गुण केवल प्रभु के पास है, इसीलिए प्रभु को पुरुषोत्तम भी कहा गया है. और जो योगी इस
Gita study – in my understanding, chapter 14
By: Rajendra Kapil Now we have reached the fourteenth step of this Gita series. This chapter gives us a detailed understanding of the qualities (gunas) and natural tendencies present in human life. Some people among us are of highly sattvic (pure and virtuous) nature. Some are entangled
Gita swadhyaya, my understanding – chapter thirteen
By: Rajendra Kapil This chapter is truly profound. In it, Lord Krishna imparts to Arjuna the knowledge of both — that which is visible (the body) and that which is invisible (the soul). It is well known that the soul animates the body
आंध्र प्रदेश यात्रा – दूसरा पड़ाव: श्री कला हस्ती मंदिर (चित्तूर) IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर (तिरुपति) के दिव्य दर्शन के बाद अब हम अपने आंध्र प्रदेश यात्रा के दूसरे पड़ाव पर पहुँच रहे हैं — श्री कलाहस्ती मंदिर, जो भगवान शिव को वायु
आंध्र प्रदेश की आराधना यात्रा: तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर से आरंभ होती भक्ति की नई कथा
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन” श्रृंखला की वृंदावन यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण हो चुकी है। श्रीकृष्ण और राधा रानी की पावन नगरी के दिव्य मंदिरों के दर्शन के पश्चात् अब हम एक नई आध्यात्मिक श्रृंखला की शुरुआत कर रहे हैं — भारत के प्रसिद्ध और पूजनीय मंदिरों की यात्रा।इस नई यात्रा का आरंभ हम आंध्र प्रदेश के पवित्र मंदिरों से कर रहे हैं, जहाँ भक्ति, स्थापत्य और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। श्रृंखला के प्रथम पड़ाव में हम दर्शन करेंगे तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर (तिरुपति) के — जहाँ भगवान श्री वेंकटेश्वर (श्री बालाजी) की दिव्य उपस्थिति हर भक्त के हृदय को श्रद्धा, भक्ति और समर्पण से भर देती है।हम आपको आमंत्रित करते हैं कि हमारे साथ जुड़े रहें और इस पवित्र यात्रा में भारत की महान धार्मिक विरासत, आध्यात्मिक ऊँचाइयों और भक्ति की गहराइयों का अनुभव करें। तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर का परिचय आंध्र प्रदेश के तिरुमला पर्वत पर स्थित तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर विश्व के सबसे प्रसिद्ध और धनवान मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री वेंकटेश्वर स्वामी (जिन्हें बालाजी, गोविंदा और श्रीनिवास के नाम से भी जाना जाता है) को समर्पित है।माना जाता है कि भगवान विष्णु ने कलयुग के कष्टों से मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए इसी स्थान पर अवतार लिया था, इसलिए इस स्थान को “कलियुग वैकुंठ” कहा जाता है और भगवान को “कलियुग प्रत्यक्ष दैवम्” कहा जाता है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) द्वारा संचालित होता है, जो लाखों श्रद्धालुओं की सेवा में दिन-रात तत्पर रहता है। सात पहाड़ियों पर बसा दिव्य धाम तिरुमला पर्वत श्रृंखला शेषाचलम पहाड़ियों का हिस्सा है, जो समुद्र तल से लगभग 853 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इन पहाड़ियों में सात शिखर हैं, जो आदि शेष नाग के सात सिरों का प्रतीक माने जाते हैं।मंदिर इन सात शिखरों में से सातवें शिखर वेंकटाद्रि पर स्थित है, जिसके समीप श्री स्वामी पुष्करिणी नामक पवित्र सरोवर है। इसलिए इसे “सात पहाड़ियों का मंदिर” भी कहा जाता है। मंदिर का इतिहास और स्थापत्य कला तिरुपति मंदिर की स्थापना प्राचीन थोंडमन राजवंश के शासनकाल में हुई थी, जिसे बाद में चोल, पांड्य और विजयनगर साम्राज्य के राजाओं ने विकसित किया।माना जाता है कि मंदिर का निर्माण कार्य तीसरी शताब्दी ईस्वी के आसपास प्रारंभ हुआ था और इसे द्रविड़ शैली में बनाया गया है।मुख्य गर्भगृह को आनंद निलयम् कहा जाता है, जहाँ भगवान वेंकटेश्वर पूर्व दिशा की ओर मुख किए खड़े हैं। मंदिर में पूजा वैखानस आगम परंपरा के अनुसार होती है। यह मंदिर 108 दिव्य देशमों में से एक है और 75वें दिव्य देशम के रूप में प्रसिद्ध है। यह उन आठ विष्णु स्वयंभू स्थलों में भी शामिल है जहाँ भगवान स्वयं प्रकट हुए। मंदिर की धार्मिक मान्यता और किंवदंतियाँ पुराणों के अनुसार, द्वापर युग में जब ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर लात मारी, तो देवी लक्ष्मी नाराज होकर पृथ्वी पर आ गईं। तब भगवान विष्णु ने श्रीनिवास रूप में अवतार लेकर तिरुमला पर्वत पर तपस्या की।बाद में देवी लक्ष्मी ने पद्मावती के रूप में जन्म लिया और दोनों का विवाह हुआ।माना जाता है कि विवाह के उपरांत भगवान श्रीनिवास (वेंकटेश्वर) ने मनुष्य जाति के उद्धार के लिए सदैव तिरुमला पर्वत पर निवास करने का व्रत लिया। तीर्थयात्रा और भक्तों की आस्था तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर विश्व के सबसे अधिक दर्शन किए जाने वाले तीर्थस्थलों में से एक है। हर वर्ष लगभग 2.4 करोड़ श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।दैनिक औसत दर्शनार्थी संख्या 60,000 से अधिक होती है, जबकि ब्रह्मोत्सव, वैकुंठ एकादशी और दीपावली जैसे त्योहारों पर यह संख्या एक लाख से अधिक तक पहुँच जाती है। भक्त बालाजी को “कनिका” (दान) अर्पित करते हैं, और इन्हीं चढ़ावे के कारण यह मंदिर विश्व के सबसे समृद्ध धार्मिक स्थलों में गिना जाता है।यहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं को अन्नप्रसादम् (मुफ़्त भोजन) वितरित किया जाता है, और मुण्डन संस्कार (बाल अर्पण) भी एक विशेष परंपरा के रूप में प्रचलित है। तिरुमला का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व यह मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि भारतीय स्थापत्य, संगीत और दर्शन की एक जीवंत धरोहर है।यहाँ के अनमाचार्य संकीर्तन, वैदिक परंपराएँ, और सप्तगिरी पर्वत श्रृंखला की प्राकृतिक छटा भक्तों को एक अलौकिक अनुभव प्रदान करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नेता यहाँ आकर भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन कर चुके हैं। तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर के दर्शन हमारी नई यात्रा का शुभारंभ है — एक ऐसी यात्रा जो हमें भारत की प्राचीन आस्था, मंदिर स्थापत्य और भक्ति परंपरा से जोड़ती है।IndoUS Tribune की ओर से हम आशा करते हैं कि इस श्रृंखला के माध्यम से आप भी इस दिव्य यात्रा का हिस्सा बनेंगे और भारतीय संस्कृति की अनमोल आध्यात्मिक धरोहर का अनुभव करेंगे।हमारे अगले पड़ाव में हम पहुंचेंगे श्रीकालहस्ती मंदिर (चित्तूर) — जहाँ भगवान शिव वायु तत्व के रूप में पूजित हैं।तब तक के लिए, भगवान वेंकटेश्वर की कृपा और आशीर्वाद आपके जीवन में सुख-समृद्धि और शांति लेकर आए — यही शुभकामना।
गीता स्वाध्याय- मेरी समझ से, चौहदवाँ अध्याय
By: Rajendra Kapil अब हम इस गीता शृंखला के चौहदवें सोपान पर आ पहुँचे हैं. यह अध्याय हमें जीवन में उपस्थित गुणों एवं स्वभावों के बारे में विस्तृत जानकारी देता है. हममें से कुछ लोग बड़े सात्विक स्वभाव के होते हैं. कुछ और
Gita swadhyaya, my understanding – chapter thirteen
By: Rajendra Kapil This chapter is truly profound. In it, Lord Krishna imparts to Arjuna the knowledge of both — that which is visible (the body) and that which is invisible (the soul). It is well known that the soul animates the body
वृंदावन: अठारहवाँ पड़ाव – राधा कृष्ण मंदिर (पागल बाबा आश्रम)
By: Dr Avi Verma IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला का अंतिम पड़ाव IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! जहाँ हर श्वास में राधा-कृष्ण की भक्ति रची-बसी है, और हर मंदिर श्रीकृष्ण
Bhai Dooj 2025: Celebrating the eternal bond of love between brothers and sisters
Bhai Dooj, also known as Bhaiya Dooj, Bhau Beej, or Yama Dwitiya, is a cherished Hindu festival that celebrates the bond of love, protection, and respect between brothers and sisters. It is observed on the second day (Dwitiya) of the bright fortnight of
Indian missions worldwide celebrate Diwali, showcasing rich cultural heritage
Indian diplomatic missions across the globe marked Diwali, the festival of lights, on Saturday, reflecting India’s vibrant cultural heritage and promoting unity and harmony worldwide. In Japan, students, faculty, and members of the Indian community joined friends of India at Shimane University for
गीता स्वाध्याय, मेरी समझ से – तेरहवाँ अध्याय
By: Rajendra Kapil यह अध्याय अद्भुत है. इसमें भगवान कृष्ण अर्जुन को वोह ज्ञान दे रहे हैं, जोकि सामने दीख रहा है, अर्थात् शरीर. साथ ही उसके बारे में, जो नहीं दीख रहा है, अर्थात् आत्मा. यह सर्वविदित है कि, आत्मा इस शरीर
वृंदावन: सत्रहवाँ पड़ाव – श्री राधा श्यामसुंदर मंदिर
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है! वृंदावन की गलियाँ आज भी श्रीराधा-कृष्ण की लीलाओं की सुगंध से महकती हैं।यहाँ हर मंदिर, हर कुंज और हर घाट अपने भीतर कोई न कोई दिव्य कथा समेटे हुए है।हमारी श्रृंखला “यात्रा और दर्शन” के सत्रहवें पड़ाव में, हम आपको लेकर चल रहे हैं श्री राधा श्यामसुंदर मंदिर — एक ऐसा दिव्य स्थान जहाँ भक्तों का विश्वास है कि स्वयं श्रीमती राधारानी ने अपने हृदय से भगवान श्रीकृष्ण के श्याम सुंदर स्वरूप को प्रकट किया था। श्री राधा श्यामसुंदर मंदिर का इतिहास यह मंदिर वृंदावन के सात प्रमुख गौड़ीय वैष्णव मंदिरों में से एक है और इसका इतिहास 16वीं शताब्दी तक जाता है।परंपरा के अनुसार, महान संत श्री श्यामानंद प्रभु (पूर्व नाम: कृष्णदास) ने इस विग्रह को श्रीमती राधारानी से प्राप्त किया था। कथा के अनुसार, एक दिन श्यामानंद प्रभु वृंदावन के एक उपवन में झाड़ू लगा रहे थे। उसी समय उन्हें मिट्टी में दबी एक सुंदर स्वर्ण पायल मिली। जब कुछ गोपिकाएँ उसे लौटाने आईं, तो उन्होंने कहा कि यह उनकी सखी राधारानी की है। लेकिन श्यामानंद प्रभु ने आग्रह किया कि वे उसे स्वयं श्रीमती राधारानी को ही लौटाएँगे। गोपिकाएँ उन्हें एक दिव्य स्थली पर ले गईं, जहाँ श्रीमती राधारानी ने स्वयं प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए। उन्होंने पायल को प्रभु के माथे पर स्पर्श कराया, जिससे उनके मस्तक पर एक विशेष तिलक का चिह्न बन गया — जो आज “श्यामानंदी तिलक” के नाम से प्रसिद्ध है। उसी क्षण राधारानी ने अपने हृदय से भगवान श्रीकृष्ण के श्याम सुंदर स्वरूप को उत्पन्न किया और श्यामानंद प्रभु को भेंट किया। यह दिव्य विग्रह “लाला” नाम से प्रसिद्ध हुआ, क्योंकि यह बालक स्वरूप में श्यामसुंदर का प्रतीक था। बाद में इस विग्रह की पूजा अत्यंत श्रद्धा से की जाने लगी और भक्तों ने इसके इर्द-गिर्द एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर का विकास और स्थापत्य सौंदर्य समय के साथ इस मंदिर का विस्तार हुआ।प्रसिद्ध आचार्य श्रीला बलदेव विद्याभूषण ने यहाँ मुख्य वेदी पर बड़े विग्रहों की स्थापना की और मंदिर के आचार्य परंपरा को सुदृढ़ किया। मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही भक्ति का एक अद्भुत वातावरण अनुभव होता है। दीवारों पर रंगीन भित्ति चित्र अंकित हैं जो श्री श्यामानंद प्रभु की जीवन-लीला, राधा-कृष्ण की रास-लीला और वृंदावन के दिव्य स्थलों का वर्णन करते हैं। मंदिर की छतें और स्तंभ पारंपरिक ब्रज स्थापत्य शैली में बनाए गए हैं — जिसमें लाल बलुआ पत्थर, नक्काशीदार तोरण द्वार और कलात्मक झरोखे दिखाई देते हैं। मंदिर परिसर में हर दिन प्रातः मंगल आरती, दोपहर की राजभोग आरती, और संध्या की शयन आरती संपन्न होती है।भजन, कीर्तन और हरिनाम संकीर्तन से वातावरण दिव्यता से भर जाता है। देवता और उनका भक्तिभाव श्री श्याम सुंदर का यह स्वरूप अन्य किसी भी विग्रह से भिन्न है क्योंकि यह मूर्ति मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं, बल्कि राधारानी के हृदय से स्वयं प्रकट हुई मानी जाती है। “श्यामसुंदर” शब्द का अर्थ ही है — “श्याम वर्ण में सुंदरतम भगवान”। मंदिर की वेदी पर तीन जोड़ी विग्रह प्रतिष्ठित हैं — श्री राधा-श्यामसुंदर, श्री राधा-ललिता और श्री नित्य-गौर। भक्तों का विश्वास है कि श्याम सुंदर विग्रह में राधा और कृष्ण दोनों का प्रेममय रूप संयुक्त है। भक्तगण यहाँ आरती के समय “जय राधे श्याम सुंदर!” के जयघोष के साथ भजन गाते हैं।मंदिर में नित्य भागवत कथा, गीता प्रवचन, और भक्ति योग सत्र आयोजित किए जाते हैं। प्रमुख उत्सव और श्रद्धा का संगम मंदिर में वर्ष भर अनेक पर्व मनाए जाते हैं।विशेष रूप से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधाष्टमी, वसंत पंचमी, और रास पूर्णिमा पर यहाँ भक्तों का विशाल समागम होता है।इन अवसरों पर मंदिर को पुष्पों से सजाया जाता है, दीपों की श्रृंखला जलती है, और भक्ति संगीत से वातावरण गूंज उठता है। भक्तों का मानना है कि यहाँ दर्शन करने से मन की शुद्धि होती है, और जीवन में भक्ति का भाव प्रबल होता है। आध्यात्मिक संदेश श्री राधा श्यामसुंदर मंदिर केवल एक पूजा स्थली नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक विश्वविद्यालय और भक्ति का चिकित्सालय कहा जा सकता है — जहाँ जीवन के गूढ़ प्रश्नों का उत्तर मिलता है:“सुख-दुःख का अर्थ क्या है?”,“भक्ति में सच्ची शांति कहाँ मिलती है?”,और “राधा-कृष्ण के प्रेम का रहस्य क्या है?” मंदिर के आचार्य इन प्रश्नों का उत्तर वेदों, उपनिषदों और भागवत पुराण के आधार पर देते हैं, जिससे हर आगंतुक अपने जीवन में दिशा और शांति का अनुभव करता है। श्री राधा श्यामसुंदर मंदिर में दर्शन, वृंदावन की हमारी आध्यात्मिक यात्रा का एक अविस्मरणीय अध्याय है। यहाँ भक्ति और प्रेम का संगम होता है — जहाँ राधारानी की करुणा और श्याम सुंदर की माधुर्यता एकाकार हो जाती है। IndoUS Tribune की ओर से, हम आशा करते हैं कि इस यात्रा ने आपको वृंदावन की पवित्र भूमि की भक्ति, सौंदर्य और रहस्य से जोड़ने का अवसर दिया होगा। हमारी अगली कड़ी में, हम आपको वृंदावन के श्री राधा कृष्ण मंदिर, पागल बाबा आश्रम की यात्रा पर ले चलेंगे — जहाँ साधना, सेवा और समर्पण का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।तब तक के लिए, राधा श्याम सुंदर जी की कृपा आप पर बनी रहे — यही शुभकामना।
वृंदावन: सोलहवाँ पड़ाव – गोपेश्वर महादेव मंदिर
IndoUS Tribune की “यात्रा और दर्शन: वृंदावन मंदिर” श्रृंखला में आपका पुनः स्वागत है।वृंदावन की हर गली में राधा-कृष्ण की लीलाओं का अमृत झरता है, और यहाँ के मंदिरों में भक्ति की धारा निरंतर प्रवाहित होती है। हमारी इस पवित्र यात्रा का सोलहवाँ पड़ाव है – गोपेश्वर महादेव मंदिर, जहाँ भगवान शिव स्वयं गोपी रूप धारण कर श्री कृष्ण की रास लीला के साक्षी बने थे। गोपेश्वर महादेव मंदिर: नित्यत्व के देव का दिव्य रूप वृंदावन के पावन बंसीवट क्षेत्र में, पवित्र यमुना नदी के समीप स्थित गोपेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव के एक अलौकिक स्वरूप को समर्पित है। यहाँ भगवान शिव शिवलिंग रूप में विराजमान हैं, परंतु मंदिर का विशेष आकर्षण वह कथा है जब महादेव ने गोपी का रूप धारण किया, और इसलिए इन्हें “गोपेश्वर महादेव” कहा जाता है। यह मंदिर वृंदावन के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। किंवदंती के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ महानंदमयी रास लीला रचाई, तो राधा रानी ने नियम बनाया कि इस रास में केवल महिलाएँ ही सम्मिलित हो सकती हैं। भगवान शिव भी इस दिव्य रास का दर्शन करना चाहते थे, अतः उन्होंने गोपी रूप धारण किया। ललिता सखी के मार्गदर्शन में वे रास स्थल पर पहुँचे। श्रीकृष्ण ने जब उस नई गोपी को देखा, तो मुस्कुराते हुए बोले— “तुम आज से ‘गोपेश्वर महादेव’ कहलाओगे।” उन्होंने शिवजी को रास द्वारपाल का दायित्व सौंपा। तब से गोपेश्वर महादेव को वृंदावन के रास लीला के रक्षक और गोपियों के भाव के दाता के रूप में पूजा जाता है। मंदिर का इतिहास और महिमा यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है और इसकी स्थापना भगवान कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने महर्षि शांडिल्य के निर्देशन में की थी।गोपेश्वर महादेव मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ भगवान शिव का शिवलिंग शाम के समय गोपी वस्त्रों से अलंकृत किया जाता है, जो भक्ति का अद्भुत प्रतीक है। श्रावण मास (जुलाई–अगस्त) में यहाँ हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आते हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होने के कारण इस दिन भक्तों की विशेष भीड़ होती है। महा शिवरात्रि के पर्व पर मंदिर में रात्रि जागरण, रुद्राभिषेक, और फूलों से भव्य सजावट का विशेष आयोजन किया जाता है। उस समय मंदिर की अलौकिक आभा और वातावरण भक्तों को गहरी आध्यात्मिक अनुभूति कराता है। दर्शन और समय सारणी शीतकालीन समय: ग्रीष्मकालीन समय: सड़क मार्ग:मंदिर तक पहुँचने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग NH-19 से वृंदावन पहुँचा जा सकता है। स्थानीय परिवहन:वृंदावन पहुँचने के बाद ई-रिक्शा या ऑटो-रिक्शा से सीधे मंदिर जाया जा सकता है। निकटतम हवाई अड्डे: आस्था का केंद्र: गोपेश्वर महादेव गोपेश्वर महादेव मंदिर न केवल भगवान शिव की भक्ति का केंद्र है, बल्कि यह राधा–कृष्ण की लीलाओं में शिव के पूर्ण समर्पण का प्रतीक भी है। भक्त यहाँ गोपि भाव की प्राप्ति के लिए आते हैं, जो प्रेम और भक्ति का सर्वोच्च स्वरूप माना जाता है। गोपेश्वर महादेव मंदिर, वृंदावन की हमारी आध्यात्मिक यात्रा का सोलहवाँ पड़ाव, हमें यह सिखाता है कि भगवान शिव जैसे महायोगी भी श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर रास की महिमा का अनुभव करना चाहते थे। यह मंदिर हमें भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण का अद्भुत संदेश देता है। IndoUS Tribune की ओर से, हम आशा करते हैं कि इस यात्रा ने आपको गोपेश्वर महादेव की महिमा और वृंदावन की पवित्रता का अनुभव कराया होगा।हमारे अगले पड़ाव में, हम चलेंगे श्री राधा श्यामसुंदर मंदिर की ओर — जहाँ राधा-कृष्ण का अद्भुत मिलन अपने शाश्वत स्वरूप में प्रकट होता है।तब तक के लिए — हर हर महादेव! जय श्री राधे–कृष्ण!
Gita Study – In My Understanding: Chapter 12 – The Yoga of Devotion (Bhakti Yoga)
By: Rajender Kapil The twelfth chapter of the Bhagavad Gita is known as Bhakti Yoga, the Yoga of Devotion. In this chapter, Lord Krishna explains two primary paths to attain Him: The path of knowledge demands deep intellectual discipline, scriptural study, and austerity—it is a difficult
DCD Chairman visits BAPS Hindu Mandir in Abu Dhabi, hails role in promoting harmony
By: Indo-US Tribune News Desk In a gesture underscoring the UAE’s deep commitment to interfaith harmony and cultural inclusivity, Mugheer Khamis Al Khaili, Chairman of the Department of Community Development (DCD), visited the iconic BAPS Hindu Mandir in Abu Dhabi earlier this week,
India, Bhutan hold talks on strengthening connectivity and hydropower cooperation
By: Indo-US Tribune News Desk India’s Foreign Secretary Vikram Misri met Bhutan’s Prime Minister Tshering Tobgay in Thimphu on Friday to discuss a wide range of issues aimed at deepening bilateral cooperation. The talks focused on connectivity, hydropower collaboration, trade, and people-to-people ties,
गीता स्वाध्याय, मेरी समझ से – बारहवाँ अध्याय
By: Rajendra Kapil भगवद् गीता का बारहवाँ अध्याय भक्ति योग के नाम से प्रसिद्ध है. भगवद् प्राप्ति के दो प्रमुख मार्ग बताए गए हैं. एक को कहते हैं, ज्ञान मार्ग या ज्ञान योग और दूसरे को कहते हैं, भक्ति मार्ग या भक्ति योग.